Shri Krishna 27 Sept Episode 148 : कुरुक्षेत्र में अर्जुन का विषाद और श्रीकृष्ण के सांख्य योग का ज्ञान

अनिरुद्ध जोशी

रविवार, 27 सितम्बर 2020 (22:30 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 27 सितंबर के 148वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 148 ) में युद्ध क्षेत्र कुरुक्षेत्र में अर्जुन अपने बंधु बांधवों को देखकर श्रीकृष्ण से कहता है कि मैं अपने ही लोगों के वध अपने हाथ खून से नहीं रंगना चाहता। तब श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि यदि तुम इनका वध नहीं करोगे तो ये तुम्हारा वध कर देंगे।
 
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
संजय यह दृष्य देखकर कहता है- महाराज अर्जुन की ये दशा देखकर दोनों ओर की सेनाएं आश्चर्य चकित हो गई है। कौरव पक्ष की सेनाएं खुश होकर जयघोष कर रही है। यह सुनकर धृतराष्ट्र खुश होकर कहते हैं- संजय अर्जुन ही पांडवों की शक्ति है। यदि अर्जुन ने ही युद्ध करने से इनकार कर दिया तो अब युद्ध कैसे होगा, पांडव विजयी कैसे होंगे। यह कहकर धृतराष्ट्र हंसने लगते हैं। फिर कहते हैं- हे संजय मैं जानता था कि पांडव युद्ध से अवश्य कतराएंगे। अपने कुल का संहार टालने के लिए युद्ध नहीं करेंगे। मेरा अनुमान सही निकला संजय, अब युद्ध नहीं होगा। 
 
उधर, युद्ध भूमि में अर्जुन कहता है- कृष्णा मैं अपने ही सगे-संबंधियों का खून कैसे बहा सकता हूं? गुरुदेव तो एक शिष्य के लिए पिता और भगवान के समान होते हैं तो फिर मैं उनका अनादर कैसे कर सकता हूं। मैं इतना गिरा और ओछा मनुष्य नहीं हूं और पितामह वो तो आदरणीय ही नहीं पूजनीय भी हैं। इतने पूजनीय की जिनके आगे में नजर नहीं उठा सकता हूं उनके आगे हथियार कैसे उठा सकता हूं?...इस तरह अर्जुन कई तरह की निराशा और द्रवित भाव वाली बातें करता है।
 
युद्ध भूमि में अर्जुन कहता है- कृष्णा मैं अपने ही सगे-संबंधियों का खून कैसे बहा सकता हूं? गुरुदेव तो एक शिष्य के लिए पिता और भगवान के समान होते हैं तो फिर मैं उनका अनादर कैसे कर सकता हूं। मैं इतना गिरा और ओछा मनुष्य नहीं हूं और पितामह वो तो आदरणीय ही नहीं पूजनीय भी हैं। इतने पूजनीय की जिनके आगे में नजर नहीं उठा सकता हूं उनके आगे हथियार कैसे उठा सकता हूं?...इस तरह अर्जुन कई तरह की निराशा और द्रवित भाव वाली बातें करता है।
 
अंत में अर्जुन अपना धनुष रथ पर नीचे रख देता है। हे कृष्‍ण मैं कुलघाती होने के पाप स्वयं अपने हाथों अपने माथे पर कैसे लिखूं। इसलिए मैं युद्ध नहीं करूंगा, मैं युद्ध नहीं करूंगा। ऐसा कहकर अर्जुन अपने धनुष और बाण को नीचे रख देता है।
 
