शिव को भस्म क्यों चढ़ाई जाती है, जानिए यहां भस्म आरती के राज

अनिरुद्ध जोशी

रविवार, 26 जुलाई 2020 (15:05 IST)
भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म धारण करते हैं। यह भस्म कई प्रकार से बनती है, लेकिन कहते हैं कि खासकर मुर्दे की भस्म ही महाकाल में चढ़ाई जाती है। हालांकि वर्तमान में मुर्दे की भस्म का उपयोग नहीं होता है। आओ जानते हैं शिव की भस्म और भस्मारती के रहस्य।
 
 
शिव पर क्यों चढ़ाई जाती है भस्म :
1. जब माता सती अपने पति शिव के अपमान के चलते अपन पिता दक्ष के यज्ञ में कूदकर जलकर मर गई तो इस घटना से शिवजी बहुत आहत हो गए। उन्होंने राजा दक्ष का नाश करने के बाद उस जलती अग्नि से अपनी पत्नी सती के शव को निकाला और वह क्रोधित, दुखी एवं बैचेन होकर प्रलाप करते हुए धरती पर भ्रमण करने लगे। जहां जहां माता के शरीर के अंग गिरे वहां वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। उनके इस दुख के कारण सृष्टि खतरे में पड़ गई जिसके चलते भगवान विष्णु ने उनके शरीर को अपनी माया से भस्म में परिवर्तित कर दिया। फिर भी शिव का प्रलाप और दुख नहीं मिटा तो शिव ने अपनी प्रिया की निशानी के तौर पर उस भस्म को अपने शरीर पर मल लिया। कहते हैं इसीलिए शिवजी भस्म धारण करते हैं, लेकिन इसके और भी कई कारण हैं।
 
 
2. किसी भी पदार्थ का अंतिम रूप भस्म होता है। किसे भी जलाओ तो वह भस्म रूप में एक जैसा ही होगा। मिट्टी को भी जलाओ तो वह भस्म रूप में होगी। सभी का अंतिम स्वरूप भस्म ही है। भस्म इस बात का संकेत भी है कि सृष्टि नश्वर है। शिवजी भस्म धारण करके सभी को यही बताना चाहते हैं कि इस देह का अंतिम सत्य यही है।

 
3. हिन्दू धर्म के संन्यासियों में से एक नागा सन्यासी अपने पूरे शरीर पर भभूत धारण करते हैं। नागाओं में भी दिगंबर साधु ही शरीर पर भस्मी या भभूत लगाते हैं। यह भस्मी या भभूत ही उनका वस्त्र और श्रृंगार होता है। यह भभूत उन्हें बहुत सारी आपदाओं से बचाती है। कहते हैं कि भस्म का स्नान करने के कई चमत्कारिक फायदे हैं। नवनाथ पंथ में कहते हैं कि उलटन्त बिभूत पलटन्त काया। अर्थात यह भभूत काया को शुद्ध तथा तेजस्वी बनाती है। चढ़ी भभूत घट हुआ निर्मल। अर्थात भभूत मन की मलिनता को हटाकर मन को निर्मल तथा पवित्र करती है।

 
4. नागा बाबा या तो किसी मुर्दे की राख को शुद्ध करके शरीर पर मलते हैं या उनके द्वारा किए गए हवन की राख को शरीर पर मलते हैं या‍‍ फिर यह राख धुनी की होती है। कई सन्यासी तथा नागा साधु पूरे शरीर पर भस्म लगाते हैं। कहते हैं कि यह भस्म उनके शरीर की कीटाणुओं से तो रक्षा करता ही है तथा सब रोम कूपों को ढंककर ठंड और गर्मी से भी राहत दिलाती है। रोम कूपों के ढंक जाने से शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकल पाती इससे शीत का अहसास नहीं होता और गर्मी में शरीर की नमी बाहर नहीं होती। इससे गर्मी से रक्षा होती है। मच्छर, खटमल आदि जीव भी भस्म रमे शरीर से दूर रहते हैं। नागा साधु अपने पूरे शरीर पर भभूत मले, निर्वस्त्र रहते हैं।

