राजिम मेला कब, क्यों और कहां लगता है?

Rajim kumbh mela date 2024: देशभर में पवित्र नदियों के पास माघ पूर्णिमा के दिन माघ मेले का आयोजन होता है। खासकर प्रयाग में माघ मेला लगता है जिसे कुंभ मेला भी कहते हैं। इसी प्रकार का मेला राजिम कुंभ मेला भी लगता है। यह मेला भारत के आदिवासियों के लिए महत्वपूर्ण मेला रहता है। माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है।
 
राजिम कुंभ मेला कब लगेगा : राजिम कुंभ मेला माघ माह की पूर्णिमा के दिन लगता है। अंग्रेज कैलेंडर के अनुसार 24 फरवरी 2024 शनिवार के दिन इस मेले का आयोजन होगा।
 
कहां लगता है राजिम कुंभ मेला : यह मेला छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 45 किलोमीटर दूर सोंढूर, पैरी और महानदी नदी के त्रिवेणी संगम-तट पर राजिम नगर में नदी तट पर लगता है। राजिम कुंभ में भी कुंभ की तरह एक दर्जन से ज्यादा अखाड़ों के अलावा शाही जुलूस, साधु-संतों का दरबार, झांकियां, नागा साधुओं और धर्मगुरुओं की उपस्थिति मेले के आयोजन को सार्थकता प्रदान करती है।
क्यों लगता है राजिम कुंभ मेला :  राजिम में महानदी और पैरी नामक नदियों का संगम है। संगम स्थल पर 'कुलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदर है। इस मंदिर का संबंध राजिम की भक्तिन माता से है। कहते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य के राजिम क्षेत्र राजिम माता के त्याग की कथा प्रचलित है और भगवान कुलेश्वर महादेव का आशीर्वाद इस क्षेत्र को प्राप्त है। दोनों ही कारणों से राजिम मेला आयोजित होता है।
 
आदिवासियों को मेला : राजिम का माघ पूर्णिमा का मेला संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ के लाखों आदिवासी और श्रद्धालु इस मेले में जुटते हैं। महानदी, पैरी और सोढुर नदी के तट पर लगने वाले इस मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र संगम पर स्थित कुलेश्वर महादेव का मंदिर है। हालांकि अब इस मेले को राजिम माघी पुन्नी मेला कहा जाता है।
 
छत्तीसगढ़ की पहचान है ये मेला : श्रद्घालुओं की अनगिनत आस्था, संतों का आशीर्वाद और कलाकारों के समर्पण का ही परिणाम है कि राजिम कुंभ जिसने देश में अपनी पहचान नए धार्मिक और सांस्कृतिक संगम के तौर पर कायम कर ली है। इस मेले में छत्तीसगढ़ को देशभर में धर्म, कला और संस्कृति की त्रिवेणी के रूप में ख्यात कर दिया है और एक नई पहचान भी दी है। सच कहें तो अनादि काल से छत्तीसगढ़ियों के विश्वास और पवित्रता का दूसरा नाम है राजिम कुंभ।

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