भारतीय गणतंत्र में प्रजातंत्रीय निखार की दरकार

भारत को विश्व का सबसे बड़ा प्रजातान्त्रिक राष्ट्र कहा जाता है। परन्तु इसके अर्थ को समझने में कई लोग भूल कर जाते हैं। भारत पहले एक गणतांत्रिक राष्ट्र है और उसके बाद एक प्रजातान्त्रिक राष्ट्र। प्रजातंत्र की परिभाषा है जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता का शासन अर्थात परिभाषा के अनुसार तो शासन जनता को चलाना चाहिए, उनके नुमाइंदों को नहीं। 
पाठकों को जानकर आश्चर्य होगा कि इतिहास  में मात्र  एक बार प्रजातान्त्रिक व्यवस्था से राष्ट्र को चलाने का प्रयास हुआ था, वह भी प्राचीन ग्रीस में जब प्रत्येक बिल, मुद्दे और निर्णय पर जनता से रायशुमारी की जाती थी।  तब वहां सच्चे अर्थों में जनता का शासन था किन्तु यह व्यवस्था अधिक दिनों तक चल नहीं सकी।  
 
आज विश्व का कोई भी राष्ट्र सम्पूर्ण रूप से प्रजातंत्र नहीं है।  कहीं न कहीं प्रतिनिधियों का सहारा लेना ही  पड़ता है। यदि आज विश्व में प्रजातंत्र के सबसे निकट कोई देश है तो वह है स्विट्ज़रलैंड।  यहां सरकार केवल विधि के अनुसार देश को चलाने के लिए होती है निर्णय लेने के लिए नहीं। स्विट्ज़रलैंड में सरकार से संसद शक्तिशाली है जो सारे नीतिगत निर्णय लेती  है। 
 
अब एक रोचक बात, वहां संसद द्वारा  पास किए गए किसी भी कानून  में आम नागरिक अपना संशोधन पेश कर सकता है, यदि उसने जरुरी  संख्या में हस्ताक्षर प्राप्त कर लिए हों अर्थात देश के  हर नागरिक के पास देश के कानून में बदलाव का अधिकार है। यदि संविधान में कोई परिवर्तन हो रहा हो तो जनता से रायशुमारी करना आवश्यक है। नेता या सरकार जनता की ओर से निर्णय नहीं ले सकते। संविधान में परिवर्तन केवल जनता कर सकती है उसके नुमाइंदे नहीं। जो नुमाइंदे चुने जाते हैं उनके काम पर जनता की तीखी निगाहें होती हैं, इसलिए नुमाइंदे अपने काम को बड़ी ईमानदारी और अपनी पूरी क्षमता से करते हैं। इस प्रकार शासन व्यवस्था में जनता का सीधा हस्तक्षेप होता है जो अन्य किसी राष्ट्र में नहीं है। 
 
अब हम प्रजातंत्र को भारत के सन्दर्भ में देखें। 15 अगस्त 1947 को हमारे पुरखों ने अपनी मातृभूमि को आक्रमणकारियों से स्वतंत्र करवाया था और 26 जनवरी 1950 को भारत की जनता ने संविधान की सर्वोच्च सत्ता  को स्वीकार कर लिया था अर्थात हमने संविधान को अधिनायक बनाकर उसकी अधीनता को सहर्ष स्वीकार किया  था। हमारे राष्ट्र गान की प्रथम  पंक्तियों में हम उस अधिनायक की जय करते हैं जो भारत का  भाग्य विधाता है।  
 
यह भारत का  भाग्य विधाता, अधिनायक कौन है?  भारत का संविधान ही भारत का अधिनायक है जिसकी हम जय करते हैं। कितना वृहद  विचार है कि हम अपने संविधान को इतना पवित्र मानकर उसकी जय करते हैं। यह संविधान ही है जो हमें लिखने और बोलने की स्वतंत्रता देता है और साथ ही साथ उसकी सीमाओं को भी बांधता है।  हमारा संविधान बहुमत का आदर तो करता है किन्तु बहुमत द्वारा किसी व्यक्ति या  समाज के मूलभूत अधिकारों के साथ अन्याय करने की अनुमति नहीं देता। उदाहरण  लीजिए पाकिस्तानी आतंकवादी कसाब का। बहुमत के आधार पर यदि फैसले होते तो शायद कसाब को पकड़ते ही फांसी लगा दी जाती किन्तु हमारा देश प्रजातंत्र से पहले एक गणतंत्र है, जहां प्रत्येक व्यक्ति को सजा मिलने से पहले अपनी बात रखने का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त है। ऐसे अनेक फैसले हैं, जो प्रजातंत्र में तुरंत लिए जा सकते हैं किन्तु हमारे प्रजातंत्र की बुनियाद बहुसंख्यकवाद नहीं है। 
 
यह एक विचार का प्रश्न है कि हम अपने देश को कितना प्रजातान्त्रिक और कितना गणतांत्रिक रखना चाहते हैं? गणतंत्र में संविधान सर्वोच्च और प्रजातंत्र में प्रजा सर्वोच्च। गणतंत्र में संविधान अधिनायक, प्रजा नायक किन्तु गुलाम कोई नहीं। किसी भी राष्ट्र का अंतिम लक्ष्य तो प्रजातंत्र ही होना चाहिए, किन्तु यह तभी संभव है जब उस देश के नागरिक इतने शिक्षित और मनीषी हों कि वे धर्म, जाति, सम्प्रदाय और क्षेत्र से ऊपर उठकर केवल राष्ट्र हित में सोच सकें। तब तक  हमारा संविधान ही हमारा पथ प्रदर्शन करता रहेगा। 
 
वर्तमान परिस्थितियों में हमारा गणतंत्र होना ही श्रेष्ठ है और इसीलिए गणतंत्र दिवस को उत्सव के रूप में मनाएं किन्तु संकल्प भी लें कि प्रजा के रूप में हमें जो नायक बनने के अधिकार प्राप्त हैं उनकी सीमाओं को न तो पार करेंगे और न ही उन अधिकारों का त्याग करेंगे जो संविधान द्वारा हमें प्रदत्त हैं। अधिकारों के प्रति हमारी अनदेखी ही समाज में कुछ उन प्रवृत्तियों का पोषण करती हैं, जो हमारे गणतंत्र और प्रजातंत्र को खतरा पैदा करते हैं और सच्चे प्रजातंत्र की मंज़िल पाने के हमारे मार्ग में बाधा बनते हैं। 
 
इस आलेख का उद्देश्य गणतंत्र और प्रजातंत्र के सूक्ष्म विभेद पर प्रकाश डालकर हमारे जागरूक पाठकों में यह चैतन्यता उत्पन्न करनी है कि वे इन दोनों के स्वरूपों पर निरंतर चिंतन-मनन करें और इसकी सूक्ष्म और व्यावहारिक विभेदिका का  अपनी पारस्परिक चर्चाओं में  प्रचार-प्रसार करें। तभी इस लेख को लिखने का मंतव्य सफल होगा। भारतीय गणतंत्र अमर रहे, इसी शुभकामना के साथ सभी पाठकों को हार्दिक बधाइयां।     
 

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