 
5. कई बार आपने सुना होगा कि किसी बाबा ने भभूत खिलाकर रोगी को ठीक कर दिया या फलां जगह मंदिर आश्रम आदि की भभूत खाकर लोग चमत्कारिक रूप से ठीक हो गए। दरअसल, आयुर्वेद में कई तरह की भस्म का उल्लेख किया गया है। जैसे जड़ी-बूटियों या स्वर्ण, रजत, शंख, हीरक, मुक्ताशुक्ति गोदंती, अभ्रक आदि कई तरह की भस्म होती है। उक्त भस्म को खाने से लाभ मिलता है। यज्ञ या हवन की सामग्री से बनी भभूत को भी कई तरह के रोग का नाशक माना गया है, लेकिन इस तरह की भभूत खाने से पहले यह जानना जरूरी है कि वह विश्वसनीय स्थान की है या नहीं।

 
माथे पर विभूति लगाने से आपके भीतर की नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और आज्ञाचक्र सक्रिय होता है। इससे मानसिक रूप से शांति मिलती है और विचार शुद्ध होते हैं। गले में लगाने से विशुद्ध चक्र जागृत होता है। छाती के मध्य में लगाने से अनाहत चक्र जागृत होता है। उपरोक्त बिंदुओं पर भभूति लगाने से विवेक जागृत होता है।

 
भस्म आरती के राज : 
1. महाकाल की 6 बार आरती होती हैं, जिसमें सबसे खास मानी जाती है भस्‍म आरती। भस्‍म आरती यहां भोर में 4 बजे होती है। कालों के काल महाकाल के यहां प्रतिदिन अलसुबह भस्म आरती होती है। इस आरती की खासियत यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। इस आरती में शामिल होने के लिए पहले से बुकिंग की जाती है।
 
2. सबसे पहले भस्म आरती, फिर दूसरी आरती में भगवान शिव घटा टोप स्वरूप दिया जाता है। तीसरी आरती में शिवलिंग को हनुमान जी का रूप दिया जाता है। चौथी आरती में भगवान शिव का शेषनाग अवतार देखने को मिलता है। पांचवी में शिव भगवान को दुल्हे का रूप दिया जाता है और छठी आरती शयन आरती होती है। इसमें शिव खुद के स्‍वरूप में होते हैं।
 
3. इस आरती में महिलाओं के लिए साड़ी पहनना जरूरी है। जिस वक्‍त शिवलिंग पर भस्‍म चढ़ती है उस वक्‍त महिलाओं को घूंघट करने को कहा जाता है। मान्‍यता है कि उस वक्‍त भगवान शिव निराकार स्‍वरूप में होते हैं और इस रूप के दर्शन महिलाएं नहीं कर सकती। पुरुषों को भी इस आरती को देखने के लिए केवल धोती पहननी होती है। वह भी साफ-स्‍वच्‍छ और सूती होनी चाहिए। पुरुष इस आरती को केवल देख सकते हैं और करने का अधिकार केवल यहां के पुजारियों को होता है।
 
4. प्राचीन मान्यताओं के अनुसार दूषण नाम के एक राक्षस की वजह से अवंतिका में आतंक था। नगरवासियों के प्रार्थना पर भगवान शिव ने उसको भस्म कर दिया और उसकी राख से ही अपना श्रृंगार किया। तत्पश्चात गाव वालों के आग्रह पर शिवजी वहीं महाकाल के रूप में बस गए। इसी वजह से इस मंदिर का नाम महाकालेश्‍वर रख दिया गया और शिवलिंग की भस्‍म से आरती की जाने लगी।
 
5. ऐसा भी कहते हैं कि यहां श्‍मशान में जलने वाली सुबह की पहली चिता से भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है। इस भस्‍म के लिए पहले से लोग मंदिर में रजिस्‍ट्रेशन कराते हैं और मृत्‍यु के बाद उनकी भस्‍म से भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है।
 
6. हालांकि यह भी कहा जाता है कि श्रौत, स्मार्त और लौकिक ऐसे तीन प्रकार की भस्म कही जाती है। श्रुति की विधि से यज्ञ किया हो वह भस्म श्रौत है, स्मृति की विधि से यज्ञ किया हो वह स्मार्त भस्म है तथा कण्डे को जलाकर भस्म तैयार की हो तो वह लौकिक भस्म कही जाती है। विरजा हवन की भस्म सर्वोत्कृष्ट मानी है। हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को भस्म (जलाना) करते हैं। इस भस्म की हुई सामग्री की राख को कपड़े से छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता है। इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। इस तरह से तैयार भस्मी को समय-समय पर लगाया जाता है। यही भस्मी नागा साधुओं का वस्त्र होता है। इसी तरह की भस्म से आरती भी होती है।

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