51 Shaktipeeth : युगाद्या- भूतधात्री शक्तिपीठ क्षीरग्राम बंगाल शक्तिपीठ-28

देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है। प्रस्तुत है माता सती के शक्तिपीठों में इस बार युगाद्या भूतधात्री शक्तिपीठ क्षीरग्राम पश्चिम बंगाल शक्तिपीठ के बारे में जानकारी।
 
 
कैसे बने ये शक्तिपीठ : जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। हालांकि पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से इनकी उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें में 51 का खास महत्व है।
 
युगाद्या- भूतधात्री शक्तिपीठ : पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के खीरग्राम (क्षीरग्राम) स्थित जुगाड्‍या (युगाद्या) स्थान पर तंत्र चूड़ामणि के अनुसार माता के दाएं पैर का अंगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है युगाद्या या भूतधात्री और शिव को क्षीर खंडक (क्षीर कण्टक) कहते हैं। क्षीरग्राम की भूतधात्री महामाया के साथ देवी युगाद्या की भद्रकाली मूर्ति एक हो गई।
 
'भूतधात्रीमहामाया भैरव: क्षीरकंटक:। युगाद्यायां महादेवी दक्षिणागुंष्ठ: पदो मम।'-तंत्र चूड़ामणि
 
वर्धमान जंक्शन से 39 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा कटवा से 21 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में महाकुमार-मंगलकोट थानांतर्गत 'क्षीरग्राम' में स्थित है- 'युगाद्या शक्तिपीठ'। त्रेतायुग में अहिरावण ने पाताल में जिस काली की उपासना की थी, वह युगाद्या ही थीं।
 
कहा जाता है कि अहिरावण की कैद से छुड़ाकर राम-लक्ष्मण को पाताल से लेकर लौटते हुए हनुमान देवी को भी अपने साथ लाए तथा क्षीरग्राम में उन्हें स्थापित किया। बंगला के अनेक ग्रंथों के अलावा 'गंधर्वतंत्र', 'साधक चूड़ामणि', 'शिवचरित' तथा 'कृत्तिवासी रामायण' में इस देवी का वर्णन मिलता है। बंगला के अनेक ग्रंथों के अलावा 'गंधर्वतंत्र', 'साधक चूड़ामणि', 'शिवचरित' तथा 'कृत्तिवासी रामायण' में इस देवी का वर्णन मिलता है।

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