पंढरपुर यात्रा, जानिए 8 तथ्य | pandharpur yatra

पंढरपुर का विठोबा मंदिर पश्चिमी भारत के दक्षिणी महाराष्ट्र राज्य में भीमा नदी के तट पर शोलापुर नगर के पश्चिम में स्थित है। इस मंदिर में विठोबा के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। यहां भक्तराज पुंडलिक का स्मारक बना हुआ है।
 
 
आओ, जानते हैं इस तीर्थ के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य-
 
1. पंढरपुर तीर्थ की स्थापना 11वीं शताब्दी में हुई थी। मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में देवगिरि के यादव शासकों द्वारा कराया गया था। श्री विट्ठल मंदिर यहां का मुख्य मंदिर है।
 
2. भगवान विष्णु के अवतार विठोबा और उनकी पत्नी रुक्मणि के सम्मान में इस शहर में वर्ष में 4 बार त्योहार मनाने एकत्र होते हैं। इनमें सबसे ज्यादा श्रद्धालु आषाढ़ के महीने में फिर क्रमश: कार्तिक, माघ और श्रावण महीने में एकत्रित होते हैं। ऐसी मान्यता है कि ये यात्राएं पिछले 800 सालों से लगातार आयोजित की जाती रही हैं।
 
 
3. श्रीकृष्ण भक्त पुंडलिक माता-पिता के परम सेवक थे। एक दिन वे माता-पिता की सेवा में लगे थे, तभी श्रीकृष्ण उन्हें दर्शन देने के लिए द्वार पर पधारे। लेकिन पुंडलिक उस वक्त पिता के चरण दबाते रहे। उस वक्त भगवान को खड़े होने के लिए उन्होंने ईंट सरका दी किंतु वे उठे नहीं। भगवान कमर पर हाथ रखे ईंट पर खड़े रहे इसीलिए निज मंदिर में भगवान की मूर्ति कमर पर हाथ रखे खड़े हैं।
 
4. यहां भगवान श्रीकृष्ण विठोबा के रूप में हैं जिन्होंने भक्त पुंडलिक की पितृभक्ति से प्रसन्न होकर उसके द्वारा फेंके हुए एक पत्थर (विठ या ईंट) को ही सहर्ष अपना आसन बना लिया था इसीलिए इनका नाम 'विठोबा' हो गया।

 
5. मंदिर में प्रवेश करते समय द्वार के समीप भक्त चोखामेला की समाधि है। प्रथम सीढ़ी पर ही नामदेवजी की समाधि है। द्वार के एक ओर अखा भक्ति की मूर्ति है। निज मंदिर के घेरे में ही रुक्मणिजी, बलरामजी, सत्यभामा, जांबवती तथा श्रीराधा के मंदिर हैं। पंढरपुर के जो देवी मंदिर प्रसिद्ध हैं, उनमें पद्मावती, अंबाबाई और लखुबाई सबसे प्रसिद्ध हैं। चंद्रभागा के पार श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक है। 3 मील दूर एक गांव में जनाबाई का मंदिर है और वह चक्की है जिसे भगवान ने चलाया था।
 
 
6. कहते हैं कि विजयनगर साम्राज्य के प्रसिद्ध नरेश कृष्णदेव विठोबा की मूर्ति को अपने राज्य में ले गए थे किंतु बाद में एक बार फिर इसे एक महाराष्ट्रीय भक्त वापस इसे ले आया और इसे पुन: यहां स्थापित कर दिया।
 
7. पंढरपुर की यात्रा आजकल आषाढ़ में तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को होती है। देवशयनी और देवोत्थान एकादशी को वारकरी संप्रदाय के लोग यहां यात्रा करने के लिए आते हैं। यात्रा को ही 'वारी देना' कहते हैं। प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के मौके पर पंढरपुर में लाखों लोग भगवान विट्ठल और रुक्मणि की महापूजा देखने के लिए एकत्रित होते हैं।
 
 
8. भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से पताका-डिंडी लेकर इस तीर्थस्थल पर लोग पैदल चलकर पहुंचते हैं। इस यात्रा क्रम में कुछ लोग अलंडि में जमा होते हैं और पुणे तथा जजूरी होते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं। इनको ज्ञानदेव माउली की डिंडी के नाम से दिंडी जाना जाता है।

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