विक्रम वेधा फिल्म समीक्षा: विक्रम और वेधा के बीच सही और गलत की लकीर

समय ताम्रकर
मसाला फिल्मों के नाम पर 'सत्यमेव जयते 2' और 'शमशेरा' जैसी फिल्म पेश करने वाले बॉलीवुड को इस कैटेगरी में फिल्म कैसी बनाई जाए ये दक्षिण भारतीय फिल्मकारों से सीखना चाहिए। रितिक रोशन और सैफ अली खान को लेकर बनाई गई 'विक्रम वेधा' बहुत महान फिल्म नहीं है लेकिन प्रस्तुतिकरण में ताजगी के कारण यह फिल्म दर्शकों को बैठाए रखती है। आम कहानी को नए तरीके से पेश करने में दक्षिण के फिल्मकार आगे रहते हैं। विक्रम वेधा में चोर पुलिस की कहानी है, लेकिन बात को एक नए अंदाज में उतार-चढ़ाव के साथ दर्शाया गया है। 


 
पुलिस ऑफिसर विक्रम (सैफ अली खान) को उसके पिता ने सिखाया है कि या तो सही होता है या गलत, बीच का कुछ नहीं होता। इस बात को मानते हुए वह अपराधियों का खात्मा करने में अपनी टीम के साथ जुटा रहता है। 18 एनकाउंटर वह कर चुका है और उसे एक खूंखार अपराधी वेधा (रितिक रोशन) की तलाश है जो 16 मर्डर कर चुका है। 
 
अचानक एक दिन वेधा खुद पुलिस के समक्ष पहुंच कर आत्मसमर्पण कर देता है। वकील के रूप में वह विक्रम की पत्नी प्रिया (राधिका आप्टे) की सेवाएं लेता है, जिससे विक्रम और उसकी पत्नी के बीच भी मतभेद होते हैं। वेधा की जमानत हो जाती है, लेकिन इसके पहले वह विक्रम को एक कहानी सुनाता है। 
 
एक बार फिर वेधा की तलाश में पुलिस जुट जाती है। विक्रम के हाथों वेधा फिर आ जाता है। इस बार भी वह एक कहानी सुनाता है। इन कहानियों में कुछ संकेत छिपे रहते हैं।  
 
सही और गलत को लेकर स्पष्ट सोच से चलने वाले विक्रम को समझ में आता है कि सही और गलत की लकीर न होकर एक सर्कल हो जिसमें सब घूम रहे हों। सही और गलत को देखने का जो उसका नजरिया है वो भी सही नहीं हो। 

 
इस फिल्म को पुष्कर और गायत्री ने लिखा और निर्देशित किया है। दोनों की जोड़ी दक्षिण भारत में नाम कमा चुकी है। इन्होंने ही तमिल में 'विक्रम वेधा' बनाई थी और अब हिंदी वर्जन को भी निर्देशित किया है। 
 
जिन्होंने ओरिजनल तमिल फिल्म देख रखी है उन्हें हिंदी वर्जन देख थोड़ी निराशा हो सकती है, लेकिन जो पहली बार सीधे हिंदी फिल्म देख रहे हैं उन्हें फिल्म पसंद आ सकती है। 
 
पुष्कर और गायत्री ने हिंदी दर्शकों के लिए 'विक्रम वेधा' की कहानी को लखनऊ में सेट किया है। रितिक और सैफ को 'बुड़बक', 'चौकस' 'बौरा गए हो क्या' जैसे शब्दों को बोलते देख फिल्म की शुरुआत में अटपटा लगता है। दोनों कलाकार भी थोड़े असहज नजर आते हैं, लेकिन धीरे-धीरे अपने अभिनय के बल पर वे इन कमियों पर काबू पा लेते हैं। 
 
विक्रम वेधा को दर्शकों पर ग्रिप बनाने में समय लगता है। शुरुआती 45 मिनट फिल्म धीमी और उबाऊ है। इसकी एक वजह यह भी है कि स्टार रितिक रोशन की एंट्री लगभग आधे घंटे बाद फिल्म में होती है। 
 
शुरुआती घंटे के बाद फिल्म में तेजी आती है और सामान्य सी लगने वाली कहानी अनोखे प्रस्तुतिकरण के कारण अच्छी लगने लगती है। फिल्म का दूसरा हाफ बढ़िया है और दर्शकों के लिए भरपूर मसाला है। 
 
बेताल पच्चीसी को लेकर फिल्म की शुरुआत में एनिमेशन है और दर्शाया गया है कि कहां से फिल्म बनाने की प्रेरणा ली गई है। रितिक और सैफ के टकराव के दृश्य मनोरंजन करते हैं। 
 
निर्देशक पुष्कर और गायत्री की खास बात यह रही कि उन्होंने रितिक और सैफ के स्टारडम को कहानी पर हावी नहीं होने दिया। स्क्रिप्ट के अनुसार ही दोनों सितारों को दृश्य मिले। सैफ को रितिक के बराबर या उनसे भी ज्यादा फुटेज मिले। 
 
दक्षिण भारतीय फिल्मकारों की आदत लंबी फिल्म बनाने की होती है और यही बात 'विक्रम वेधा' में अखरती है। कुछ दृश्य जरूरत से ज्यादा लंबे हो गए हैं इसलिए बीच-बीच में बोरियत भी होती है। 
 
यदि फिल्म आधा घंटा छोटी होती तो भागती हुई महसूस होती। 'अल्कोहलिया' जैसे गानों की फिल्म में कोई जरूरत नहीं थी। विक्रम और प्रिया का पुलिस-वकील वाला रिश्ता थोड़ा फिल्मी है। 
 
कमियों के बावजूद पुष्कर और गायत्री अपने निर्देशन के बल पर प्रभावित करते हैं। रितिक और सैफ के कैरेक्टर्स पर उन्होंने खासी मेहनत की है। सही और गलत के दृष्टिकोण को लेकर उन्होंने अपनी तरह से व्याख्या की है। कहीं-कहीं ड्रामा कन्फ्यूजिंग है, लेकिन ये फिल्म देखने में रूकावट नहीं पैदा करता। 

 
फिल्म का बड़ा प्लस पाइंट है रितिक और सैफ की एक्टिंग। एक निगेटिव किरदार में रितिक, जो दर्शकों की धीरे-धीरे सहानुभूति प्राप्त करता है, अच्छे लगे हैं। हालांकि उनका देसी लुक उनके फैंस को शायद कम पसंद आए, लेकिन उनकी एक्टिंग बढ़िया है। 
 
सैफ हैंडसम और फिट लगे हैं और हमेशा की तरह उनका काम अच्छा है। रितिक और सैफ ने अपने किरदार को पूरी फिल्म में जकड़ कर रखा है। 
 
राधिका आप्टे का रोल छोटा, लेकिन प्रभावी है। रोहित सराफ, शरीब हाशमी, गोविंद पांडे सहित तमाम सह कलाकार ने अपना-अपना पार्ट अच्छे से निभाया है। 
 
विशाल-शेखर और सैम सीएस के संगीत में दम नहीं है। फिल्म के कुछ संवाद शानदार हैं। पीएस विनोद की सिनेमाटोग्राफी और सैम सीएस का बैकग्राउंड म्यूजिक तारीफ के काबिल हैं। 
 
विक्रम वेधा के रोमांचक उतार-चढ़ाव और रितिक-सैफ का दमदार परफॉर्मेंस फिल्म को देखने लायक बनाते हैं।  
 

सम्बंधित जानकारी

अगला लेख