महाभारत युद्ध के बाद इस तरह तबाह हुआ था भारत

महाभारत से एक बात तो निश्चित ही सीखने को मिलती है कि किसी भी समस्या का समाधान बातचीत से नहीं होता है और यह भी तय है कि युद्ध से कुछ भी हासिल नहीं होता। इसका मतलब यह कि वार्ता विफल होने के बाद युद्ध करो और युद्ध करने के बाद तबाही पर आंसू बहाओ। सवाल यह उठता है कि वार्ता कब विफल होती है? वार्ता तब विफल होती है जब‍ सामने वाले पक्ष में से कोई एक मूर्ख अड़ियाल रुख अपनाता है और अंत में सभी उसका साथ देने पर मजबूर हो जाते हैं। खैर..
 
क्या महाभारत युद्ध और युद्ध के बाद भारत तबाह हो गया था? यह सवाल बहूत महत्वपूर्ण है कि महाभारत के युद्ध के बाद भारत की क्या गति हुई। महाभारत की चर्चा सभी करते हैं लेकिन इस युद्ध के परिणाम की चर्चा बहुत कम की जाती है। इस युद्ध से संपूर्ण भारतवर्ष पर क्या प्रभाव पड़ा इसकी चर्चा बहुत कम ही की जाती है। तो आजो आज हम इसका विश्लेषण करते हैं....
 
कौरव पांडवों की सेनाओं की जनसंख्या :
श्रीकृष्ण की एक अक्षौहिणी नारायणी सेना मिलाकर कौरवों के पास 11 अक्षौहिणी सेना थी तो पांडवों ने 7 अक्षौहिणी सेना एकत्रित कर ली थी। इस तरह सभी महारथियों की सेनाओं को मिलाकर कुल 45 लाख से ज्यादा लोगों ने इस युद्ध में भाग लिया था। उस काल में धरती की जनसंख्या ज्यादा नहीं थी। यदि हम वर्तमान समय की 7 अरब जनसंख्या से तुलना करें तो आज विश्व की सभी सेनाएं मिलकर एक करोड़ होगी। लेकिन उस काल में जनसंख्या इतनी नहीं थी। 1947 के पहले भारत की जनसंख्या लगभग 40 करोड़ के आसपास थी। 1650 में ईस्वी में संपूर्ण धरती की जनसंख्या लगभग 50 करोड़ थी। इस प्रकार यदि हम और पीछे जाएंगे तो धरती की जनसंख्या इससे भी आधी थी। तब क्या हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि 3112 ईसा पूर्व धरती की जनसंख्या कितनी रही होगी? अनुमान ज्ञान नहीं होता, यह वास्तविकता के करीब हो सकता है और नहीं भी। लेकिन यदि एक करोड़ लोगों ने युद्ध में भाग लिया होगा नो निश्‍चित ही कम से कम भारत की जनसंख्‍या 5 से 6 करोड़ के बीच तो रही होगी, क्योंकि तब आज जीतने शहर या गांव नहीं थे।
 
युद्ध में मारे गए थे सभी, बचे थे मात्र 18 :
45 लाख की सेना के बीच महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला और इस युद्ध में कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। जिनके नाम हैं- कौरव के कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा, जबकि पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि।  हालांकि इतिहास के कुछ पन्नों के अनुसार महाभारत के युद्ध में 39 लाख 40 हजार योद्धा मारे गए। अब आप सोचिए कि 6 करोड़ की आबादी में आधी तो महिलाएं होगी याने कि करीब ढाई करोड़ महिलाएं। अब बचे ढाई करोड़ पुरुष जिसमें से लाखों तो बच्चे होंगे। मतलब यह युद्ध बुढ़े और जवानों ने यह लड़ा। उनमें से कुछ जवान तो उनके पुत्र ही थे जिनको कोई पुत्र नहीं हुआ था। 
 
कौरव पक्ष : कौरवों की ओर से दुर्योधन व उसके 99 भाइयों सहित भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कलिंगराज, श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण और बृहद्वल आदि और उनके पुत्र पौत्र युद्ध में शामिल थे जो सभी मारे गए। कौरवों के कुल का नाश हो गया। कौरव वंश का एक मात्र युयुत्सु ही बचा था।
 
पाडव पक्ष : पांडवों की ओर से अभिमन्यु, घटोत्कच, विराट, द्रुपद, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, पांड्यराज, कुन्तिभोज, उत्तमौजा, शैब्य और अनूपराज नील आदि सहित पांडवों के लगभग पचास पुत्र भी युद्ध मारे गए थे। पांडव वंश में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी के उत्तरा के गर्भ में पल रहा उनका एक मात्र पुत्र बचा था जिसे श्रीकृष्ण ने बचाया था। इसका नाम परीक्षित था। पांडव युद्ध जीतने के बाद भी हार ही गए थे क्योंकि फिर उनके पास कुछ भी नहीं बचा था। प्रत्येक पांडव के  10-10 पुत्र थे लेकिन सभी मारे गए। 
 
यादव पक्ष : श्रीकृष्ण की नारायणी सेना और कुछ यादव युद्ध में और बाद में गांधारी के शाप के चलते आपसी युद्ध में श्रीकृष्ण के कुल का नाश हो गए। कौरवों की मां गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दे डाला कि जैसे मेरे बच्चों की इतनी दर्दनाक मौत हुई है, उसी तरह तुम्हारा यादव-परिवार भी आपसी युद्ध में तड़प-तड़प मारा जाएगा।
 
