देवी अम्बिका माता को इसलिए कहा जाता है दुर्गा

आदि शक्ति मां जगदम्बे का ही रूप है देवी दुर्गा। सामान्यतः देवी दुर्गा दो रूपों में जानी जाती हैं, एक में वे दस भुजा वाली तथा दूसरे में अष्ट भुजा रूप में हैं। देवी का वाहन सिंह या बाघ हैं तथा असुर या दैत्य का वध कर रही हैं।
 
 
हिरण्याक्ष के वंश में उत्पन्न एक महा शक्तिशाली दैत्य हुआ, जो रुरु का पुत्र था जिसका नाम दुर्गमासुर था। इसने शक्तिशाली होने तथा देवताओं को पराजित करने के लिए ब्रह्माजी की गठिन तपस्या की फलस्वरूप त्रिलोक में सभी संतप्त होने लगे। उसने समस्त मंत्र और वेदों को भी ब्रह्माजी से मांग लिया।
 
 
वर प्रदान करने के कारण ऋषियों और देवताओं के समस्त वेद तथा मंत्र लुप्त हो गए तथा स्नान, होम, पूजा, संध्या, जप इत्यादि का लोप हो गया। इस प्रकार जगत में एक अत्यंत ही घोर अनर्थ उत्पन्न हो गया तथा हविभाग न मिले के परिणामस्वरूप देवता जरा ग्रस्त हो, निर्बल हो गए। देवताओं की यह दशा देखकर दुर्गमासुर दैत्य ने इंद्र की अमरावती पुरी को घेर लिया।
 
 
देवता शक्ति से हीन हो गए थे, फलस्वरूप उन्होंने स्वर्ग से भाग जाना ही श्रेष्ठ समझा। भागकर वे पर्वतों की कंदरा और गुफाओं में जाकर छिप गए और सहायता हेतु आदि शक्ति अम्बिका की आराधना करने लगे।
 
 
हवन-होम आदि न होने के परिणामस्वरूप, जगत में वर्षा का अभाव हो गया तथा वर्षा के अभाव में भूमि शुष्क तथा जल विहीन हो गया और ऐसे स्थिति सौ वर्षों तक बनी रही। बहुत से जीव जल के बिना मारे गए, घर घर में शव का ढेर लगने लगा। इस प्रकार अनर्थ की स्थिति को देख, जीवित मानुष, देवता इत्यादि हिमालय में जा कर ध्यान, पूजा तथा समाधी के द्वारा आदि शक्ति जगदम्बा की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करने लगे।
 
 
इस प्रकार बारंबार स्तुति करने पर, समस्त भुवन पर शासन करने वाली भुवनेश्वरी, नील कमल के समान अनंत नेत्रों से युक्त स्वरूप में प्रकट हुई। काजल के समान देह, नील कमल के समान विशाल नेत्रों से युक्त देवी अपने हाथों में मुट्ठी भर बाण, विशाल धनुष, कमल पुष्प, पुष्प-पल्लव, जड़ तथा फल, बुढ़ापे को दूर करने वाली शाक आदि धारण की हुई थी। दिव्य तथा प्रकाशमान, अत्यंत नेत्रों के साथ वे जगद्धात्री, भुवनेश्वरी, समस्त लोको में, अपने सहस्त्रों नेत्रों से जलधाराएं गिराने लगी तथा नौ रातों तक घोर वर्षा होती रही। फलस्वरूप समस्त प्राणी तथा वनस्पतियां तृप्त हुई, समस्त नदियां तथा समुद्र जल से भर गई। इस अवतार में देवी शताक्षी नाम से जानी जाने लगी। देवी शताक्षी ने सभी को खाने के लिए शाक तथा फल-मूल प्रदान किए, साथ ही नाना प्रकार के अन्न तथा पशुओं के खाने योग्य पदार्थ भी। उसी काल से उनका एक नाम शाकम्भरी भी हुआ।
 
 
एक दूत ने दुर्गमासुर को यह सभी गाथा बताई और देवताओं की रक्षक के अवतार लेने की बात कहीं। तक्षण ही दुर्गमासुर क्रोधित होकर अपने समस्त अस्त्र-शस्त्र और अपनी सेना को साथ ले युद्ध के लिए चल पड़ा। दैत्यराज दुर्गमासुर ने देवता और मनुष्यों आदि पर प्रहार किया परिणामस्वरूप देवी ने चारो ओर तेजोमय चक्र बना दिया तथा स्वयं बहार आ खड़ी हुई। दुर्गम दैत्य तथा देवी के मध्य घोर युद्ध छिङ गया, तदनंतर देवी के शारीर से उनकी उग्र शक्तियां, देवी की सहायता हेतु प्रकट हुई।
 
 
काली, तारिणी या तारा, बाला, त्रिपुरा, भैरवी, रमा, बगला, मातंगी, कामाक्षी, तुलजादेवी, जम्भिनी, मोहिनी, छिन्नमस्ता, गुह्यकाली, त्रिपुरसुन्दरी तथा स्वयं दस हजार हाथों वाली, प्रथम ये सोलह, तदनंतर बत्तीस, पुनः चौंसठ और फिर अनंत देवियाँ हाथों में अस्त्र शस्त्र धारण किये हुए प्रकट हुई। दस दिन में दैत्यराज की सभी सेनाएं नष्ट हो गई तथा ग्यारहवे दिन देवी तथा दुर्गमासुर में भीषण युद्ध होने लगा। देवी के बाणों के प्रहार से आहात हो, दुर्गमासुर रुधिर का वामन करते हुए, देवी के सन्मुख मृत्यु को प्राप्त हुआ तथा उसके शरीर से तेज निकल कर देवी के शरीर में प्रविष्ट हुआ।
 
 
इसके पश्चात् ब्रह्मा आदि सभी देवता, भगवान् शिव तथा विष्णु को आगे कर, भक्ति भाव से देवी की स्तुति करने लगे। इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अन्य देवताओ के स्तुति करने तथा विविध द्रव्यों से पूजन करने पर देवी संतुष्ट हो गई तथा दुर्गा नाम से जानी जाने लगी। देवता द्वारा किये हुए स्तवन में, देवी दुर्गा को तीनो लोकों की रक्षा करने वाली, मोक्ष प्रदान करने वाली, उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार करने वाली कहा गया हैं। यह यह आदि शक्ति अम्बिका की शक्ति है।
 

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