गरिमा मिश्र तोष
कवयित्री, शिक्षाविद् और शास्त्रीय संगीत शिक्षिका
मां आई हो जो इस दफा तो जाना नहीं, रुको देखो जरा गिरते हुए मानदंडों को, बिखरते मुक्त स्वप्नों को
तापसी नाम था उसका,जैसी सुंदर सुशील थी वो वैसे ही उसके भाव विचार, उसको देखकर अनुमान लगाना कठिन था कि वो दो जवान बच्चों...
बेटियों के दिन नहीं
युग होते हैं
बेटियां सृष्टि नहीं
दृष्टि होती हैं
बेटियां विश्वास हैं
आभास हैं
साथ हैं
तो श्वास...
आ जाओ कृष्ण...देखो अब बोल भी छूट चले, शब्दों को भी खोती हूं
एक-एक प्रेम पुष्प को, भाव माल में पिरोती हूं
एक लौ उम्मीद की रौशन कर लो
याद है पिछली छुट्टियों से भी पहले
वाली छुट्टियों में हम जब बादलों को
न्योता देने उनके घर गए थे....
कर्म की व्याख्या क्या करूं
जो करवाते हो
वह कर्म तुम्हीं को समर्पित
मेरे कर्म यदि मेरे नहीं
तो फल भी नहीं मेरे
मेरे...