आराध्या को केबीसी की धुन प्यारी लगती है: अमिताभ बच्चन से वेबदुनिया की खास मुलाकात

रूना आशीष
'अगर कभी ऐसा मौका पड़े कि हमें हॉट सीट पर बैठना पड़े तो हम तो हार जाएंगे। हम तो एक-दो-तीन प्रश्न से ज्यादा जवाब भी नहीं दे पाएंगे। लेकिन हां, ऐसे ही मजाकिया तौर पर ऐसा हुआ जरूर है। एक बार शाहरुख आए थे तो तब हुआ था, फिर एक बार अभिषेक आए थे तो ऐसा हुआ था।' केबीसी शुरू हो गया है। शो के होस्ट अमिताभ बच्चन ने 'वेबदुनिया' संवाददाता रूना आशीष ने बातचीत की।

आपने आराध्या के साथ केबीसी खेला है?
इस बारे में सोचा नहीं है। अच्छा सुझाव है ये आपका। वैसे वो जिस उम्र में है उसकी सारी बातें स्कूल में ही पूरी हो जाती हैं, तो हमें वो मौका नहीं मिलता। उसे समझ में आता है कि मैं कोई तो काम कर रहा हूं। हां, ये बात जरूर है कि उसे केबीसी की धुन बहुत प्यारी लगती है। उसे वो ध्यान से सुनती है। लेकिन अब जब आपने सुझाव दिया है, तो मैं निश्चित तौर पर आराध्या के साथ केबीसी खेलूंगा।

इन दिनों नई पीढ़ी गैजेट्स पर ज्यादा समय बिताती है?
हां, ये ही नया समय है और उसका कुछ नहीं किया जा सकता। हाल ही में मैं पढ़ रहा था कि बिल गेट्स ने अपनी अगली पीढ़ी को मोबाइल दिए ही नहीं हैं। वो टीवी नहीं देख सकते। उन्हें किताबों में चीजों को खोजना पड़ता है, वो गूगल भी सर्च नहीं कर सकते। लेकिन मैं यहां ये भी कहना चाहता हूं कि नई पीढ़ी बहुत स्मार्ट है और वो मल्टी टास्किंग कर लेती है। हम लोग तो थोड़े भ्रमित ही रहते हैं। ये पीढ़ी एक बार वॉट्सऐप करती है, फिर टीवी देखती है, फिर वो मैसेज भी कर लेती है। वो खाना-पीना भी साथ में कर लेती है और कहीं कोई गड़बड़ भी नहीं होती। कोई तो बात है उनमें। मेरे हिसाब से हमें इन गैजेट्स की आदत डाल लेनी चाहिए।

आप कई सामाजिक कैंपेन कर चुके हैं उस पर प्रकाश डालें?
मैं कई कैंपेन कर चुका हूं, जैसे स्वच्छ भारत है, या बेटी बचाओ है। कुछ स्वास्थ्य से जुड़े कैंपन भी हैं। पोलियो है, हेपेटाइटिस बी है, टीबी है। उसके अलावा कुछ सामाजिक मुद्दे और भी हैं जिनसे मैं जुड़ा हुआ हूं। हालांकि मुझे उस बारे में बात करना पसंद नहीं है लेकिन चलिए बात निकली है तो बता मैं देता हूं। मुझे किसानों की आत्महत्या जैसी बातें विचलित कर देती हैं। कुछ समय पहले मैं वायजाग में शूट कर रहा था तो वहां पढ़ा कि किसानों ने आत्महत्या कर ली, वो भी कभी 15 या 20 या 30 हजार के लिए। तो मुझे लगता था कि ये सब ठीक नहीं है। मैं शूट से वापस आया फिर कुछ लोगों की मदद से मैंने उन किसानों का पता लगाया जिनका इतनी रकम या आसपास की रकम तक का कर्जा चुकाया जाना था। मैंने उस रकम को चुका दिया और वो 40-45 किसान आत्महत्या करने से बच गए। कुछ ऐसा ही काम करने का मौका मुझे विदर्भ में भी मिला और 50 परिवारों के कर्जे को चुकाया गया।
 
इन दिनों मुझे देश के लिए सीमा पर लड़ने वाले सिपाहियों की मौत बहुत कचोटती है। मैं उनके परिवार वालों के लिए मदद करना चाहता हूं। अभी 3-4 दिनों पहले की ही बात है। हमें मालूम पड़ा है कि ऐसे 44 परिवार हैं जिन्हें मदद की जरूरत है। ये नाम मुझे सरकार की तरफ से मिले हैं। रही बात किसानों की तो अपनी बैंक की सहायता से हमने 200 किसानों के लिए 1 करोड़ 25 हजार की मदद कर्जमाफी के लिए पहुंचाने का इंतजाम कर लिया है और बैंक की तरफ से भी नामों और उनकी बाकी की जानकारियों पर वैरिफिकेशन भी आ गया है।

आप तो जीवन में खुद भी हेपेटाइटिस का शिकार रहे हैं?
आज भी हूं। मुझे जब 1980 में शूटिंग के दौरान चोट आई थी, तो खून की जरूरत पड़ी और चढ़ाए गए खून में से एक शख्स को शायद हेपेटाइटिस था, जो उस समय खोज नहीं पाए थे और उसका असर यह है कि मेरा 75% लिवर खराब है और सिर्फ 25% लिवर काम कर रहा है। इसे मेडिकल भाषा में 'लिवर सिरोसिस' कहते हैं। हालांकि मैं शराब का सेवन नहीं करता लेकिन उस संक्रमित खून की वजह से मैं आज इस अवस्था का शिकार हूं। मैं लोगों के लिए सही उदाहरण हूं कि आप जांच ठीक से और समय-समय पर कराते रहें। कम से कम सही वक्त पर पता चल जाएगा और बीमारी का तो इलाज शुरू हो सकेगा। टेस्ट चाहे टीबी का हो या हेपेटाइटिस का, जरूर कराएं। वर्ना मेरे जैसे को सालों बाद इस बात की मालूमात हुई और अब कुछ नहीं किया जा सकता है।

कभी कोई परेशानी आती है ऐसी कैंपेनिंग में?
वैसे जब हम स्वास्थ्य से जुड़े कैंपेन करते हैं, तो बहुत ध्यान रखना पड़ता है। डब्ल्यूएचओ से क्या बोलना है, कब बोलना है, सबके बारे में पूछना और राय लेनी पड़ती है। जैसे एक बार पल्स पोलियो के लिए आई। हम 8 साल से ये कैंपेन कर रहे हैं। एक ने कह दिया कि जो ड्रॉप्स आप दे रहे हैं, उससे हम बंधत्व का शिकार भी हो सकते हैं। हमें तो वैसे भी बोलते समय बहुत ज्यादा सोच-समझकर बोलना होता है, वर्ना कम्युनिकेशन बहुत तेज हो चुका है आजकल।

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