महामूर्खता भी हो सकती है कृत्रिम बुद्धिमत्ता

राम यादव
रविवार, 14 मई 2023 (08:30 IST)
artificial intelligenc: इस चराचर जगत में हर चीज के सदैव 2 गुणात्मक पहलू होते हैं- लाभकारी व हानिकारी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) अर्थात कृत्रिम बुद्धिमत्ता डिजिटल प्रौद्योगिकी (digital technology) की एक ऐसी ही जादुई छड़ी है, जो हमारे बहुत सारे काम पलक झपकाते ही यदि आसान बना सकती है तो उसी आसानी से हमें भारी परेशानी में भी डाल सकती है।
 
वही चीज जिसे हम अपने लिए लाभकारी समझते हैं, आज किसी दूसरे के लिए और कल संभवत: हमारे लिए भी हानिकारक सिद्ध हो सकती है। इसी विडंबना का एक सबसे ताजा उदाहरण है, संसूचना तकनीक के कम्प्यूटर आदि बनाने वाली अमेरिका की सबसे बड़ी कंपनी 'इंटरनेशनल बिजनेस मशीन कॉर्पोरेशन (IBM)' की एक नई योजना।
 
आईबीएम की छंटनी योजना : दुनिया के 175 देशों में फैले आईबीएम के विश्वव्यापी कारोबार में इस समय कुल लगभग 2,60,000 लोग कार्यरत हैं। भारतीय मूल के अरविंद कृष्णा इस बहुराष्ट्रीय कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) हैं।
 
इन्हीं दिनों उन्होंने बताया कि अपने प्रशासनिक कार्यों में आईबीएम जल्द ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई/AI) वाली खूबियों के उपयोग द्वारा कार्यस्थानों की संख्या घटाना यानी नौकरियों में कमी लाना चाहती है। उनका कहना है कि कर्मचारी प्रबंधन वाले प्रशासनिक विभाग में स्वचालन के लिए 'एआई' के उपयोग से अगले 5 वर्षों में एक-तिहाई कर्यस्थानों को घटाया जा सकता है।
 
अरविंद कृष्णा के अनुसार आईबीएम में करीब 26,000 ऐसे लोग कार्यरत हैं, ग्राहकों से जिनका कोई सीधा संपर्क नहीं होता। इस योजना से ऐसी लगभग 7,800 नौकरियां प्रभावित होंगी। इसके अलावा सेवानिवृत्ति आदि से जो रिक्तियां बनेंगी, AI की कृपा से उन्हें भी नई नियुक्तियों द्वारा भरने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। दफ्तरी काम या कंपनी के विभिन्न विभागों में कर्मचारियों के स्थानांतरण इत्यादि से पैदा होने वाले कागजी काम पूरी तरह से स्वचालित हो जाएंगे। हालांकि श्रम और उत्पादकता नियोजन जैसे कुछ कार्यों को अगले दशक में भी AI द्वारा विस्थापित नहीं किया जा सकेगा।
 
सॉफ्टवेयर की मांग बनी रहेगी: दूसरी ओर अरविंद कृष्णा यह भी स्वीकार करते हैं कि सॉफ्टवेयर बनाने वालों की अब भी बड़ी मांग है। आईबीएम के प्रशासनिक कार्यों में AI के उपयोग के विपरीत सॉफ्टवेयर के विकास हेतु कंपनी के उन हिस्सों में और अधिक स्थान बनाने होंगे, जहां ग्राहकों से सीधा संपर्क होता है। मुख्यत: कम्प्यूटर बनाने के लिए प्रसिद्ध आईबीएम ने समय के साथ मेनफ्रेम, सॉफ्टवेयर और आईटी (इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी) से जुड़ी सेवाओं के मामले में भी में विशेषज्ञता प्राप्त कर ली है।
 
विशेषज्ञ मानते हैं कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले कम्प्यूटर यानी नई-नई बातें स्वयमेव सीखने के प्रोग्रामों से लैस कम्प्यूटर आने वाले समय में दुनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकते हैं। इस समय चैटजीपीटी (ChatGPT) या गूगल के बार्ड (Bard) सॉफ्टवेयर वाले कम्प्यूटर लिखित पाठों (टेक्स्ट) के आधार पर कुछ लिख सकते हैं, पढ़कर सुना सकते हैं, तस्वीरें बना सकते हैं या चित्रकारी भी कर सकते हैं।
 
