ये है अफगानिस्तान के ख़िलाफ वर्ल्ड कप के साउथैम्पटन में खेले गए मैच में भारतीय टीम का प्रदर्शन। आंकड़ों की बात करें तो साल 2010 के बाद से 50 ओवरों के मैच में भारत का ये पहली पारी सबसे कम स्कोर है।
ये प्रदर्शन उस दौर में आया है जब भारत ने अब तक वर्ल्ड कप में कोई मैच नहीं गंवाया और अफगानिस्तान अब तक कोई मैच नहीं जीत सकी है। भारतीय बल्लेबाज़ों ने ऑस्ट्रेलिया की अपेक्षाकृत मजबूत गेंदबाज़ी के सामने 352 और पाकिस्तान के खिलाफ 336 रन बनाए थे। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के गेंदबाज़ों का भी भरोसे के साथ सामना किया था।
भारत और अफगानिस्तान की रैंकिंग और रुतबे में भी जमीन और आसमान का अंतर है। खिताब के प्रबल दावेदारों में गिनी जा रही भारतीय टीम वन डे रैंकिंग में दूसरे पायदान पर है और अफगानिस्तान दसवें नंबर पर है।
अफगानिस्तान के जिन गेंदबाजों को भारत के सूरमा बल्लेबाज़ों ने सर पर चढ़ जाने का मौका दिया, पिछले मैच में मेजबान इंग्लैंड के बल्लेबाज़ों ने उनकी साख को बुरी तरह खुरचा था।
इंग्लैंड ने मैनचेस्टर में खेले गए मैच में अफगानिस्तान के बॉलरों की जमकर ख़बर ली थी। 50 ओवरों में छह विकेट पर 397 रन बना दिए थे। पारी में कुल 21 छक्के जड़े थे। स्टार स्पिनर राशिद ख़ान के ख़िलाफ नौ ओवरों में 110 रन बटोरे थे।
जाहिर है, राशिद और उनके साथी गेंदबाजों का हौसला टूटा हुआ था। भारत ने टॉस जीतकर बल्लेबाजी का फैसला यही सोचकर लिया होगा। फिर भारतीय बल्लेबाज इस फैसले और विरोधी टीम के हौसले पस्त होने का फायदा क्यों नहीं उठा सके?
वो भी तब जब भारतीय टीम में दुनिया के नंबर वन बल्लेबाज कप्तान विराट कोहली हैं। हिट मैन कहे जाने वाले धुरंधर ओपनर रोहित शर्मा हैं। दुनिया के बेस्ट फिनिशर का तमगा रखने वाले महेंद्र सिंह धोनी हैं। केएल राहुल, हार्दिक पांड्या और केदार जाधव की गिनती भी विरोधी गेंदबाजों की धार कुंद करने वाले बल्लेबाजों के तौर पर होने लगी है। लेकिन, मैदान पर जो नज़ारा दिखा, उससे साफ है कि भारतीय टीम के बल्लेबाज़ रणनीति के मोर्चे पर मात खा गए। उन्होंने एक के बाद एक कई गलतियां कीं।
रक्षात्मक रुख क्यों?
