हिन्दी सिनेमा में फिल्मकार-गीतकार-संवाद लेखक और साहित्यकार गुलज़ार जैसा व्यक्तित्व रखने वाले अँगुलियों पर गिने जा सकते हैं। सफेद झक कुरता और पायजामा। चेहरे पर मुस्कान और मृदुभाषी। हिन्दी और उर्दू के साफ उच्चारण। कहीं से पंजाबीपन की झलक तक नहीं। गुलजार से मिलो तो ऐसा लगता है कि मिलते रहो। बातों का सिलसिला कभी खत्म न होने पाए, ऐसी इच्छा होती है। गुलज़ार भले ही शख्स के रूप में एक हों, लेकिन उनके हजारों चेहरे हैं और उन्होंने अपने हजारों चेहरों से लाखों प्रशंसक-दर्शकों को अपने से जोड़ा है। आइए, उनके अनछुए पहलुओं के पन्ने पलटें-