इन सबकी बड़ी चर्चा है, पर इतनेभर से व्यापक छंटनी और भारी बेरोजगारी जैसा कोई ख़तरा या संकट अभी तुरंत पैदा नहीं होने जा रहा। ऐसे कम्प्यूटरों से अभी मुख्यत: ऐसे लोगों की नौकरियां जाएंगी जिन्हें दफ्तरों आदि में लिखने-पढ़ने के बार-बार एक जैसे कागजी काम करने होते हैं।
 
'एआई' चेतना-संवेदनाविहीन है : लेकिन समय के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले आधिकाधिक परिष्कृत कम्प्यूटर बनेंगे और प्रचलित होंगे। वे हमेशा आजकल के 'पर्सनल कम्प्यूटर (PC)' जैसे ही नहीं होंगे, बल्कि तरह-तरह की मशीनों और रोबोट के रूप में होंगे। वे ऐसे-ऐसे काम कर सकेंगे जिन्हें बीमार या घायल हो सकने, मर सकने या नैतिकता की दुविधा में पड़ सकने वाले हम मनुष्य नहीं कर सकते। उनमें बुद्धिमत्ता तो होगी किंतु कर्तव्यभाव, मानवीय चेतना और संवेदना, नीति और नैतिकता का बोध नहीं होगा।
 
ब्रिटिश-कैनेडियन 75 वर्षीय जेफ्री हिंटन कृत्रिम बुद्धिमत्ता के खोजी पिता माने जाते हैं। 2012 में उन्होंने अपना 'स्टार्ट-अप' 4 करोड़ 40 लाख डॉलर में गूगल को बेच दिया। तभी से वे टोरंटो विश्वविद्यालय में पढ़ाने के साथ-साथ गूगल के लिए भी काम करने लगे थे। अप्रैल 2023 तक वे गूगल के 'वाइस प्रेसीडेंट' और 'इंजीनियरिंग फॉलो' भी रहे। लेकिन अप्रैल के अंत में उन्होंने त्यागपत्र देकर गूगल से नाता तोड़ लिया। इसलिए ताकि वे 'समाज और मनुष्यों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता के गंभीर ख़तरों के प्रति आगाह' करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र रहें।
 
'वे हमारे जैसे बन सकते हैं': त्यागपत्र देने के बाद BBC और न्यूयॉर्क टाइम्स को उन्होंने इंटरव्यू दिए। कहा कि इस नई प्रौद्योगिकी के घातक परिणामों को नियंत्रित नहीं किया जा सकेगा और 'मेरी समझ से कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले कम्प्यूटर प्रोग्राम अभी उतने बुद्धिमान नहीं हैं जितने हम हैं। लेकिन वे हमारे जैसे बन सकते हैं।'
 
उनका इशारा गूगल और 'ओपन एआई' के 'चैटबोट' और 'चैटजीपीटी' की तरफ था जिनके लिए इन दोनों कंपनियों ने कम्प्यूटरों द्वारा निरंतर सीख सकने के ऐसे सॉफ्टवेयर रचे हैं, जो अब तक के अन्य कम्प्यूटरों की अपेक्षा कई-कई गुना अधिक डेटा और बिजली इस्तेमाल करते हैं। दोनों ने सॉफ्टवेयर बनाने में 'डीप लर्निंग' और 'न्यूरॉन नेटवर्क' नाम से प्रसिद्ध जेफ्री हिंटन के शोधकार्य का लाभ उठाया है।
 
अपने साथ इंटरव्यू में हिंटन का कहना था कि श्रम बाजार के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता से जुड़े खतरे इतने विविध प्रकार के हैं कि उनका पूर्वावलोकन मुश्किल है; वे 'समाज और मानवता के लिए बहुत जोखिमभरे होंगे।' तकनीकी कंपनियों के बीच इस समय एआई को 'ख़तरनाक तेज गति से' विकसित करने की एक 'भयंकर प्रतिस्पर्धा' चल पड़ी है। ग़लत सूचनाएं फैलाई जा रही हैं। 'यह कल्पना करना मुश्किल है कि बुरे लोगों को एआई का दुरुपयोग करने से कैसे रोका जाए।'
 
