आदर्श नागरिक बनाना शिक्षा का लक्ष्य-प्रतिभा

मंगलवार, 23 सितम्बर 2008 (15:53 IST)
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने कहा कि विश्वविद्यालयों का प्रमुख लक्ष्य विद्यार्थियों को आदर्श नागरिक बनाना है और इसके लिए सहनशीलता, अनुशासन और परिश्रम जैसे नैतिक मूल्य जरूरी है।

प्रतिभा पाटिल लखनऊ विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में बोल रही थी। विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टर ऑफ लिट्रेचर की मानद उपाधि से सम्मानित किया।

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय तभी सफल होंगे जब वे अपने छात्रों को जटिल और विश्लेषणात्मक ढंग से सोचने के योग्य बना सकेंगे।

देश की आजादी के पूर्व स्थिति की चर्चा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान विश्वविद्यालयों और शैक्षिक संस्थाओं ने राष्ट्रवाद की इस भावना का संचार करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

विश्वविद्यालयों ने देश की आजादी के बाद भारत के आर्थिक तथा सामाजिक विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है और आज भी अभिनव तथा नवान्वेषी विचारशीलता के लिए संस्थाओं के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के अनुसार भारत को 1500 विश्वविद्यालयों की जरूरत है और हमारी वर्तमान संख्या इससे काफी कम है। उन्होंने कहा कि अगर हमें विश्व की अग्रणी राष्ट्र बनना है तो शिक्षा की गुणवत्ता के साथ कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए।

प्रतिभा ने युवाओं के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें श्रेष्ठ शिक्षा मुहैय्या कराने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका कहना था कि इससे स्थानीय, राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर सामाजिक पिछड़ेपन का मुकाबला करने के लिए एक आवश्यक तंत्र का निर्माण होगा।

राष्ट्रपति ने प्रोद्यौगिकी में क्रान्तिकारी बदलाव लाने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि अनुसंधान के ठोस आधार से भारत में हरित और श्वेत क्रान्ति आई है, जिससे दूरगामी परिवर्तन हुए हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे वैज्ञानिकों और अनुसंधानकर्ताओं को सतत् आधार पर उत्पादकता बढ़ाने के लिए नई क्रान्तियाँ लाने पर विचार करना चाहिए।

उन्होंने अनुसंधान क्षमता में गिरावट आने पर चिन्ता प्रकट की और कहा कि इस प्रवृत्ति को बदलने की जरूरत है। विश्वविद्यालयों को समाज की आवश्यकताओं और कृषि तथा उद्योग की विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों के अनुरूप अनुसंधान और उन्नत अनुसंधान के केन्द्र बनना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि समाज में बदलाव के अनुरप शिक्षा प्रणाली में भी बदलाव आना चाहिए और यह आज प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि एक विकासशील राष्ट्र को अवसरों को स्पष्ट और ठोस नतीजों में बदलने के लिए प्रतिभावान और अत्यंत कुशल लोगों की जरूरत होती है।

भारत के 54 करोड़ युवाओं ने भारत को विश्व का सबसे अधिक युवा क्षमता वाला राष्ट्र बना दिया है और यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि उन्हें उचित शिक्षा मिले।

राष्ट्रपति ने विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भूमिका की चर्चा करते हुए कहा कि हमें सभी क्षेत्रों में बहुविधात्मक नजरिए वाले अधिक नवान्वेषी एवं ऊर्जावान शिक्षक चाहिए। उन्हें निरन्तर अपने ज्ञान के आधार और अध्यापन पद्धतियों को नया बनाते रहना चाहिए।

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