महेंद्र सिंह धोनी की अग्निपरीक्षा

यह विश्व कप वाकई धोनी की अग्निपरीक्षा ही है, क्योंकि जो उनकी ताकत रही है फ्रंट से लीड करना, टीम में आपसी सामंजस्य बैठाए रखना, तालमेल बनाए रखना, अगर व्यावसायिक भाषा में कहें तो मैन मैनेजमेंट। यही उनकी खासियत रही है। परंतु कैप्टन कूल के लिए अब यही परेशानी का सबब बनी हुई है। 
 

ठीक ही तो कहा गया है जब समय अनुकूल हो तो जो आप चाहते हैं वही होता चला जाता है, लेकिन वहीं जब सितारे गर्दिश में जाने को होते हैं तो समय, काल भी आपसे मुंह मोड़ने लगते हैं। यही तो पारिस्थितिक संतुलन है, ईश्वर की संरचना है और समय-समय पर यह एहसास दिलाता रहता है कि सार्वभौम सत्ता का स्वामी वही है। हम सब तो उसके खेल के प्यादे मात्र ही हैं।
 
माही की सबसे बड़ी परेशानी खिलाड़ियों के फॉर्म से ज्यादा उनमें आपसी सामंजस्य की है। सही ही है यदि माहौल अनुकूल नहीं होगा तो परिणाम प्रतिकूल ही होंगे। माही का ढलान पर होना एवं विराट का अपने नाम के अनुकूल 'विराट' होना ही भारतीय टीम का ऑस्ट्रेलिया दौरे में स्तरहीन प्रदर्शन का मुख्य बिंदु रहा है।
 
धोनी और कोहली में फर्क है, एक की शक्तियां, ऊर्जा अब बूढ़ी हो रही हैं तथा दूसरे की अपने पूर्ण यौवन पर। बाकी सभी का उस युवा छोर की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक ही है, यहीं माही मात खा रहे हैं। टीम में आपसी तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं। जैसा सुनने को मिल रहा है और अमूमन मैच के दौरान पाया भी है कि ड्रेसिंग रूम का माहौल उतना सौहार्दपूर्ण नहीं है जितना पहले होता था।
 
टीम मैनेजमेंट को अभी तक अपना ग्राउंड प्लान तैयार कर उस पर अमल करना भी शुरू कर देना चाहिए था। यहां बड़ी चूक दिखाई दे रही है। हम आंतरिक संघर्ष में ही अपनी सारी ऊर्जा गंवाने में लगे हैं। टीम मैनेजमेंट को तो अब तक अपने प्रतिद्वंद्वियों के भी ब्लू प्रिंट तैयार कर लेने चाहिए थे। रणनीति आखिर कब बनेगी? हम अभी तक अपनी रणनीति नहीं बना पाए हैं तो विरोधियों को घेरने की रणनीति कब बना पाएंगे? सोचना ही छोड़ देना चाहिए उस विषय में। यह निराशा माही के रीसेंट स्टेटमेंट में भी झलकती है। हम अभी तक अपनी फर्स्ट इलेवन नहीं बना पाए हैं, तो बेंच स्ट्रेंथ की बात क्या करें? विरोधियों के विषय में उनकी ताकत, उनकी खामियों पर क्या विचार होंगे? कैसे रणनीति बन पाएगी? ज‍बकि वर्ल्ड कप में कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। जो मनौवैज्ञानिक दबाव हमें विरोधियों पर बनाना चाहिए था उसे हम अपने आप पर ही महसूस करने लगे हैं और त्रिकोणीय श्रृंखला में इंग्लैंड के विरुद्ध आखिरी हार ने तो उसे और बढ़ा दिया है, हम सबको झकझोर दिया है एवं यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि क्या वाकई हमारी युवा भारतीय टीम वर्ल्ड कप को बचाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है? कटिबद्ध है? 
 
हम यदि त्रिकोणीय श्रृंखला में हमारे खिलाड़ियों के प्रदर्शन का सही आकलन करें तो पाएंगे कि श्रृंखला में स्तरहीन प्रदर्शन का मुख्य कारण प्रदर्शन फॉर्म तो है ही, परंतु आपसी संघर्ष, तालमेल की समस्या प्रमुख रही है। तकनीकी न होकर वह आंतरिक थी जिस पर माही एवं मैनेजमेंट कतई कंट्रोल नहीं रख पाए। और यदि हम सही आकलन आज की परिस्थितियों को देख करेंगे तो पाएंगे कि इस वर्ल्ड कप में हमारा क्वार्टर फाइनल तक पहुंचना भी मुश्किल है। 
 
माही को अपनी ताकत को पुन: संवारना होगा, क्योंकि विषम परिस्थितियों में ही तो असल परीक्षा होती है। हमने माही को देखा है एवं पाया है कि वे अद्भुत क्षमताओं को अपने में समाहित किए हुए हैं और विषम परिस्थितियों में सदैव उन्होंने आत्मसंयम रखते हुए भारतीय टीम का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन निकलवाया है और यही उनकी प्राथमिकता भी होनी चाहिए। हां, ये सही है कि आज परिस्थितियां कतई अनुकूल नहीं हैं, जैसी पहले उनके साथ होती थीं। परंतु अभी स्थिति पकड़ से बाहर नहीं हुई है। मेरा मानना है कि माही को पुन: सबको एक माला में पिरोकर उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन निकलवाने के लिए कुछ नया सोच हमेशा की तरह लाना होगा।
 
माही को इस अंतरद्वंद्व का निवारण अपने आप में ही पाना होगा। उन्हें अपने खोए हुए आत्मविश्वास को पाने के लिए सारी नकारात्मक ऊर्जाओं को सकारात्मक में परिवर्तित कर अपने में आत्मसात कर कुछ नया करना होगा। अपनी क्षमताओं को नए सिरे से पहचानना होगा। आत्म-अवलोकन, आत्म-विश्लेषण करना होगा, जो भारतीय टीम के हित में होगा, उनके हित में होगा। अगर वे कर पाएं तो क्रिकेट ‍इतिहास में अपने आपको ध्रुव तारे की तरह स्थापित कर अमर हो पाएंगे। 
 
अंत में सभी खिलाड़ियों के लिए कहना चाहूंगा। 
 
चलो
इस तरह 
सजाएं
इसे
 
ये भारतीय टीम
हमारी
तुम्हारी
लगे

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