उधर, धृतराष्ट्र संजय से पूछता है- संजय क्या अर्जुन ने अपना धनुष नीचे रख दिया? तब संजय कहता है- हां महाराज। इस पर धृतराष्ट्र कहता है- संजय यही अवसर है, सुनहरा अवसर क्योंकि अर्जुन ने अपना गांडिव नीचे रख दिया और कृष्ण तो पहले से ही नि:शस्त्र हैं। ऐसे में यदि पितामह ने पांडवों की सेना पर आक्रमण कर दिया तो फिर कौरवों की विजय निश्‍चित होगी क्योंकि अर्जुन के बिना पांडवों की सेना एक शस्त्रहीन सेना के समान है और एक शस्त्रहीन सेना को हराना कोई कठिन कार्य नहीं होता और फिर पांडवों को इंद्रप्रस्थ तो क्या पांच गांव देने की भी आवश्यकता नहीं होगी और फिर मेरा प्रिय पुत्र दुर्योधन संपूर्ण भारतवर्ष का सम्राट होगा। 
 
यह सुनकर संजय कहता है- क्षमा करें महाराज, आप ये कैसी अधर्म की बातें कर रहे हैं? एक क्षत्रिय को ये शोभा नहीं देता। एक नि:शस्त्र योद्धा और उसकी सेना पर वार नहीं किया जाता यह धर्म विरूद्ध है। फिर भी कौरव अधर्म का मार्ग अपनाएंगे इस शंका के कारण वासुदेव श्रीकृष्‍ण ने उपदेश देने से पहले अपनी दैवीय शक्ति द्वारा कुरुक्षेत्र पर समय की गति को रोक दिया है। रणभूमि में कौरव और पांडवों के वीर-महावीर और सेनाएं पत्‍थर की भांति अचल खड़ी हैं। श्रीकृष्‍ण और अर्जुन में क्या चर्चा हो रही है इसका किसी को ज्ञान नहीं है क्योंकि समय भी श्रीकृष्ण के मुख से निकलने वाले हर शब्द को सुनने के लिए जैसे थम गया है। 
 
यह सुनकर धृतराष्ट्र कहते हैं- मैं जानता था कि ये कृष्ण अवश्य कोई चाल चलेगा। संजय मुझसे बड़ी भूल हो गई। यदि उस समय मैं श्रीकृष्‍ण को बंदी बनाने में दुर्योधन का साथ दिया होता तो आज ये दिन देखना नहीं पड़ता।
 
उधर, अर्जुन कहता है- तथा हे जनार्दन! जिन प्राणियों के कुल नष्ट हो गए हैं उन प्राणियों का नर्क में अनंतकाल तक वास होता है। इससे तो अच्छा है कि मैं कमंडल लेकर घर-घर भिक्षा मांगता फिरूं। यह सुनकर श्रीकृष्‍ण कहते हैं- वाह अर्जुन कितने सुंदर विचार हैं। मैं युद्ध नहीं करूंगा, मैं भिक्षा मांग लूंगा। हे अर्जुन ये बात कोई वीर नहीं केवल एक कायर कर सकता है। क्या तुम अपनी कायरता का प्रदर्शन करने के लिए इस युद्ध भूमि पर आए थे? क्या इसीलिए तुमने भगवान शिव से पाशुपतास्त्र ग्रहण किया था? क्या तुम्हें अपनी माता कुंती का अंतिम संदेश याद नहीं कि जब भी मेरे सम्मुख आओ तो विजय बनकर आओ और अपने माथे पर कौरवों के रक्त से विजय तिलक लगाकर आओ। हे अर्जुन! याद रखो अपनी माता के उस वचन को निभाने की जिम्मेदारी तुम पर है। इसलिए अपने हृदय की तुच्छ दुर्बलता का त्याग करके क्षत्रियों की भांति युद्ध करो क्योंकि क्षत्रियों का धर्म है युद्ध करना। 
 
तब अर्जुन कहता है- हे मधुसुदन! मैं भी जानता हूं कि मैं क्षत्रिय हूं और युद्ध करना मेरा धर्म है परंतु इस युद्ध भूमि में युद्ध अभिलाषी इस स्वजन समूह को देखकर मेरा शरीर ढीला पड़ रहा है। मेरी आत्मा कांप रही है, मेरा गला सूख रहा है। हे मधुसुदन! परस्पर विरोधी विचारों के आक्रमण से मेरी मति भ्रमित हो गई है। इस दुविधा के कारण मुझे मेरा मार्ग स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा। हे कृष्ण तुम मेरे गुरु हो, भगवान हो, मैं तुम्हारी शरण में आया हूं, अब तुम्हीं मेरा मार्ग दर्शन करो। मुझे रास्ता बताओ कि क्या उचित है और क्या अनुचित। ऐसा कहकर अर्जुन हाथ जोड़कर श्रीकृष्‍ण के चरणों में बैठ जाता है।
 
