वेलेंटाइन डे : सिर्फ प्यार करने का दिन नहीं

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प्यार एक सुहाना अहसास है। साथ ही मन की सबसे प्रभावशाली प्रेरणा भी है। आज इस शब्द की आड़ में जो मिथ्या आचरण किया जाता है वह चिंता का विषय है लेकिन इसका अर्थ यह तो नहीं हो सकता है कि प्यार करने वालों के ही विरुद्ध हम खड़े हो जाएँ।

प्यार की खूबसूरती पर सदियों से बहुत कुछ लिखा पढ़ा और सुना जा रहा है। बावजूद इसके, इसे समझने में भूल होती रही है। प्यार वास्तव में दान की भावनात्मक प्रवृत्ति है। इसमें आदान अर्थात प्राप्ति की अपेक्षा नहीं रहती। प्यार तभी प्यार कहा जा सकता है जब उसकी शुद्धता, संवेगात्मक गहनता और विशालता कायम है।

अशुद्ध और संकुचित प्यार न सिर्फ दो व्यक्तियों का क्षरणकारी है, बल्कि समय बीतने पर दो भविष्यों के स्याह होने की वजह भी। प्रेम पर्व महज प्रेम करने का अवसर नहीं है, बल्कि प्रेम को समझने का पड़ाव भी है।

वेलेंटाइन-डे पश्चिम से आया है, इसलिए विवाद के स्वर उभर रहे हैं। पश्चिम का यह दत्तक त्योहार यदि भारतीय संस्कृति के अनुरूप परिधान धारण कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता तो भला किसे आपत्ति हो सकती थी। दु:ख इस बात का है कि दत्तक त्योहार यहाँ के परिधान ग्रहण करें उससे पहले तो यहाँ की मिट्टी में रचे-बसे त्योहारों ने अपने पहनावे को उतारना-नकारना आरंभ कर दिया है।

सच सिर्फ यह नहीं है कि बाहर की गंदगी हमें विनष्ट कर रही है बल्कि सच यह भी है कि हमारे अपने भीतर बहुत कुछ ऐसा जन्म ले रहा है, पनप रहा है जो हमें हमारे अस्तित्व को हमारी सभ्यता को बर्बाद कर रहा है। जाहिर है समाधान भी कहीं और से नहीं, बल्कि हमारे अपने अन्तरतम से ही आएगा , यदि ईमानदार कोशिश की जाए। शुरुआत प्रेम दिवसे ही करेतो क्या हर्ज है?

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