लाल चौक पर तिरंगा फहराएँ उमर!

जिस कश्मीर को खून से सींचा वह कश्मीर हमारा है
हम हिंदी हैं और हिन्दुस्तान हमारा है।

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आजाद भारत में गणतंत्र दिवस समारोह के दिन हिन्दुस्तानी सरजमीं पर तिरंगा फहराने से रोकने वाला शख्स देशद्रोही ही होगा। इससे कम तो कोई संज्ञा उसे दी ही नहीं जा सकती।

जम्मू-कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा नहीं फहराने की अपील कोई और नहीं यहाँ के मुख्‍यमंत्री उमर अब्दुल्ला कर रहे हैं और इस फैसले को उचित ठहरा रही है देश की प्रजातांत्रिक ढंग से चुनी गई केंद्र सरकार।

अपने ही देश में राष्ट्रीय ध्वज फहराना क्या सांप्रदायिकता की निशानी है, उन्माद का कारण है या कोई ऐसी वजह जिससे हमारी राष्ट्रीय नागरिकता के अधिकार का दुरुपयोग होता हो। तिरंगा फहराने से रोकने वालों को क्या इस बात का इल्म नहीं कि इसका सिर ऊँचा रखने के लिए कितनी कुर्बानियाँ दी गईं।

आज लाल चौक पर झंडा फहराने से मना कर रहे हैं। कल से कहेंगे दुश्मनों को हटाकर कारगिल चोटी पर हमारे वीर सैनिकों ने तिरंग फहराया वह भी गलत था। कारगिल चोटी पर विषम परिस्थितियों में दुश्मन सैनिकों को खदेड़कर वीर भारतीय ‍सैनिकों ने तिरंगा फहराया था। जम्मू-कश्मीर में आज ऐसे कौन से हालात पैदा हो गए हैं। जरा यह तो स्पष्ट करें।

ऐसे हालातों में तो और जरूरी है कि दिल्ली के लालकिले से पहले कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा फहराया जाए। हो सकता है आगे इनको जायज लगने लगे स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले समेत की प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज फहराने से दिल्ली में दंगा हो सकता है। देश की कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती, अराजकता फैल सकती है।

भविष्य में इनका तर्क हो सकता है कि सांप्रदायिक सद्‍भाव के रूप में किसी दूसरे मुल्क का झंडा फहराया जाए जो इटली समेत किसी भी राष्ट्र का हो सकता है। जिस राष्ट्र में रहते हो उसके प्रतीकों की कद्र नहीं करना खुद के ही अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाना है।

ये शासकीय नुमाइंदों जवाब दें कि पद एवं गोपनीयता की शपथ लेते हुए इन्होंने संविधान के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने की बात कही थी, क्या देश में तिरंगा फहराना इस अधिकार के तहत नहीं आता।

अगर कोई भारतीय नागरिक इसे फहराना न चाहे तो यह उसकी राष्ट्रीयता पर संदेह का विषय नहीं है लेकिन यदि कोई अन्य इसे बाकायदा तरीके से फहराना चाहता है तो उसे रोकना कहाँ तक उचित है।

देश के उद्योगपति और वर्तमान सांसद नवीन जिंदल ने इसकी कानूनी लड़ाई लड़कर यह हक देशवासियों को दिलवाया भी है। दुनिया की कौन सी ताकत ऐसा करने से हमको रोकने का दुस्साहस कर सकता है।

दुनिया के किसी भी देश का कोई भी धर्म आपके राष्ट्र सम्मान में बाधा नहीं बन सकता। हर धर्म पहले आपको राष्ट्र के प्रति ही सजग रखेगा, यही संदेश देगा कि राष्ट्रीयता सबसे बड़ा धर्म है। राष्ट्र धर्म को सर्वोच्च रखते हुए उसका पालन करना ही राष्ट्र में रहने के लिए सबसे जरूरी है।

ऐसे किसी भी बयान के लिए केंद्र सरकार के मुलाजिम और मुख्‍यमंत्री उमर अब्दुल्ला माफी माँगें और 26 जनवरी को लाल चौक पर जाकर तिरंगा फहराएँ। और इतनी हिम्मत नहीं है तो न केवल अपना पद छोड़ दें बल्कि भारत की सीमाओं से निकाल बाहर किया जाए, इन्हें भारतीय कहलाने का कोई हक नहीं।

इससे कम इन्हें किसी भी कीमत पर कोई भारतीय इन्हें माफ नहीं करेगा। जय हिंद।

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