कजाकिस्तान में क्यों तेजी से फैल रहा सनातन हिंदू धर्म?

WD Feature Desk

बुधवार, 27 मार्च 2024 (11:10 IST)
ISKCON
Hinduism in Kazakhstan: प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर कजाकिस्तान मध्य एशिया और यूरोप का एक रोचक और सुंदर देश है। इसके कुछ हिस्से यूरोप और कुछ एशिया में मिलते हैं। 1991 में यह सोवियत संघ से अलग होकर एक नया देश बना। तब से ही यहा पे प्रेजिडेंट पद पर नूरसुल्तान नजरबायेव ही विराजमान है। आओ जानते हैं कि यहां तेजी से क्यों फैल रहा है सनातन हिंदू धर्म।
 
कजाकिस्तान तीन बातों के लिए जाना जाता है। पहली यह कि कहते हैं कि घोड़े को पालतू बनाने की शुरुआत यहीं से हुई थी। दूसरी यह कि सबसे पहले सेब की उत्पत्ति यहीं हुई थी। कजाकिस्तान की पुरानी राजधानी अल्माटी को 'सेब की जगह' कहा जाता है। फिलहाल यहां की राजधानी अस्टाना है। तीसरा यह कि पुरातात्विक इतिहासकारों के अनुसार यह जगह अमेजॉन महिला योद्धाओं की जगह है। 
 
अलेक्जेंडर गेनाडिविच खाकिमोव : अलेक्जेंडर गेनाडिविच खाकिमोव (alexander gennadievich khakimov) इस्कॉन का एक ऐसा नाम है जिसने कजाकिस्तान में क्रांति ला दी है। उन्होंने कजाकिस्तान, यूक्रेन और रशिया में कृष्‍णा भागवत धर्म का प्रचार करने के लिए कई पुस्तकें लिखी हैं। यह मूल रूप से एक कजाक ही हैं। 1982 में लेनिनग्राद में, वे पहली बार इस्कॉन के संस्थापक भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद की पुस्तक 'बियॉन्ड टाइम एंड स्पेस' पढ़कर हिंदू संस्कृति से परिचित हुए। 1988 में उन्हें सोवियत हरे कृष्ण के आध्यात्मिक प्रचारक हरिकेसा स्वामी से आध्यात्मिक दीक्षा प्राप्त हुई और उन्हें नाम मिला- चैतन्य चंद्र चरण दास। इसके बाद इन्होंने कजाकिस्तान में जो धर्म प्रचार किया उसके बाद वहां के हजारों लोगों ने इस्कॉन को अपनाया। 
 
वर्ष 1999 में अल्माटी के नजदीक इस्कॉन के द्वारा 116 एकड़ भूमि खरीदी गई और वहां पर एक हरे कृष्ण गांव की स्थापना की गई थी। जिसमें करीब 30 घर बनाए गए थे और यहां पर सभी कृष्ण अनुयायी एकत्रित होकर कृष्‍ण भक्ति करते थे। यहां पर वे सभी कजाक मुस्लिम थे जिन्होंने सनातन धर्म को अपनाया था। यहां रहकर वे अल्माटी जैसे शहरों में जाकर कृष्ण भक्ति का प्रचार करते थे। कृष्ण भक्ति के चलते हजारों लोग इस्कॉन को ज्वाइन करने लगे थे। जब यह बात सरकार को पता चली तो उसने 7 अगस्त 2006 को यहां के इस्कॉन संतों और अनुयायियों के साथ कश्मीरी हिंदुओं की तरह अत्याचार किया और पूरे गांव को उजाड़ दिया।
 
इस घटना के बाद अलेक्जेंडर गेनाडिविच खाकिमोव ने प्रतिज्ञा ली की इससे भी बड़ा गांव बनाया जाएगा। उन्होंने कुछ ही सालों में यह कर भी दिखाया। अल्माटी से करीब 45 किलोमीटर दूर उन्होंने वृंदावन पार्क नाम गांव बसाया और पहले की अपेक्षा बड़े पैमाने पर प्रचार प्रसार किया। 
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मरीना टार्गाकोआ : मरीना टार्गाकोआ ( Marina Targakova) ने भगवत गीता के माध्यम से कजाकिस्तान में सनातन धर्म के विचारों को दूर दूर तक पहुंचाया है। वे कजाकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय की विशेषज्ञ रह चुकी है। मरीन कई बार भारत भ्रमण भी कर चुकी है। वो कजाकिस्तान की महिलाओं को वृंदावन के दर्शन कराने के लिए ला भी चुकी हैं। मरीना कजाकिस्तान की मुस्लिम आबादी के बीच सोशल मीडिया के माध्यम के साथ ही कई आयोजनों के माध्यम से भी कृष्ण भक्ति का प्रचार कर रही है जिसके चलते हजारों कजाक लोग अब कृष्ण भक्ति के रंग में रंगने लगे हैं। वे कजाकिस्तान के बड़े बड़े सेलिब्रिटिज और इंफ्लूएंसर के साथ मिलकर लेक्चरर पॉडकास्ट के माध्यम से भी यह कार्य करती हैं। उन्होंने यहां पर गीता इस्टूट की स्थापना की है जहां गीता फेस्टिवल भी मनाया जाता है। मरीना का झुकाव कृष्ण भक्ति की ओर तब हुआ जब उन्होंने कजाक भाषा में अनुवादित गीता को पढ़ा। इसे पढ़कर उनका जीवन ही बदल गया और अब वे चाहती है कि संपूर्ण कजाकिस्तान ही बदल जाए। 

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