Shri Krishna 16 Oct Episode 167 : दुर्योधन कौरव सेना को देता है शिखंडी का वध करने का आदेश

अनिरुद्ध जोशी

शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2020 (22:53 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 16 अक्टूबर के 167वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 167 ) में भीष्म पितामह जब अगले दिन पांडवों का वध करने की प्रतिज्ञा ले लेते हैं तो तब श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी भीष्म पितामह के पास पर्दा करके जाती है और खुद को एक आप सैनिक की पत्नी की तरह प्रस्तुत करके उनसे सौभाग्यवती बने रहने का आशीर्वाद ले लेती है। पितामह भीष्म से द्रौपदी जब सौभाग्यवती का आशीर्वाद ले लेती हैं तब पितामह को पता चलता है कि यह तो द्रौपदी है। तभी वहां पर श्रीकृष्‍ण और अन्य पांडव पहुंचकर पितामह को प्रणाम करते हैं।
 
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फिर पितामह कहते हैं कि तुमने तो मुझे धर्म संकट में डाल दिया है। फिर पितामह कहते हैं कि मेरी प्रतिज्ञा के पहले ही अर्जुन मेरा वध कर दे और उस वक्त तुम सभी पांडव उसका साथ देना, यह मेरी आज्ञा है। इस तरह मेरी प्रतिज्ञा भी रह जाएगी और द्रौपदी को दिया आशीर्वाद भी बरकरार रहेगा।
 
फिर अगले दिन के युद्ध में जब भीम जाता है भीष्म पितामह से लड़ने तो दुर्योधन फिर चीखता है कि पितामह अपनी प्रतिज्ञा को याद कीजिये और वध कर दीजिये भीम का। फिर बड़े ही संकोच से पितामह भीम से युद्ध करने लग जाते हैं। तभी वहां पर अर्जुन आकर कहता है कि पितामह मैं आपको युद्ध के लिए आमंत्रित करता हूं। तब पितामह कहते हैं कि अर्जुन मैं तुम्हारे निमंत्रण को स्वीकार करता हूं। तभी श्रीकृष्ण रथ में लेटे शिखंडी को इशारा करते हैं तो वह उठ खड़ा होता है और अर्जुन के आगे खड़ा होकर कहता है कि मेरा भी निमंत्रण स्वीकार कीजिये पितामह, मुझसे युद्ध कीजिये। 
 
यह देखकर द्रोणाचार्य, दुर्योधन, कृतवर्मा, शकुनि आदि भी आश्चर्य से कहते हैं कि अर्जुन के रथ पर शिखंडी!!! शकुनि कहता है कि यह कौनसी चाल चली है पांडवों ने? यह बात संजय धृतराष्ट्र को बताता है तो वह भी आश्‍चर्य करता है और कहता है कि संजय ये शिखंडी रथ पर क्या कर रहा है? संजय क्या पितामह ने शिखंडी के निमंत्रण को स्वीकार किया? तब संजय कहता है कि नहीं महाराज पितामह तो युद्ध करते-करते रुक गए हैं। उनका धनुष झुक गया है।
 
दुर्योधन कहता है कि पितामह आप रुक क्यों गए? धनुष पर बाण चढ़ाकर संधान क्यों नहीं करते, आपका धनुष झुक क्यों गया? यह सुनकर पितामह कहते हैं कि दुर्योधन मैं किसी स्त्री पर बाण नहीं उठाता, इसलिए मैं शिखंडीनी से युद्ध नहीं करूंगा। वह मेरे और अर्जुन के बीच अर्जुन की ढाल बनकर खड़ी हो गई है। इसलिए मैं उस पर बाण नहीं चला सकता, क्योंकि वह एक स्त्री है। यह सुनकर शिखंडी कहता है कि पितामह यदि आप अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर सकते हो तो क्या, मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूंगा। आप मुझ पर वार करना नहीं चाहते परंतु मैं आप पर अवश्‍य वार करूंगा। ऐसा कहकर शिखंडी अपने एक तीर से भीष्म को घायल कर देता है।
 
