वीजी सिद्धार्थ की मौत के बाद कैफ़े कॉफ़ी डे (सीसीडी) के भविष्य पर कई सवाल खड़े हो गए हैं। हालांकि इस उद्योग पर नज़र रखने वालों का कहना है कि भले ही सीसीडी के शेयर पिछले तीन दिनों में आधे या उससे भी ज़्यादा गिरे हों, लेकिन कंपनी अब भी बहुत बुरी हालत में नहीं है।
सीसीडी के पूर्व सीईओ नरेश मल्होत्रा ने बीबीसी हिंदी को बताया, "सीसीडी घाटे वाली कंपनी नहीं है बल्कि असल में इसने मुनाफ़ा कमाया है। क़र्ज़ का मसला ऐसा नहीं है जिसका कोई हल न निकाला जा सके और जो भी कंपनी तेज़ी से तरक्की करना चाहती है, उसके साथ क़र्ज़ का मसला होता ही है।"
कॉफ़ी उद्योग पर नज़र रखने वालों का मानना है कि वीजी सिद्धार्थ के परिवार को दुख की घड़ी से जूझने और इससे बाहर निकलने का वक़्त दिया जाना चाहिए। जानकारों का कहना है कि सिद्धार्थ के परिवार को ये तय करने का समय दिया जाना चाहिए कि भविष्य में सीसीडी को कैसे संभालना है।
कंपनी के एक पूर्व सीनियर अधिकारी ने नाम ज़ाहिर न होने की शर्त पर बताया, "सिद्धार्थ की पत्नी मालविका और उनके दो बेटों के पास कंपनी के सबसे ज़्यादा शेयर (54 फ़ीसदी) हैं। ऐसे में अगले 10-12 दिनों में परिवार कुछ अहम फ़ैसले लेगा।" अभी इस ग़मगीन माहौल में परिवार सिर्फ़ एक फ़ैसला ले सका है। परिवार ने कर्नाटक के पूर्व मुख्य सचिव और कॉफ़ी बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष को अंतरिम अध्यक्ष बनने को कहा है।
एक सरकारी अधिकारी के तौर पर रंगनाथ का रिकॉर्ड शानदार रहा है। एक वक़्त पर वो कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा और सिद्धार्थ के ससुर के सचिव भी रह चुके हैं। इसके अलावा नितिन बागमाने को चीफ़ ऑपरेटिंग ऑफ़िसर (सीओओ) बनाया गया है और एक कार्यकारी समिति भी बनाई गई है।
कार्यकारी समिति क्या कर सकती है? : कॉफ़ी उद्योग पर नज़र रखने वाले एक विशेषज्ञ नाम ज़ाहिर न किए जाने की शर्त पर कहते हैं, "समिति के सामने सबसे पहला काम ये होना चाहिए कि वो एक ऐसे पेशेवर को ढूंढें जिसे कॉफ़ी के कारोबार की अच्छी समझ हो। अच्छी बात ये है कि इंडस्ट्री में ऐसे कई लोग हैं।" इसके अलावा कॉफ़ी इंडस्ट्री में ख़रीद-विक्रय के अलावा सीसीडी की ब्रैंड इक्विटी और रीटेलिंग की अच्छी समझ होनी चाहिए।
कॉफ़ी उद्योग के जानकार कहते हैं, "इससे भी ज़्यादा ज़रूरी ये है कि परिवार को ऐसा शख़्स ढूंढना चाहिए जो बुरे वक़्त में साहस और प्रतिभा से चीज़ें संभाल सके। अच्छे वक़्त में कारोबार का अनुभव रखने वाला शख़्स इस स्थिति में मददगार नहीं होगा।"
नाम ज़ाहिर न किए जाने की शर्त पर एक बाज़ार विश्लेषक कहते हैं, "जिसके पास कंपनी की ज़िम्मेदारी होगी सीसीडी का भविष्य काफ़ी हद तक उसके फ़ैसलों पर निर्भर करेगा। मुमकिन है कि किसी योग्य अधिकारी की नियुक्ति के बाद शेयरों के दाम गिरने कम हो जाएं और स्थिति संभल जाए।"
इस विश्लेषक का मानना है कि शेयर के दाम बढ़ाने से कंपनी की सेहत में सुधार होगा। उन्होंने कहा, "अगर परिवार तुरंत कंपनी बेचने का फ़ैसला करता है तो ये आर्थिक तौर पर सही नहीं होगा।" कुल मिलाकर विशेषज्ञों की राय यह है कि अगर परिवार कंपनी बेचना भी चाहता है तो उसे थोड़ा इंतज़ार करना चाहिए। एक विशेषज्ञ के मुताबिक़, "अगर कंपनी को बेचना है और क़र्ज़ भी नहीं चुकाया गया है, तो ये सबसे आख़िरी क़दम होना चाहिए।"
बाज़ार में ये बात काफ़ी वक़्त से चल रही है कि कोका कोला की सीसीडी को ख़रीदने में दिलचस्पी है, लेकिन बाज़ार के विश्लेषकों का कहना है कि कोका कोला ने जिस क़ीमत का प्रस्ताव रखा था और सिद्धार्थ जो क़ीमत चाहते थे, दोनों में बहुत ज़्यादा फ़र्क था।
सीसीडी बेचने की ज़रूरत नहीं : बाज़ार विशेषज्ञों का एक समूह ऐसा भी है जो मानता है कि हालात ऐसे नहीं हैं कि सीसीडी को बेचने की ज़रूरत पड़े। कॉफ़ी इंडस्ट्री पर क़रीब से नज़र रखने वाले एक पूर्व सरकारी अधिकारी ने नाम ज़ाहिर न होने की शर्त पर कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि सीसीडी को बेचने की ज़रूरत है। सीसीडी की कई ऐसी सहयोगी कंपनियां हैं जिन्हें बेचकर हालात सुधारा जा सकता है।"
कार्यकारी समिति इस बात की भी जांच करेगी कि लोन को चुकाने के लिए पर्याप्त पैसा का इंतज़ाम करने के लिए सिद्धार्थ किस तरह की निजी गारंटी देते। हालांकि, सीसीडी के पक्ष में जो सबसे बड़ी चीज़ है वो है कंपनी की ब्रैंड वैल्यू। ये कहना है ब्रैंड विशेषज्ञ हरीश बिजूर का।
हरीश ने बीबीसी हिंदी से कहा, "सीसीडी एक ब्रैंड के तौर पर बेहद मज़बूत है। लोग सीसीडी को जानते-पहचानते हैं और ये हर जगह मौजूद हैं। हालांकि इसका रेवेन्यू से कोई रिश्ता नहीं है लेकिन इसमें कोई शक़ नहीं कि सीसीडी एक बड़ा ब्रैंड है।"