कप्तान ने टॉस जीता और बल्लेबाज धीमी पिच के मुताबिक खुद को ढालने में नाकाम रहे। वो जरुरत से ज्यादा रक्षात्मक हो गए। अफगानिस्तान के ख़िलाफ इंग्लैंड की रणनीति साफ थी। वो इस टीम के गेंदबाज़ों को सिर पर चढ़ने का मौका नहीं देना चाहते थे। ये रणनीति कामयाब भी हुई।
वहीं, करीब पांच दिन बाद मैदान में उतरी भारतीय टीम के बल्लेबाज शुरुआत से ही अफगानिस्तान के गेंदबाज़ों ख़ासकर स्पिनरों के ख़िलाफ़ इस कदर रक्षात्मक हो गए, मानो वो बल्लेबाजी का सबसे मुश्किल इम्तिहान दे रहे हों।
गेंदबाजी की शुरुआत करने वाले युवा स्पिनर मुजीब उर रहमान ने दो ओवरों में रोहित शर्मा को क्रीज में बांधे रखा और तीसरे ओवर में वो दबाव में बिखर गए।
विकेट की कीमत नहीं समझी
तस्वीर का रुख बदल भी सकता था। कप्तान कोहली आक्रामक तेवरों के साथ मैदान में उतरे थे। लेकिन लोकेश राहुल ने अफगानिस्तान के गेंदबाज़ों को वापसी का मौका दे दिया।
कप्तान कोहली के साथ अर्धशतकीय साझेदारी के बाद उन्होंने मोहम्मद नबी की गेंद पर रिवर्स स्वीप करने का जोखिम लिया और अपना विकेट गिफ्ट कर गए।
जमने के बाद विकेट विजय शंकर ने भी दे दिया। वो भी स्पिनरों के आगे मुश्किल में दिख रहे थे। चार ओवर के बाद नबी ने भरोसे के साथ खेल रहे भारतीय कप्तान कोहली को भी जाल में फंसा लिया। इसके बाद तो मैच में अफगानिस्तान के गेंदबाज़ों की ही तूती बोल रही थी।
बेस्ट फिनिशर को क्या हुआ?
भारतीय टीम को पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी से बहुत उम्मीद थी। 345 मैचों का अनुभव रखने वाले धोनी ऐसे बल्लेबाज़ माने जाते हैं जो शुरुआत की खामियों की आखिर में भरपाई कर सकते हैं। धोनी जिस अंदाज़ में जमने के लिए वक़्त ले रहे थे, उससे लगा कि वो सही मौके पर गियर बदलेंगे।
लेकिन धोनी का जादू भी शनिवार को फीका रहा। वो अफगानी स्पिनरों की काट खोजने में नाकाम रहे। धोनी वन डे करियर में दूसरी बार स्टंप हुए। ये दिखाते है कि वो अफगानिस्तान टीम के गेंदबाज़ों के आगे किस कदर दबाव में थे।
प्लानिंग क्यों हुई फेल
भारत और अफगानिस्तान के बीच ये तीसरा वन डे मैच है। इसके पहले दोनों टीमें बीते साल 25 सितंबर को आमने-सामने आईं थीं। तब अफगानिस्तान की टीम मैच टाई कराने में कामयाब रही थी। सवाल ये भी है कि क्या भारतीय टीम के प्रबंधन ने जब मैच को लेकर रणनीति बनाई तब इसे ध्यान में नहीं रखा?
या फिर इस नतीजे को ही ध्यान में रखकर भारतीय टीम ज़्यादा रक्षात्मक हो गई?
मौजूदा वर्ल्ड कप में भारत गेंदबाजों का प्रदर्शन उम्दा रहा है लेकिन फिर भी भारतीय टीम की ताक़त बल्लेबाज़ी ही मानी जाती है। भारत के पास मैच का रुख बदलने वाले धुरंधर बल्लेबाजों की कतार है।
लेकिन, इनमें से किसी बल्लेबाज़ ने मैदान पर ये नहीं दिखाया कि वो धीमी पिच पर अफगानिस्तान के स्पिनर की काट तलाशकर आए हैं। जबकि भारत के ज्यादातर बल्लेबाज आईपीएल में अफगानिस्तान के स्टार स्पिनर राशिद खान और मुजीब उर रहमान का सामना करते रहे हैं। ऋषभ पंत ऐसे बल्लेबाज़ माने जाते हैं, जो विरोधी गेंदबाज़ों को दबाव में ला सकते हैं लेकिन उन्हें क्यों नहीं आजमाया गया?
इंग्लैंड के बल्लेबाजों की तरह भारत के किसी बल्लेबाज़ ने अफगानिस्तान के गेंदबाजों की धार कुंद करने की कोशिश भी क्यों नहीं की? भारतीय पारी में सिर्फ एक ही छक्का लगा। ये केदार जाधव के बल्ले से निकला। अगर भारतीय बल्लेबाज़ रक्षात्मक रुख अपनाने के बजाए आक्रामक अंदाज दिखाते तो क्या अनुभवहीन अफगानिस्तान टीम इस कदर कामयाब होती?
इसका जवाब इंग्लैंड टीम के स्कोर कार्ड में तलाशा जा सकता है।