मोर्चे पर राजा और ठाकुर

- अरुण उपाध्याय
कवर्धा विधानसभा क्षेत्र पर लगातार दस वर्ष से कांग्रेस विधायक के रूप में राज कर रहे राजमहल के योगेश्वर राज सिंह अपनी सत्ता बचाने के लिए मोर्चे पर डटे हुए हैं। ठीक इसी तरह जिले के ठाठापुर निवासी मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह खुद को इस सीट पर मैदान पर मान रहे हैं। उनकी ओर से भाजपा प्रत्याशी डॉ. सियाराम साहू लगातार दूसरी बार भाग्य आजमा रहे हैं। डॉ. साहू के साथ डॉ. सिंह की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है, इसलिए इस चुनाव को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

डॉ. सिंह 1990 और 1993 में कवर्धा से विधायक रह चुके हैं। 1998 के चुनाव में उन्हें योगेश्वर ने पराजित किया था। तब से सीट कांग्रेस के पास है। रमन सरकार का पॉंच वर्ष बीतने के बाद क्षेत्र के माहौल में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल रहा है। पिछले चुनाव की तुलना में भाजपा इस बार अधिक दमखम से मुद्दों को उठाने और वोट मॉंगने की हिम्मत दिखा रही है।

इसका कारण रमन सरकार का कार्यकाल है। अब स्थानीय भाजपाइयों के पास दिखाने के लिए डॉ. सिंह की छवि है और बताने के लिए विकास। इलाके में टिकट के दावे और लड़ाई का मसला खत्म हो चुका है। आम भाजपाई सिर्फ रमन के लिए काम करने की बात कर रहा है। पिछले चुनाव में हुई चूक को सुधारने के लिए गंभीरता से प्रयास किए जा रहे हैं। राज्य भंडारगृह निगम के अध्यक्ष रहे सियाराम जिला और मंडल भाजपा अध्यक्ष के रूप में काम कर चुके हैं।

हालाँकि इलाके में साहू और कुर्मी मतदाता अधिक हैं, मगर पिछले चुनावों से साफ है कि जातिगत समीकरण का कोई असर नहीं पड़ता। भाजपा कवर्धा ग्रामीण क्षेत्र के 10-15 गाँवों में कमजोर पड़ी थी, वहॉं भाजपा की सक्रियता ज्यादा नजर आ रही है। शिक्षा, सिंचाई के क्षेत्र में हुए काम और कवर्धा में खोले गए नए संस्थानों के जरिए वोटों पर कब्जा करने की रणनीति पर भाजपा काम कर रही है। इसके अलावा कांग्रेस प्रत्याशी के विधायक के रूप में सक्रिय नहीं रहने का आरोप लगाकर निशाना साधा जा रहा है। सियाराम को किसान के बेटे के रूप में पेश कर सीधे राजतंत्र से टक्कर प्रचारित की जा रही है।

बैगाओं पर नजर : भाजपा सरकार ने आदिवासी इलाकों में निवास करने वाले बैगा परिवारों को वश में करने के लिए सभी तरह के उपाय कर लिए हैं। बैगा परिवारों को शतप्रतिशत अनुदान के साथ आवास मुहैया कराया गया है। आदिवासी वोटों का झुकाव परंपरागत तरीके से कांग्रेस की ओर रहा है। भाजपा ने इन वोटों को तोड़ने का बंदोबस्त किया है, अब यह मतदान से पता चलेगा कि प्रयास कितने प्रभावी रहे। कवर्धा जिले में लगभग 100 बैगा परिवारों को आवास दिया गया है।

भ्रष्टाचार मुद्दा, एनसीपी की गैरहाजिरी से उम्मीदें : कांग्रेस प्रत्याशी को कवर्धा जिले में भ्रष्टाचार के आरोपों और इस बार एनसीपी की गैरहाजिरी से वापसी की उम्मीद बढ़ गई है। योगेश्वर ने पिछले चुनाव में करीब पाँच हजार वोटों से जीत हासिल की थी, जबकि एनसीपी ने लगभग 12 हजार वोट झटक लिए थे। एनसीपी के वोटों को कांग्रेस अपना वोट मान रही है और उम्मीद जता रही है कि इससे अब के चुनाव में मदद मिलेगी। यह अलग बात है कि गोंगपा भी इस बार मैदान में है और प्रभावी भूमिका निभाने का दावा कर रही है।

बीते दिनों कवर्धा में 15 हजार से अधिक आदिवासियों की उपस्थिति में पार्टी ने जंगी प्रदर्शन किया था। कांग्रेस जोगी शासन में स्थापित किए गए शक्कर कारखाने को मुद्दे के रूप में प्रचारित कर वोट मॉंग रही है। साथ ही भाजपा पर निशाना साधने के लिए सरकारी कामों व निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार, दलाली, सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गड़बड़ी और गाय-बैल नहीं बॉंटे जाने को हथियार बना रही है। योगेश्वर के लिए तकलीफदेह बात यह है कि परिसीमन में इलाका बढ़ गया है और उनके पास अंतिम छोर तक जाकर प्रचार करने का वक्त नहीं है। संगठन की कमान भी उन्हीं के पास है।

इस कारण उन्होंने कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति कर सामंजस्य बढ़ाने की कोशिश की है। इलाके में अभी प्रचार गति नहीं पकड़ सका है। कांग्रेस और भाजपा अभी प्रचार के लिए तैयारी में जुटी हुई हैं। हालॉंकि दोनों पार्टियों के प्रत्याशी जनसंपर्क में निकल चुके हैं। दोनों दलों के लिए राहत की बात यह है कि किसी ने बगावत नहीं की है। गोंगपा से सिमरन सिंह मरकाम किस्मत आजमा रहे हैं। बसपा फिलहाल इलाके में अस्तित्व बनाने की कवायद कर रही है। इस पार्टी को परंपरागत और सामाजिक वोट ही मिलते रहे हैं। (नईदुनिया)

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