शूटआउट एट विएनावाला

दुनिया में करोड़ों लोग यूँ ही फुटबॉल के दीवाने नहीं हो गए हैं। खिलाड़ी इसके लिए जीते हैं और मरते हैं। आँसू बहाते हैं और सीना फुलाते हैं। जो हारते हैं उन्हें 40 हजार लोगों से भरे खचाखच स्टेडियम में रोने में कतई शर्म नहीं आती क्योंकि वे जानते हैं कि गिरते-पड़ते और पूरे दमखम और जोश से खेलते हुए हारे हैं।

वे हारते हैं तो रोते हैं, लेकिन लज्जित नहीं होते। और जो जीतते हैं, वे हारे हुए खिलाड़ियों को गले से लगाना नहीं भूलते। वे हाथ मिलाते हैं, गले मिलते हैं और अपनी रगड़ों, खरोंचों और चोटों को भूलते हुए, अपना पसीना पोंछते हैं, सिर उठाते हैं और जर्सी की अदला-बदली करते हैं। वे दर्शकों का अभिवादन स्वीकार करते हुए विदा लेते हैं कि ऐसे ही अपना बेहतरीन खेल खेलते रहेंगे और फुटबॉल को हमेशा जिंदा रखेंगे। वे जानते हैं यही उनका धर्म और कर्म है। इससे वे अपनी हार को और अपनी जीत को एक जिंदगी भर धड़कने वाला अर्थ देते हैं।

पिछले सोमवार मैंने लिखा था कि लोग इसके लिए मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। यही हुआ भी। यूरो-2008 में शुक्रवार की आधी रात को हुए विएना में क्वार्टर फाइनल को जिसने भी देखा वह इसे ताजिंदगी भूल नहीं पाएगा। क्रोएशिया और तुर्की के बीच हुए इस मैच के अंतिम पलों का खेल साँस रोक देने वाला था।

रोमांच इतना था कि खिलाड़ी से लेकर कोच और प्रशंसक तक अपनी उत्तेजना पर काबू नहीं कर पा रहे थे। वे उछलते थे और निराश होते थे। दोनों टीमों के प्रशंसकों के बीच तो हिंसक झड़पें हुईं, इसमें कुछ तो घायल हो गए। पुलिस को उन्हें नियंत्रित करना पड़ा।

इस मैच में तुर्की ने क्रोएशिया को पेनल्टी शूटआउट में 3-1 से हरा दिया, जबकि तय समय में कोई टीम गोल नहीं कर पाई और मैच एक्स्ट्रा टाइम में चला गया।15-15 मिनट के एक्स्ट्रा टाइम (पुराने नियम के अनुसार एक्स्ट्रा टाइम में जो टीम गोल कर देती थी मैच वहीं खत्म हो जाता था, लेकिन नए नियमों के अनुसार गोल होने के बावजूद 15-15 मिनट का समय पूरा किया जाता है) के अंतिम क्षणों में यानी मैच के 34वें मिनट में मोद्रिच के एक सुंदर पास पर इवान क्लासनिच ने गोल कर चुर्की को अचंभित कर दिया और लगभग अपनी जीत मानकर बल्लियाँ उछल पड़े, लेकिन उनकी खुशियाँ तीस सेकंड में ही काफूर हो गईं क्योंकि मैच खत्म होने के पाँच-दस सेकंड्स पहले सेमीह ने गोल कर क्रोएशिया को अचंभे में डाल दिया।

नियमित समय का यह मैच बहुत धीमा था और दोनों ही टीमें एक-दूसरे को परखते हुए, चालों और गति को समझते हुए सावधानी से खेल रही थीं। दोनों टीमों का खेल रक्षात्मक था। हालाँकि क्रोएशिया को कम से कम तीन-चार मौके ऐसे आए जब वे गोल कर सकते थे, लेकिन उनकी फिनिशिंग कमजोर थी और गोलपोस्ट से दूर। तुर्की ने अपनी डिफेंस इतनी तगड़ी रख रखी थी कि क्रोएशिया की अग्रिम पंक्ति को डी में घुसने के मौके कम दिए और टाइम गोलरहित रहा। इस मैच का जो भी रोमांच था वह अंतिम पलों में था, जब दोनों टीमों ने एक-एक गोल कर दिया। अंततः पेनल्टी शूटआउट में तुर्की 3-1 से जीत गया।

ऐसे कठिन और रोमांचक क्षणों में कोच की टफनेस काम आती है। यहाँ जरा तुर्की के कोच फातिह तेरीम की बातों पर गौर फरमाइए। जब अंतिम क्षणों ने क्रोएशिया ने गोल कर दिया और तुर्की के खिलाड़ी अपनी हार मान चुके थे तब उनके कोच के शब्द उनके लिए किसी रोशनी की तरह फूटे थे और ये शब्द उनके दिलों में उतरकर आत्मविश्वास में बदल गए।

तुर्की के कोच ने अपने खिलाड़ियों से कहा कि यह फुटबॉल है, तब तक हार मत मानो जब तक रैफरी अपनी आखिरी सीटी नहीं बजाता। और देखिए इन शब्दों ने क्या कमाल किया। मैच खत्म होने के सिर्फ कुछ ही पलों पहले तुर्की ने गोल मारकर मैच बराबर कर दिया। बस यहीं से रोमांच के वे पल शुरू होते हैं जब शूटआउट के दोनों गोलकीपर और पाँच-पाँच खिलाड़ी तैयार हुए। स्टेडियम में बैठ दर्शक अपनी साँस थामे दुनिया के इस सबसे सुंदर खेल को देख रहे थे। 3-1 से हारने के बाद क्रोएशिया के कोच बिलिच ने क्या कहा इस पर भी गौर करें।

उन्होंने कहा- इसीलिए तो फुटबॉल इस धरती पर सबसे रोमांचक और ड्रामेटिक खेल है। मैंने पहले भी कहा था, अब भी कह रहा हूँ, रात को जागिए और फुटबॉल के जादू में खो जाइए। बुधवार को बेसल (स्विट्जरलैंड) में तुर्की का सेमीफाइनल में मुकाबला जर्मनी से होगा।

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