श्रीदेवी की बेस्ट 10 हिंदी फिल्में

समय ताम्रकर
अपने 50 साल लंबे करियर में श्रीदेवी ने कई तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ और हिंदी फिल्में की हैं। उनके अभिनय की विविध शैली इन तमाम फिल्मों में देखने को मिलती हैं। कुछ फिल्मों में वे चुलबुली लगी तो कुछ फिल्मों में उन्होंने गंभीर किरदार निभाए। हिंदी फिल्मों में बतौर हीरोइन उनकी 'सोलवां सावन' पहली फिल्म थी जो असफल रही थी। इसके बाद हिम्मतवाला रिलीज हुई और वे हिंदी फिल्मों की स्टार बन गईं। पेश है यहां पर श्रीदेवी की सर्वश्रेष्ठ 10 हिंदी फिल्में... 
 
हिम्मतवाला (1983) 
इस फिल्म में श्रीदेवी ने रेखा एस. बंदूकवाला नामक किरदार निभाया था। रेखा बहुत ही नकचढ़ी और घमंडी किस्म की लड़की थी। श्रीदेवी ने यह किरदार इतनी गहराई के साथ निभाया कि दर्शक उनके सौंदर्य और अदाओं के दीवाने हो गए और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को एक सितारा नायिका मिल गई। एक ऐसी नायिका जिसके सपने देख सकते थे। श्रीदेवी पर फिल्माए गए 'नैनों में सपना', 'लड़की नहीं है', 'ताकी ओ ताकी', 'वाह वाह खेल' गीत सुपरहिट रहे। इस फिल्म से श्रीदेवी आम आदमी की हीरोइन बन गई। 
 
सदमा (1983) 
जिन्होंने हिम्मतावाला की रेखा को देखा था वे सदमा की नेहलता मल्होत्रा को देख दंग रह गए। हिम्मतवाला वाली श्रीदेवी से सदमा वाली श्रीदेवी बिलकुल अलग थी। एक ऐसी लड़की जो अपनी याददाश्त खो बैठती है और युवा स्त्री के बजाय एक बालिका की तरह व्यवहार करने लगती है। यह किरदार निभाना किसी भी कलाकार के लिए कठिन चुनौती है। इसमें ओवर एक्टिंग होने के पूरे अवसर है, लेकिन श्रीदेवी ने इसे पूरी विश्वसनीयता के साथ निभाया। इसे श्रीदेवी के करियर की सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म भी कह सकते हैं। 
 
नगीना (1986) 
अस्सी के दशक में 'हीरो' को बोलबला था और हीरोइनों के लिए कोई अवसर नहीं थे। इतनी विकट परिस्थितियों में श्रीदेवी ने हीरोइन होकर एक हीरो के रूप में अपनी पहचान बनाई। दर्शक उनके नाम पर ही टिकट खरीदने लगे। इसकी मिसाल है फिल्म नगीना, जिसमें उन्होंने रजनी नामक किरदार निभाया था। यह एक इच्छाधारी नागिन थी जो अपने पति को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी। अमरीश पुरी जैसे तगड़े खलनायक को श्रीदेवी ने कड़ी टक्कर दी थी। यह फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई यह श्रीदेवी के स्टारडम का ही कमाल था। इस भूमिका के लिए श्रीदेवी ने अपनी आंखों का भरपूर इस्तेमाल किया था इच्छाधारी नागिन के रूप में उन्होंने कमाल का अभिनय किया था। 


 
मि. इंडिया (1987) 
फिल्म के नाम में भले ही मिस्टर हो, लेकिन मिस श्रीदेवी इस फिल्म में कही कम नहीं थी। सीमा सोहनी नामक किरदार उन्होंने निभाया था। इस फिल्म में उनके कई रूप देखने को मिले थे। फिल्म में बच्चों के कई दृश्य श्रीदेवी के साथ थे। बच्चों के बीच वे बच्ची लगती थीं। उनकी मादकता गाने 'काटे नहीं कटते ये दिन रात' में देखने को मिलती है। साड़ी में वे गजब की सेक्सी लगी और कहीं भी 'चीप' नहीं होती। मोगाम्बो को टक्कर देते समय वे किसी हीरो से कम नहीं दिखाई दी। 
 
