सपा ने लिखी कामयाबी की नई इबारत

मंगलवार, 6 मार्च 2012 (23:43 IST)
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समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी दल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से हिसाब बराबर करते हुए प्रदेश विधानसभा चुनाव में मंगलवार को प्रचंड बहुमत हासिल कर अपनी कामयाबी की नई इबारत लिख डाली

पांच वर्ष पहले हुए विधानसभा चुनाव में खराब कानून-व्यवस्था के नाम पर सत्ता से बाहर हुई सपा ने पार्टी के युवा चेहरे अखिलेश यादव को मोर्चे पर लगाते हुए 16वीं विधानसभा चुनाव के लिए हुई जंग न सिर्फ जीत ली है बल्कि बड़े वोट प्रतिशत के साथ राष्ट्रीय दलों कांग्रेस तथा भाजपा के लिए संजीवनी साबित होने की अटकलों को भी बेबुनियाद साबित कर दिया।

प्रदेश के इतिहास में अब तक हुए सर्वाधिक 59.17 प्रतिशत मतदान के बलबूते पर सपा ने राज्य विधानसभा की 403 में से 224 सीटों पर जीत हासिल करके स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर लिया और दोनों राष्ट्रीय दल भाजपा तथा कांग्रेस को हाशिए पर धकेल दिया। भाजपा को 47 सीटें मिली जबकि कांग्रेस को 26 सीटों पर ही विजय हासिल हुई। राज्य की सत्तारूढ बसपा को 80 सीटों से संतोष करना पड़ा। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को एक सीट मिली जबकि 14 सीटें अन्य के खाते में गई।

सपा ने प्रदेश के चुनावी इतिहास में इससे पहले सबसे बेहतरीन प्रदर्शन वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में किया था। तब भाजपा और बसपा के साथ त्रिकोणीय मुकाबले में पार्टी ने 403 में से 143 सीटों पर फतह हासिल की थी।

चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके गढ़ कहे जाने वाले पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली में कांग्रेस सभी पांचों सीटें हार गई जबकि इन चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक देने वाले पार्टी महासचिव राहुल गांधी के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र अमेठी में कांग्रेस पांच में से तीन सीटें गंवा बैठी।

इसके अलावा तमाम कोशिशों के बावजूद केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद की पत्नी लुइस खुर्शीद की जमानत जब्त हो जाना भी पार्टी के लिए बड़ा झटका रहा।

साथ ही चुनाव में अपने बड़बोलेपन के लिए विवादों में रहे केन्द्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे राकेश वर्मा (दरियाबाद) चुनावी होड़ में तीसरे पायदान पर रह गए।

भाजपा के लिए तो चुनाव नतीजे दु:स्वप्न साबित हुए और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कलराज मिश्र (लखनऊ पूरब) और उमा भारती (चरखारी) को छोड़कर चुनाव मैदान में उतरे उसके लगभग सभी क्षत्रप चुनाव हार गए।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही (पथरदेवा), पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी (सिसवां), पार्टी विधानमंडल दल के नेता ओम प्रकाश सिंह (चुनार) तथा भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष केशरीनाथ त्रिपाठी को पराजय का मुंह देखना पड़ा।

भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले लखनऊ में यह पार्टी नौ में से आठ सीटें हार गई। वर्ष 2007 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में 206 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत से सरकार बनाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को जनता ने इस बार चुनाव में नकार दिया और अब तक घोषित परिणामों में उसे महज 70 सीटें मिल सकी हैं।

बसपा प्रमुख निवर्तमान मुख्यमंत्री मायावती के करीबी सहयोगी रहे प्रदेश के संसदीय कार्य तथा वित्त मंत्री लालजी वर्मा (कटेहरी), विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर (दीदारगंज), कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल गुप्ता (इलाहाबाद दक्षिण), अब्दुल मन्नान (संडीला), संग्राम सिंह वर्मा, जयवीर सिंह तथा चौधरी लक्ष्मी नारायण समेत राज्य के अनेक मंत्रियों को शिकस्त का सामना करना पड़ा।

यह चुनाव परिणाम खासकर पीस पार्टी के लिए उत्साहजनक रहे। उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अयूब अंसारी (खलीलाबाद), अखिलेश सिंह (रायबरेली) तथा यूसुफ मलिक (डुमरियागंज) चुनाव जीत गए। मूलत: मुस्लिम मत आधारित इस पार्टी का विधानसभा चुनाव में यह अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है। (भाषा)

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