अन्य राजाओं का पक्ष : इस तरह हमने देखा की इस युद्ध में कई पितामह, पिता और पुत्रों ने एक साथ भाग लिया था जिसके चलते तीन पढ़ी एक साथ खत्म हो गई थी। कौरवों और पांडवों के इस महामरण युद्ध में सिर्फ उनका ही वंश नष्ट नहीं हुआ भारतवर्ष के कई राज्यों के राजाओं का वंश और उनकी सेनाओं  का भी नाश हो गया था। इस युद्ध में देश-विदेश के लाखों राजाओं, महाराजाओं और सैनिकों ने भाग लिया था। 
 
कॉपीराइट : वेबदुनिया
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बिखर गया था भारत : उपर हम लिख आए हैं कि किस तरह तीन पीढ़ी समाप्त हो गई थी। ऐसा में लाखों महिलाएं भरी जवान में विधवा हो गई थी। लाखों महिलाओं के समक्ष पुरुषों का संकट खड़ा हो गए था। अर्थात उनके विवाह के लिए पुरुषों का होना भी तो जरूरी है। यह सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है। अनुमान ज्ञान नहीं होता। लेकिन यह तय है कि इससे समाज में एक धर्मसंकट की स्थिति खड़ी हो गई थी। समाज का नेतृत्व करने वाला कोई नहीं था। राज्यों में बिखराव हो गया था। इतने लोग नहीं थे कि वे राज्य की व्यवस्था को संचालित करते।
 
कहते हैं कि इस युद्ध के परिणामस्वरूप भारत से वैदिक धर्म, समाज, संस्कृति और सभ्यता का पतन हो गया। इस युद्ध के बाद से ही अखंड भारत बहुधर्मी और बहुसंस्कृति का देश बनकर खंड-खंड होता चला गया।
 
*युद्ध के बाद युधिष्ठिर संपूर्ण भारत वर्ष के राजा तो बन गए लेकिन सब कुछ खोकर। किसी में भी पांडव में राजपाट करने की इच्छा नहीं रही थी। सभी को वैराग्य प्राप्त हो गया था। देखते हुए युधिष्ठिर ने राजा का सिंहासन परीक्षित को सौंपा और खुद चल पड़े हिमालय की ओर, जीवन की अंतिम यात्रा पर। उनके साथ चले उनके चारों भाई और द्रौपदी आदि। उनसे पहले ही धृतराष्ट्र और गांधारी हिमालय चले गई थे। वहीं सभी का अंत हो गए।
 
*महाभारत युद्ध के कारण देश बर्बाद हुआ। उस युद्ध ने समूचे आर्यावर्त को खंड खंड कर दिया। इस युद्ध के बाद देश टुकड़ो में बंट गया। सैंकड़ों वर्षों तक खामोशी छाई रही। लोग अपने अपने तरीके से जीवन यापन करने लगे। पौराणिक धर्म और अन्य कई तरह के धर्मों का विकास होने लगा।
 
*विदेशी भारत में आकर बसने लगे, लुटने लगे, आक्रमण करने लगे। यवन, शक, हूण और कुषाणों का आक्रमण तो बहुत बाद में शुरू हुआ उसके पहले महाभारत के बाद तो भारत के हजारों, लाखों लोगों ने कालांतर में भारत से बाहर निकलकर अरब, तुर्क, मिस्र, मलेशिया, इंडोनेशिया, चीन, रशिया आदि सभी जगह जाकर बसने लगे। धर्म का एक नया मार्ग खुलने लगा। वहां उन्होंने नई संस्कृति और धर्म की नींव रखी। इस बात का वर्णन कोई नहीं करता है कि किस तरह जैन और हिन्दू संतों ने अरब, योरप और रशिया में जाकर धर्म का प्रचार प्रसार किया जिसके चलते वहां कबीलों में जी रही मानव सभ्यता को ज्ञान की एक नई रोशनी मिली। 
 
1.महाभारत के बाद धीरे-धीरे धर्म का केंद्र तक्षशिला (पेशावर) से हटकर मगध के पाटलीपुत्र में आ गया था जो कि बात में घातक सिद्ध हुआ। गर्ग संहिता में महाभारत के बाद के इतिहास का उल्लेख मिलता है। अयोध्या कुल के मनु की 94 पीढ़ी में बृहद्रथ राजा हुए। उनके वंश के राजा क्रमश: सोमाधि, श्रुतश्रव, अयुतायु, निरमित्र, सुकृत्त, बृहत्कर्मन्, सेनाजित, विभु, शुचि, क्षेम, सुव्रत, निवृति, त्रिनेत्र, महासेन, सुमति, अचल, सुनेत्र, सत्यजीत, वीरजीत और अरिञ्जय हुए। इन्होंने मगध पर क्षेम धर्म से पूर्व राज किया था।
 
2. बृहद्रथ (जरासंध) वंश के रूप में 3233 वि.पू. से रिपुंजय तक 2011 वि.पू. तक चला, शत्रुंजय के समय श्रीकृष्ण वंशी बज्रनाम का राज्य चला, बाद में यादवों के वंश मिथिला, मगध, विदर्भ, गौंडल, जैसलमेर, करौली, काठियावाड़, सतारा, दक्षिण मथुरा पांड्यदेश, पल्लव आदि विभिन्न खंडों में बिखर गए।
 
3. महाभारत के बाद कुरु वंश का अंतिम राजा निचक्षु था। पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो परीक्षित का वंशज (युधिष्ठिर से 7वीं पीढ़ी में) था, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी को बनाया। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी का राजा उदयन था। निचक्षु और कुरुओं के कुरुक्षेत्र से निकलने का उल्लेख शांख्यान श्रौतसूत्र में भी है।
 
4. शुनक वंशी प्रद्योत और उसके 5वें वशंधर नंदिवर्धन (1873 वि.पू.)।

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