अगली भी पगली भी

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निर्माता : रंगिता प्रीतीश नंदी - प्रीतीश नंदी
निर्देशक : सचिन कमलाकर खोट
कथा-पटकथा : अनिल पांडे
गीतकार : अमिताभ वर्मा
संगीत : अनु मलिक
कलाकार : मल्लिका शेरावत, रणवीर शौरी, टीनू आनंद, सुष्मिता मुखर्जी, मनीष आनंद, विहांग नायक, भारती आचरेकर
यूए * 8 रील
रेटिंग : 1.5/5

‘अगली और पगली’ का सिर्फ विचार ही अच्छा है। इस विचार का विस्तार खराब तरीके से किया गया है, जिससे फिल्म अगली भी लगती है और पगली भी।

कबीर (रणवीर शौरी) बेहद दब्बू किस्म का लड़का है। दस वर्ष से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है और एक गर्लफ्रेंड का ख्वाब पाले हुए है। कुहू (मल्लिका शेरावत) एक खूबसूरत और बिंदास लड़की है। उसकी जितनी तेज जुबाँ चलती है उतने तेज हाथ भी। दोनों विपरीत स्वभाव के हैं और इनको लेकर प्रेम कहानी बनाने का विचार उम्दा है। ‘जाने तू या जाने ना’ में भी कुछ इसी तरह का प्लाट था।

चरित्रों को अच्छी तरह गढ़ तो लिया गया, लेकिन निर्देशक सचिन खोट और लेखक अनिल पांडे इनको लेकर एक अदद कहानी नहीं सोच पाए। कबीर और कुहू की नोकझोंक के जरिए फिल्म आगे बढ़ती गई। कुहू ने कबीर से ऊँची एड़ी की सेंडिल पहनवाई। पेटीकोट पहनाकर‍ बिना सीट की साइक‍िल चलवाई, लेकिन ऐसे दृश्य बेहद कम थे, जिन पर हँसी आए। कुहू के चरित्र की तरह फिल्म कब किस दिशा में मुड़ जाए, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।

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कुहू अपने प्रेमी को खो चुकी है और उसका गम भुलाने के लिए वह कबीर से दोस्ती बढ़ाती है। कबीर के साथ वक्त गुजारने के बावजूद जब वह अपने पुराने प्रेमी को भुला नहीं पाती तो कबीर की जिंदगी से अलग हो जाती है। कबीर उसकी तलाश करता है, लेकिन वह नहीं मिलती। आखिर में फिल्मी अंदाज में दोनों मिल जाते हैं। इतनी छोटी-सी कहानी को भी परदे पर ठीक तरह से पेश नहीं किया गया।

कबीर से अलग होने के बाद कुहू डेढ़ वर्ष के लिए कोलकाता क्यों चली जाती है? कबीर उसको ठीक से क्यों नहीं ढूँढता। वह बजाय उसे फोन, ई-मेल या एसएमएस करने के एक पेड़ पर अपने संदेश क्यों चिपकाता रहता है? उस पेड़ को लेखक ने इतना महत्व क्यों दिया जबकि पूरी फिल्म में एक बार ‍भी कबीर और कुहू उस पेड़ के पास नहीं जाते? कबीर अपना घर और फोन नंबर क्यों बदल लेता है? कुहू अचानक क्यों बदल जाती है और गौरव कपूर से शादी करने के लिए राजी हो जाती है? कबीर के बारे में गौरव को सारी जानकारी कैसे रहती है? गौरव के जरिये भी कबीर कुहू से क्यों नहीं मिला? ऐसे ढेर सारे सवाल फिल्म देखते समय उठते हैं, जिनका जवाब नहीं मिल पाता।

सचिन खोट की यह पहली फिल्म है और उनमें अनुभव की कमी झलकती है। फिल्म में कई दृश्य ऐसे हैं, जो नहीं भी होते तो कहानी पर कोई असर नहीं होता। फिल्म में स्थान और समय का भी ध्यान नहीं रखा गया है। कबीर और कुहू एक बिल्डिंग की छत पर मिलते रहते हैं। वह बिल्डिंग किसकी है? कहाँ है? वे वहाँ क्यों मिलते हैं? इस बारे में कुछ भी नहीं बताया गया। कुहू का मोबाइल कबीर सुबह लौटाने जाता है। उसके बाद दोनों एक रेस्तराँ में जाते हैं। वहाँ से निकलते हैं तो रात हो जाती है। दृश्यों का एक-दूसरे से तारतम्य भी नहीं है। कई दृश्यों को दोहराया गया है।

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मल्लिका शेरावत और रणवीर शौरी का उम्दा अभिनय ही इस फिल्म का एकमात्र सकारात्मक पहलू है। दोनों ने अपने किरदार में घुसकर अभिनय किया है। ज़ीनत अमान, टीनू आनंद, सुष्मिता मुखर्जी और भारती आचरेकर छोटी-छोटी भूमिकाओं में नजर आए। 99 थप्पड़ और एक किस का यह सौदा महँगा है।

***** अद्‍भुत **** शानदार *** अच्छी ** औसत * बेकार