दुर्योधन कहता है कि मामाश्री पितामह शिखंडी का वध नहीं कर सकते तो क्या हुआ, हम तो कर सकते हैं। फिर दुर्योधन सभी कौरव वीरों को आदेश देता है कि जाओ शिखंडी का वध कर दो वर्ना पितामह का वध हो जाएगा। यह देखकर युधिष्ठिर भी सभी को आदेश देता है कि शिखंडी को बचाओ। इस तरह सभी में घमासान शुरू हो जाता है। यह देखकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि पार्थ यही उचित अवसर है पितामह का वध करने का। यदि ये अवसार भी तुमने गवां दिया तो फिर पांडवों का वध निश्‍चित है, सोचो मत पार्थ। यह सुनकर अर्जुन कहता है कि परंतु माधव पितामह ने अपना धनुष नीचे कर दिया है। मैं एक नि:शस्त्र योद्धा पर कैसे वार कर सकता हूं? 
 
इस पर श्रीकृष्ण कई तरह से अर्जुन को समझाते हैं और कहते हैं कि शिखंडी के बाण तो पितामह का कवच नहीं तोड़ पाएंगे फिर उनका वध करना तो दूर की बात है। तब अर्जुन कहता है कि इस तरह शिखंडी की आड़ लेकर बाण चलाना छत्रिय का धर्म नहीं है केशव। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि जिस तरह तुमने कवच पहना है उसी तरह तुम शिखंडी को अपना कवच समझो। यदि इस समय तुमने पितामह का वध नहीं किया तो समझ लो की तुम्हारे चारों भाइयों की मौत निश्‍चित है क्योंकि तुम्हारे भाइयों की मृत्यु के लिए तो पितामह का एक-एक बाण ही काफी है। यह सुनकर अर्जुन शिखंडी के पीछे से पितामह के ऊपर तीरों की बरसात करके पितामह के शरीर को छेद देता है।
 
यह देखकर दुर्योधन चीखता है और उधर, धृतराष्ट्र को यह घटना संजय बताता है कि अर्जुन के बाणों से पितामह का शरीर छलनी-छलनी हो गया है महाराज किसी भी क्षण पितामह का पतन हो जाएगा। उनकी अवस्था अच्छी नहीं है महाराज।... फिर पितामह धरती पर गिर पड़ते हैं तब सभी महारथी अपना अपना मुकुट निकालकर‍ शरशैया पर लेटे पितामह के पास पहुंच जाते हैं। फिर पितामह कहते हैं कि मेरे वीर पुत्रों तुम सबका स्वागत है।... फिर वहां पर कई तरह की भावुक बाते होती है। अर्जुन खुद को अपराधी मानता है तो पितामह उसे समझाते हैं। 
फिर वे अपने सिरहाने की मांग करते हैं तो दुर्योधन लाने का आदेश देता है परंतु भीष्म पितामह उसे रोककर अर्जुन से तकिया बनाने का कहते हैं। तब अर्जुन अपने बाणों से पितामह के लिए एक सिरहाना बना देता है। फिर पितामह को प्यास लगती है और वे गंगाजल पीने की इच्छा जताते हैं तो अर्जुन अपने धनुष बाण का संधान करके माता गंगा की स्तुति करने के बाद धरती को छेद कर वहां पर गंगा की धारा के बीच माता गंगा प्रकट हो जाती है। सभी उन्हें प्रणाम करते हैं और माता गंगा श्रीकृष्ण को प्रणाम कहती हैं। 
 
फिर भीष्म पितामह गंगा को प्राणाम करते हैं तो गंगा माता कहती है कि पुत्र इस अवस्था में क्या आशीर्वाद दूं? फिर माता गंगा उन्हें जल पिलाती है और कहती है कि पुत्र तुम जब तक अपनी इच्छा से यह देह नहीं त्यागोगे तब तक मेरा ये जय तुम्हारी प्यास बुझाता रहेगा और तुम्हें शीतलता प्रदान करेगा। फिर माता गंगा वहां से चली जाती है। अंत में भीष्म पितामह सभी से संवाद करते हैं और अंत में कहते हैं कि मुझे अब एकांत की आवश्यकता है और मुझे दुर्योधन से अकेले में बातें करनी है। फिर भीष्म पितामह दुर्योधन को अकेले में समझाते हैं कि अर्जुन से जीतने का सामर्थ तुममें से किसी में भी नहीं हैं इसलिए अब भी समय शेष है कि तुम पांडवों से समझौता कर लो। जय श्रीकृष्णा।
 
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