बहुत-से रोजगार छिन सकते हैं: नौकरियों का जिक्र करते हुए, हिंटन ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता 'गुलामों जैसी मजदूरी' को अनावश्यक तो बना सकती है, 'लेकिन बहुत-से रोजगार छीन भी सकती है।' जेफ्री हिंटन ने 1980 के दशक में मानवीय मस्तिष्क के 'न्यूरॉन नेटवर्क' (तंत्रिका संजाल) को जानने-समझने पर शोधकार्य किया था।
 
2012 में उन्होंने अपनी खुद की एक कंपनी बनाई और कम्प्यूटर द्वारा कोई काम स्वयं सीखने के सॉफ्टवेयर बनाकर उनके साथ प्रयोग किए। ये प्रयोग 'तंत्रिका संजाल' से प्रेरित भावी कृत्रिम बुद्धिमत्ता संबंधी अपने ढंग के प्रथम प्रयोग कहे जा सकते हैं इसीलिए 'न्यूयॉर्क टाइम्स' हिंटन को कृत्रिम बुद्धि का 'गॉडफादर' कहता है।
 
जेफ्री हिंटन ने, जो अब 75 वर्ष के हैं, 2012 में अपनी स्टार्टअप कंपनी गूगल को इस शर्त पर बेची कि गूगल का अंग बनने के बाद भी वे उससे जुड़े रहेंगे और कृत्रिम बुद्धिमत्ता संबंधी अपने शोधकार्य जारी रखेंगे। उस समय वे यह नहीं सोच रहे थे कि जिस कृत्रिम बुद्धिमत्ता के वे जन्मदाता हैं, मुश्किल से 10 ही वर्षों में वह इतनी सयानी हो जाएगी कि दुनिया के लिए परमाणु शक्ति जैसी ही एक ऐसी दुविधा बन जाएगी, जो 'भई गत सांप-छछूंदर केरी' वाली कहावत की तरह, न निगलते बने और न उगलते बने। परमाणु शक्ति के समान ही कृत्रिम बुद्धिमत्ता के भी अनेक लाभ हैं तो विनाशकारी ख़तरे भी हैं। लाभ के लालची तो सभी होते हैं, ख़तरों की याद दिलाकर कर अपना धंधा बिगाड़ना कोई नहीं चाहता।
 
पश्चाताप : जेफ्री हिंटन को भी अपनी जिस खोज पर कभी बहुत गर्व था, आज उसके बारे में कहते हैं कि मेरी 'चेतना का एक हिस्सा अपने जीवन की उपलब्धि पर पछता रहा है।' वे अपने आपको यह सोचकर सांत्वना देते हैं कि 'यदि मैंने यह नहीं किया होता तो कोई दूसरा इसे करता।' उनका कहना है कि वे यह मानकर चल रहे थे कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता की वास्तविकता तक पहुंचने में अभी 30 से 50 साल लगेंगे।
 
गूगल ने भी इन्हीं दिनों एक वक्तव्य जारी कर कहा कि वह हिंटन के योगदान के लिए उनका आभारी है। साथ ही 'एआई के प्रति एक उत्तरदायित्वपूर्ण व्यवहार के लिए प्रतिबद्ध भी है।' गूगल का कहना है कि एआई के ख़तरों की समझ से वह हमेशा कुछ सीखता है, पर साथ ही साहसिक नवीनताओं की तरफ बढ़ता भी रहता है।
 
विशेषज्ञों की अपील : तकनीकी जगत के एक सबसे बहुचर्चित नाम अमेरिका के एलन मस्क तथा कई दूसरे वैज्ञानिकों और विशेषज्ञो ने भी पिछले मार्च महीने में आग्रह किया कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता की दिशा में तेजी से आगे बढ़ने को कुछ समय के लिए रोका जाए। एक लिखित अपील में उनका कहना था: 'कृत्रिम बुद्धिमत्ता की ऐसी प्रणालियां (सिस्टम), जो मनुष्यों के लिए प्रतिस्पर्धी हो सकती हैं, समाज और मानवता के लिए बहुत घातक बन सकती हैं। बहुत शक्तिशाली एआई प्रणालियां तब विकसित की जा सकती हैं, जब हम आश्वस्त हो सकें कि उनके परिणाम सकारात्मक होंगे और उनसे उत्पन्न होने वाले ख़तरे नियंत्रण में रखे जा सकेंगे।'
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

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