रायपुर। महासमुंद जिले की चारों सीटों पर कब्जा करने वाली भाजपा इस बार काँटे के मुकाबले में फँस गई है। सोशल इंजीनियरिंग की बदौलत पार्टी ने महासमुंद व खल्लारी सीट से उम्मीद लगा रखी है। बसना व सरायपाली में यह फार्मूला भाजपा पर भारी पड़ रहा है। भाजपा ने नए चेहरों को मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस पुराने व हारे नेताओं के भरोसे नैया पार लगाने की कोशिश में है। राजनीतिक प्रेक्षकों के मुताबिक जिले की किसी भी सीट पर बसपा मुकाबले में नहीं है।
महासमुंद में साहू बहुल इस विधानसभा क्षेत्र में शुरू से कुर्मी नेताओं का दबदबा रहा है। इसके बावजूद भाजपा ने संसदीय सचिव पूनम चंद्राकर का टिकट काटने से गुरेज नहीं किया। पार्टी को इसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। इसकी भरपाई करने के लिए भाजपा नेतृत्व ने मोती साहू को मैदान में उतारा है। नया चेहरा होने के कारण पार्टी ने साहू से काफी उम्मीदें लगा रखी हैं। नगर पालिका अध्यक्ष डॉ. विमल चोपड़ा का समर्थन उन्हें हासिल है। कांग्रेस ने पूर्व विधायक अग्नि चंद्राकर को टिकट देकर मुकाबला दिलचस्प बना दिया है। भाजपा में नाराज कार्यकर्ताओं का एक वर्ग अब तक प्रचार करने नहीं निकला है। साहू को समाज के लोगों को लामबंद करना पड़ रहा है, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी ने कुर्मी समाज को अपने पक्ष में लामबंद करने में काफी हद तक सफलता हासिल कर ली है। फिलहाल मुकाबला बराबरी का नजर आ रहा है।
खल्लारी : भाजपा ने इस अनारक्षित सीट पर दोबारा आदिवासी प्रत्याशी उतार कर सोशल इंजीनियरिंग के जरिए जीत हासिल करने की रणनीति अपनाई है। पार्टी ने मौजूदा विधायक प्रीतम दीवान को फिर टिकट दिया है। परिसीमन में बसना विधानसभा क्षेत्र व पिथौरा का आदिवासी क्षेत्र इस सीट से जुड़ गया है। भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि इसका लाभ दीवान को मिलेगा। साहू समाज का एक बड़ा वर्ग भी उनके साथ जुड़ गया है। दीवान को फिर प्रत्याशी बनाने से भाजपा में असंतोष सतह पर आ गया है।
उनके खिलाफ रमेश ठाकुर ने नामांकन दाखिल कर दिया है। उन्हें मनाने में पार्टी नेता जुटे हुए हैं। साधनों के मामले में भी दीवान कमजोर नजर आ रहे हैं। वहीं कांग्रेस ने पूर्व विधायक व पिछला चुनाव हारने वाले परेश बागबाहरा पर दाँव लगाया है। सांसद अजीत जोगी की सिफारिश से टिकट पाने वाले परेश साधन संपन्न होने के बावजूद सोशल इंजीनियरिंग में पिछड़ गए हैं। कांग्रेस में पिछड़े वर्ग के आधा दर्जन से ज्यादा टिकट के दावेदार थे। टिकट नहीं मिलने पर उनकी नाराजगी स्वाभाविक है। यह अंतर्विरोध कांग्रेस प्रत्याशी के लिए चुनौती बन गया है।
बसना : परिसीमन में सरायपाली सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के बाद फूलझर स्टेट के हाथ से दो विधानसभा सीट निकल गई है। अब 'महल' की राजनीति सिर्फ बसना से चलेगी। यही कारण है कि वयोवृद्ध महेन्द्र बहादुर सिंह अपने भतीजे देवेन्द्र बहादुर सिंह की खातिर चुनाव मैदान से हट गए हैं। क्षेत्र के लिए देवेन्द्र बहादुर जाना-पहचाना नाम है। जिला कांग्रेस अध्यक्ष के नाते वे गाँव-गाँव घूमते रहते हैं। इसका लाभ उन्हें चुनाव प्रचार के दौरान भी मिल रहा है। परिसीमन में इस सीट की चाबी कोलता समाज के पास आ गई है। समाज के दावे को कांग्रेस ने नजरअंदाज कर दिया। इससे नाराज समाज ने चन्द्रमणि प्रधान को मैदान में उतार दिया। अब उन्हें मनाने की कोशिश चल रही है।
एनसीपी के टिकट पर बीते चुनाव में 18 हजार वोट हासिल करने वाले सरिंदर सिंह भी निर्दलीय प्रत्याशी की हैसियत से किस्मत आजमा रहे हैं। इस बार एनसीपी की ताकत उनके साथ नहीं होगी। इसके बावजूद उनकी मौजूदगी कांग्रेस को ही नुकसान पहुँचाएगी। भाजपा ने पिथौरा मंडी अध्यक्ष प्रेमशंकर पटेल को टिकट देकर अघरिया वोटों को रिझाने की कोशिश की है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कोलता समाज भाजपा का साथ देता है या नहीं। पटेल के पक्ष में हवा बनाने के लिए पार्टी मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, दिलीप सिंह जूदेव व फिल्मी सितारों की सभाएँ कराने की तैयारी में हैं।
सरायपाली : अनुसूचित जाति के लिए सीट आरक्षित होने के कारण क्षेत्र की राजनीति बसना में केन्द्रित हो गई है। आरक्षण के कारण दावेदारों की संख्या में भी कमी आई। यही वजह है कि भाजपा को प्रत्याशी तलाशने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। पार्टी ने जिला सहकारी बैंक के कर्मचारी की पत्नी नीरा चौहान को टिकट दिया है। क्षेत्र में गाड़ा चौहान समाज के लोगों की तादाद खासी है। इसका लाभ श्रीमती चौहान को मिलने की संभावना है। वहीं भटगाँव सीट विलोपित होने के बाद विधायक डॉ. हरिदास भारद्वाज ने सरायपाली का रुख किया है। अपने राजनीतिक अनुभव और सांसद जोगी का समर्थन होने के कारण उनकी स्थिति काफी मजबूत है। इसके बावजूद नए क्षेत्र में कहीं-कहीं उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।