डॉ. प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'

कुहू-कुहू कर मीठे स्वर में, हमें बुलाती कोयल रानी। अमराई में तान सुरीली, उसकी लगती बड़ी सुहानी
ओ मेरी निंदिया रानी, चुपके से तू आ जा री। मीठे सपनों में खो जाऊं,
बढ़िया सा एक उड़नखटोला,काश! कहीं से पाते जी।अपने भैया अजय-विजय संग,
नभ में देखो प्यारे-प्यारे, चम-चम चमक रहे हैं तारे।अठखेलियां करते हैं हरदम,
मंजिल को जब है पाना, खतरों से क्यों कर डरना। बाधाओं से टकराकर, हमको है आगे बढ़ना
दीप जले हर गली-गली गुपचुप क्यों बैठे हो भाई नाचो-गाओ खुशियां बांटों दीवाली है घर आई ।
हम भी भेज दिए हैं बच्चों मंगल ग्रह को यह संदेश सकल जहां से कम नहीं है अपना प्यारा भारत देश
देश की संतान है भारत मां की शान है सत्य-अहिंसा हमें सिखाता गांधी उसका नाम है
दहेजी दानव ने बगराया भारी भष्टाचार जी इस दानव को मार भगाओ है जन-जन का भार जी
मेरा छोटा सा परिवार , इससे हम करते हैं प्यार। मम्मी-पापा सोनू -भैया, करते मुझसे प्यार दुलार ।।1।।
विजय हुए थे रामजी, अतुलित राक्षसी शक्ति से। तब से मनाते हैं विजयादशमी, भारतवासी भक्ति से।।1।।