निर्माता : नवमान मलिक-सलमान मलिक निर्देशक : राज एन. सिप्पी संगीत : आनंद राज आनंद कलाकार : मिमोह चक्रवर्ती, विवाना, राहुल देव, शक्ति कपूर
ये संयोग की बात है कि पिछले दो-तीन हफ्तों से उस तरह की फिल्में देखने को मिल रही हैं जैसी कि 1970-80 के दौर में देखने को मिलती थीं। दो सप्ताह पहले ‘टशन’, पिछले सप्ताह ‘मि. व्हाइट मि. ब्लैक’ के बाद इस सप्ताह प्रदर्शित ‘जिमी’ भी उस दौर में बनने वाली फार्मूला फिल्म की तरह है।
‘जिमी’ का निर्माण मिथुन पुत्र मिमोह को बॉलीवुड में स्थापित करने के लिए किया गया है। ‘जिमी’ देखते समय यह बात दिमाग में आती है कि क्या इस फिल्म की पटकथा इतनी सशक्त है कि वह मिमोह को स्थापित होने में मदद करे?
क्या वो मिमोह की प्रतिभा के साथ न्याय करती है? आश्चर्य होता है अनुभवी मिथुन की समझ पर कि उन्होंने इतनी खराब पटकथा के लिए हाँ कैसे कहा? वो भी अपने बेटे की पहली फिल्म के लिए।
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मिमोह को देखकर लगता है कि यदि उन्हें सही भूमिका और फिल्म मिलें तो वे कमाल कर सकते हैं। वे इससे कहीं अधिक उम्दा पटकथा और फिल्म के हकदार हैं।
‘जिमी’ की पटकथा उन तमाम मसाला फिल्मों की असेम्बिलिंग है जिन्हें हम सैकड़ों बार देख चुके हैं। इस तरह की फिल्मों का वक्त अब गुजर चुका है। आज का सिनेमा बदल गया है। नए विचार और नई कहानियाँ आज की माँग है। ‘जिमी’ जैसी फार्मूलाबद्ध फिल्मों का वर्तमान दौर में कोई स्थान नहीं है।
निर्देशक राज एन. सिप्पी की राह में सबसे बड़ा रोड़ा खराब पटकथा थी, इसलिए वे ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। फिल्म का संगीत बेदम है।
मिमोह में संभावनाएँ नजर आती हैं, लेकिन उन्हें कई सुधार करना पड़ेंगे। उन्हें वजन कम करने और लुक पर ध्यान देने की जरूरत है। संवाद अदायगी को भी उन्हें सुधारना होगा। वे ऊर्जावान हैं, लेकिन जरूरत है इस ऊर्जा को सही दिशा में लगाने की।
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मिमोह के साथ विवाना की भी यह पहली फिल्म है। विवाना सुंदर हैं, लेकिन अभिनेत्री नहीं। शक्ति कपूर ने न जाने क्या सोचकर यह फिल्म की? राहुल देव, विकास कलंत्री और एहसान खान निराश करते हैं।
कुल मिलाकर ‘जिमी’ खराब फिल्मों की श्रेणी में आती है। फिल्म का कोई भविष्य नहीं है, लेकिन मिमोह सही दिशा में आगे बढ़ें तो उनका भविष्य उज्ज्वल हो सकता है।