चांदनी (1989) 
कहने को तो चांदनी में विनोद खन्ना और ऋषि कपूर थे, लेकिन फिल्म की 'हीरो' तो चांदनी माथुर ही थी। फिल्म की विषय प्रेम त्रिकोण था जिसमें दोनों हीरो श्रीदेवी से प्रेम करते थे। फिल्म का निर्देशन यश चोपड़ा ने किया था जो कि हीरोइनों को बेहद खूबसूरती से स्क्रीन पर उतारने के लिए जाने जाते थे और स्विट्ज़रलैंड की वादियों में श्रीदेवी का सौंदर्य देखते ही बनता है। फिल्म में श्रीदेवी ने कई साड़ियां पहनी थीं और फिल्म के सफल होने के बाद बाजार में 'चांदनी साड़ियों' की धूम मच गई थी। 
 
चालबाज (1989) 
यह सीता गीता से प्रेरित फिल्म थी, लेकिन श्रीदेवी का अभिनय इस फिल्म को ऊंचाइयों पर ले जाता है। अंजू दास और मंजू दास नामक जुड़वां बहनों के रूप में श्रीदेवी ने दर्शाया कि दोहरी भूमिकाएं कैसे निभाई जाती हैं। एक बहन सीधी-सादी और दूसरी तेज-तर्रार। दोनों भूमिकाएं श्रीदेवी ने इस विश्वसनीयता के साथ निभाई कि हम भूल जाते हैं कि चालबाज में रजनीकांत और सनी देओल जैसे दमदार हीरो भी हैं। इस फिल्म में कई ऐसे कमाल के सीन हैं जो केवल श्रीदेवी की अभिनय क्षमता को ध्यान में रख कर लिखे गए थे। हमेशा की तरह वे इस फिल्म में भी ग्लैमरस लगीं। 
 
लम्हे (1991) 
यूं तो लम्हे बॉक्स ऑफिस पर असफल रही थी, लेकिन यही माना गया कि फिल्म नहीं दर्शक असफल रहे थे। ये वक्त से आगे की फिल्म थी जिसके साथ उस दौर के दर्शक तालमेल नहीं बैठा पाए। पल्लवी और पूजा भटनागर के रूप में मां-बेटी की दोहरी भूमिका श्रीदेवी ने निभाई थी। फिल्म का विषय बेहद जटिल और बोल्ड था। श्रीदेवी का इस फिल्म में अभिनय आपको मंत्र-मुग्ध कर देता है। 
 
खुदा गवाह (1992) 
इस फिल्म को साइन करने के कुछ दिनों पहले श्रीदेवी ने यह कह कर सनसनी फैला दी थी कि वे अमिताभ बच्चन के साथ तभी काम करेंगी जब फिल्म में उन्हें करने को कुछ होगा क्योंकि अमिताभ की फिल्मों में नायिकाएं महज शो पीस होती हैं। अमिताभ के साथ 'खुदा गवाह' तभी साइन की जब उन्हें लगा कि फिल्म में उनके लायक काम है। बेनज़ीर और मेहंदी नामक भूमिका इस फिल्म में उन्होंने निभाई और कहीं भी अमिताभ से कमतर साबित नहीं हुईं। 
 
इंग्लिश-विंग्लिश (2012) 
शादी के बाद श्रीदेवी ने फिल्मों से ब्रेक ले लिया था और लंबे समय बाद 'इंग्लिश-विंग्लिश' फिल्म से उन्होंने बड़ परदे पर वापसी की। शशि गोडबोले उनके किरदार का नाम था जिसे अंग्रेजी नहीं आती थी। इस कारण उसके बच्चे उसे स्कूल में 'पैरेंट्स-टीचर मीटिंग' में ले जाना पसंद नहीं करते थे। पति भी खास मौकों पर दूरी बना लेता था। आखिरकार शशि चोरी-छिपे अंग्रेजी सीखती है और सभी को चौंका देती है। एक असहज महिला, अंग्रेजी सीखने वाली स्टूडेंट के रूप में श्रीदेवी का अभिनय बेहतरीन है। फिल्म के क्लाइमैक्स में श्रीदेवी उपस्थिति मेहमानों के सामने अंग्रेजी में अपनी बात रखती है। यह सीन साबित करता है कि वे कितनी उम्दा एक्ट्रेस हैं। 


 
मॉम (2017) 
श्रीदेवी की अंतिम प्रदर्शित हिंदी फिल्म जो उनकी मौत से कुछ माह पूर्व रिलीज हुई। देवकी सबरवाल अपनी बेटियों की रक्षा के लिए एक ममतामयी मां से दुर्गा बन कर दुश्मनों को सबक सिखाती है। श्रीदेवी ने इस विश्वसनीयता के साथ यह भूमिका निभाई कि पूरी फिल्म में दर्शकों की सहानुभूति उनके किरदार के साथ रहती है। 

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