सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का संक्षिप्त परिचय

सम्राट चन्द्रगुप्त महान थे। उन्हें चन्द्रगुप्त महान कहा जाता है। सिकंदर के काल में हुए चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के सेनापति सेल्युकस को दो बार बंधक बनाकर छोड़ दिया था। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य थे। चन्द्रगुप्त ने अपने पुत्र बिंदुसार को गद्दी सौंप दी थीं। बिंदुसार के समय में चाणक्य उनके प्रधानमंत्री थे। इतिहास में बिंदुसार को 'महान पिता का पुत्र और महान पुत्र का पिता' कहा जाता है, क्योंकि वे चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र और सम्राट अशोक महान के पिता थे।
 
 
चंद्रगुप्त मौर्य का पारिवारिक परिचय:
चन्द्रगुप्त महान के प्रारंभिक जीवन के बारे में जानकारी हमें जैन और बौद्ध ग्रंथों से प्राप्त होती है। विशाखदत्त के नाटक 'मुद्राराक्षस' में चन्द्रगुप्त को नंदपुत्र न कहकर मौर्यपुत्र कहा गया है। यह भी कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त मुरा नाम की भील महिला के पुत्र थे। यह महिला धनानंद के राज्य में नर्तकी थी जिससे राजाज्ञा से राज्य छोड़कर जाने का आदेश दिया गया था और वह महिला जंगल में रहकर जैसे-तैसे अपने दिन गुजार रही थी।
 
 
कहते हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ई. पूर्व में मौरिय अथवा मौर्य वंश के कुल में हुआ था। चंद्र गुप्त मौर्य की माता का नाम मुरा था। अन्य यह मानते हैं कि वह मयूर टोमेर्स के मोरिया जनजाति के थे। कहते हैं कि वे जन्म से ही गरीब थे, उनके पीता नन्दों की सेना में एक अधिकारी थे जो किसी कारणवंश नन्दों द्वारा मार दिए गए थे। उनके पिता की मौत उसके जन्म लेने से पहले ही हो गई थी। जब चन्द्रगुप्त 10 वर्ष के थे तो उनकी मां मुरा का भी देहांत हो गया था और तब से उनकी परवरिश आचार्य चाणक्य ने की थी।
 
 
चंद्रगुप्त के तीन विवाह हुए थे। उनकी प्रथम पत्नी का नाम दुर्धरा था। दुर्धरा से बिंदुसार का जन्म हुआ। दूसरी पत्नी यूनानी की राजकुमारी कार्नेलिया हेलेना या हेलन थी, जो सेल्युकस की पुत्री थीं। हेलेना से जस्टिन नाम का पुत्र हुआ। कहते हैं कि उनकी एक तीसरी पत्नी भी थीं जिसका नाम नाम चंद्र नंदिनी था।
 
 
अखंड भारत
चाणक्य और पोरस की सहायता से चन्द्रगुप्त मौर्य मगध के सिंहासन पर बैठे और चन्द्रगुप्त ने यूनानियों के अधिकार से पंजाब को मुक्त करा लिया। चंद्रगुप्त मौर्य ने नंदवंशीय शासक धनानंद को पराजित कर 25 वर्ष की अल्पायु में मगध के सिंहासन की बागडोर संभाली थी। चंद्रगुप्त का नाम प्राचीनतम अभिलेख साक्ष्य रुद्रदामन का जुनागढ़ अभिलेख में मिलता है।
 
 
चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन-प्रबंध बड़ा व्यवस्थित था। इसका परिचय यूनानी राजदूत मेगस्थनीज के विवरण और कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' से मिलता है। चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र था। 18 महाजनपदों में बंटे भारत में उसका जनपद सबसे शक्तिशाली था। चन्द्रगुप्त से पूर्व मगध पर क्रूर धनानंद का शासन था, जो बिम्बिसार और अजातशत्रु का वंशज था।
 
 
चंद्रगुप्त-धनानंद युद्ध : चाणक्य के शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य (322 से 298 ईपू तक) का धनानंद से जो युद्ध हुआ था उसने देश का इतिहास बदलकर रख दिया। प्राचीन भारत के 18 जनपदों में से एक था महाजनपद- मगध। मगध का राजा था धनानंद। इस युद्ध के बारे में सभी जानते हैं। चंद्रगुप्त ने उसके शासन को उखाड़ फेंका और मौर्य वंश की स्थाप‍ना की।
 
 
चंद्रगुप्त मौर्य जा जैन धर्म की ओर ज्यादा झुकाव हो चला था। वे अपने अंतिम समय में अपने पुत्र बिंदुसार को राजपाट सौंपकर जैनाचार्य भद्रबाहू से दीक्षा लेकर उनके साथ श्रवणबेलागोला (मैसूर के पास) चले गए थे। तथा चंद्रगिरी पहाड़ी पर काया क्लेश द्वारा 297 ईसा पूर्व अपने प्राण त्याग दिए थे।
 

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