उधर, भगवान शिव के पास पार्वती माता आकर कहती हैं- क्या बात है प्रभु आज आपने अपनी तपस्या अधूरी ही छोड़ दी। तब शिवजी बताते हैं कि आज धरती पर भगवान श्रीकृष्ण अपने मानव अवतार में आज जो ब्रह्मज्ञान देने जा रहे हैं वह कभी अदादिकाल में उन्होंने सूर्यदेवता को दिया था। उस ज्ञान को उन्हीं के श्रीमुख से सुनने का अवसर मैं खो नहीं सकता। मैं तो क्या समस्त देवी-देवता इस समय सावधान हो गए हैं। आकाश से पाताल तक सृष्टि जैसे थम गई है। जैसे काल की गति भी थम गई है और महाकाल स्वयं प्रभु की वाणी सुनने के लिए कुरुक्षेत्र में रुक गए हैं। तुम भी ध्यान से सुनो देवी प्रभु अर्जुन को क्या समझा रहे हैं। 
 
अर्जुन के विषाद के बाद श्रीकृष्‍ण उसे सांख्य योग का उपदेश देते हैं और कहते हैं कि मोह छोड़कर अपने शस्त्र उठा। 
 
यह सुनकर धृतराष्ट्र कहता है- संजय ये कृष्ण अपना सारथी धर्म भूल गया है। युद्ध के समय सारथी को अपने स्वामी के आदेश का पालन करके रथ का संचालन करना चाहिए और संकट के समय यदि आवश्यक हो तो अपने स्वामी की रक्षा करने के लिए उसे सुरक्षित स्थान पर ले जाना चाहिये। परंतु कृष्ण जो कर रहा है वह सारथी धर्म के विरूद्ध है। यदि अर्जुन युद्ध नहीं करना चाहता तो कृष्ण उसे युद्ध करने के लिए क्यों उकसा रहा है। यह वासुदेव बड़ा ही चतुर है, उसकी बातें जितनी मीठी हैं उतनी ही विषैली भी हैं। मेरा अर्जुन तो अभी बच्चा है, कच्चे कान का है। यदि वह कृष्‍ण के बहकावे में आ गया तो फिर युद्ध अनिवार्य हो जाएगा। संजय तुम जरा मुझे बताना की ये कृष्ण इस समय अर्जुन को कौन-सा पाठ पढ़ा रहा है। 
 
श्रीकृष्ण अर्जुन को सभी तरह के उपदेश देते हैं और कहते हैं कि तुम क्या समझते हो तुम्हारे नहीं मारने से ये सब नहीं मरेंगे। नहीं अर्जुन नहीं, तुम इन्हें नहीं मारोगे तब भी ये मरेंगे। क्योंकि इनके प्रारब्ध ने इनकी मृत्यु का दिन, समय और क्षण तो पहले से ही निश्चित कर दिया है। उसी विधान के अनुसार मैं तो इन्हें पहले ही मार चुका हूं। तुम तो केवल माध्यम मात्र हो। तुम्हारे माध्यम से मैं इन सबका वध करना चाहता हूं। तुम इसे अपना कर्तव्य समझो या प्रारब्ध, तुम्हें इन सबका वध करना ही है।

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.27।।
 
इस तरह श्रीकृष्‍ण अर्जुन को कई तरह से समझाकर युद्ध को करने के बारे में कहते हैं। श्रीकृष्ण के इस ज्ञान को पढ़ने के लिए आगे क्लिक करें... श्रीमद्भगवत गीता
 
जय श्रीकृष्णा।
 
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