Utpanna Ekadashi: उत्पन्ना एकादशी 2023 पूजन के शुभ मुहूर्त, महत्व, नियम, कथा एवं पारण समय

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utpanna ekadashi importance : धार्मिक शास्त्रों के अनुसार वर्षभर की सभी एकादशियों का बहुत महत्व माना गया है। पूरे साल भर में 24 एकादशियां पड़ती है, लेकिन जब पुरुषोत्तम मास आता है तो एकादशी की संख्या कुल मिलाकर 26 हो जाती है। 
 
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार हर साल मार्गशीर्ष मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी व्रत रखा जाता है। इस बार उत्पन्ना एकादशी व्रत 8 दिसंबर 2023, शुक्रवार को रखा जा रहा है। इस दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा की जाती है।

इस व्रत के लिए मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी के तिथि से ही इस व्रत की तैयारी की जाती है। इस दिन चावल और मसूर दाल का सेवन वर्जित माना गया है। निष्ठापूर्वक यह व्रत करने से कई व्रत या उपवास से अनंत गुना पुण्यफल मिलता है। यह एकादशी करने वालों को हजारों यज्ञों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन सिर्फ दिन के वक्त ही सात्विक आहार करने की मान्यता है। 
 
आइए यहां जानते हैं व्रत की सरल पूजन विधि, पारण समय, नियम और कथा के बारे में-
 
उत्पन्ना एकादशी पूजन और पारण के शुभ मुहूर्त : Utpanna Ekadashi Muhurat n Time 2023 
 
मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी तिथि का प्रारंभ- 7 दिसंबर 2023, गुरुवार को 08.36 पी एम से शुरू, 
उत्पन्ना एकादशी तिथि की समाप्ति- 8 दिसंबर 2023, शुक्रवार को 10.01 पी एम पर। 
उत्पन्ना एकादशी व्रत 8 दिसंबर 2023, शुक्रवार को रखा जाएगा।
 
पारण समय 2023- 
व्रत तोड़ने का समय- 9 दिसंबर 2023, शनिवार को- 05.01 ए एम से 07.33 ए एम तक।
पारण तिथि पर द्वादशी समापन का समय- 10.43 पी एम। 
 
8 दिसंबर, शुक्रवार के दिन का चौघड़िया
चर- 05.01 ए एम से 06.36 ए एम
लाभ- 06.36 ए एम से 08.11 ए एम
अमृत- 08.11 ए एम से 09.46 ए एमवार वेला
शुभ- 11.21 ए एम से 12.56 पी एम
चर- 04.06 पी एम से 05.40 पी एम
 
रात्रि का चौघड़िया
लाभ- 08.31 पी एम से 09.56 पी एम
शुभ- 11.21 पी एम से 9 दिसंबर को 12.46 ए एम, 
अमृत- 12.46 ए एम से 9 दिसंबर को 02.11 ए एम, 
चर- 02.11 ए एम से 9 दिसंबर को 03.36 ए एम
 
अन्य शुभ समय
ब्रह्म मुहूर्त- 03.30 ए एम से 04.16 ए एम
प्रातः सन्ध्या- 03.53 ए एम से 05.01 ए एम
अभिजित मुहूर्त- 10.55 ए एम से 11.46 ए एम
विजय मुहूर्त- 01.27 पी एम से 02.18 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 05.39 पी एम से 06.02 पी एम
सायाह्न सन्ध्या 05.40 पी एम से 06.49 पी एम
अमृत काल- 07.20 पी एम से 09.03 पी एम
निशिता मुहूर्त- 10.58 पी एम से 11.44 पी एम
 
पूजा विधि : Puja Vidhi
 
• उत्पन्न एकादशी का व्रत यदि आप रखना चाहते हैं कि दशमी की रात्रि से ही आपको भोजन का त्याग करना होगा।
• दूसरे दिन प्रात: काल उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेना होगा।
• संकल्प के बाद पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत आदि से भगवान विष्णु का विधिवत रूप से पूजन करें और आरती उतारें।  
• इसके बाद उन्हें केवल फलों का ही भोग लगाएं।
• इसके साथ ही हर पल भगवान श्री विष्णु स्मरण करें।
• शाम को श्रीहरि विष्णु की संध्या पूजा करें और भोग लगाएं।
• रात्रि में पूजन के बाद जागरण करें।
• द्वादशी के दिन पुन: विधिवत पूजन करके पारण से पहले ब्राह्मण को भोजन करवाएं तथा दान-दक्षिणा दें। 
• तत्पश्चात ही स्वयं पारण अथवा भोजन करें।
• आज अपने सामर्थ्यनुसार असहाय लोगों को अन्न, पका हुआ भोजन और वस्त्र तथा रुपए-पैसे दान और दक्षिणा के रूप में दें।
 
व्रत के नियम : fasting rules 
 
• दशमी तिथि के दिन संध्या काल में दातून करके पवित्र होना चाहिए।
• बुरे विचार को त्याग कर सात्विक भाव धारण करना चाहिए।
• भगवान के स्वरूप का स्मरण करते हुए सोना चाहिए।
• सुबह स्नान करके संकल्प लेकर निर्जला व्रत रखना चाहिए।
• दिन में भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
• पूजा में धूप, दीपक एवं नाना प्रकार की सामग्रियों से विष्णु को प्रसन्न करना चाहिए।
• रात्रि के समय श्री विष्णु के नाम से दीपदान और आरती तथा भजन गाते हुए रात्रि जागरण करना चाहिए।
• रात्रि के समय भोजन नहीं करना चाहिए।
 
कथा- Story 
इस एकादशी की कथा के अनुसार सतयुग में मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ। वह बड़ा बलवान और भयानक था। उस प्रचंड दैत्य ने इंद्र, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित करके भगा दिया। तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भयभीत होकर भगवान शिव से सारा वृत्तांत कहा और बोले-हे कैलाशपति! मुर दैत्य से भयभीत होकर सब देवता मृत्युलोक में फिर रहे हैं।
 
तब भगवान शिव ने कहा- हे देवताओं! तीनों लोकों के स्वामी, भक्तों के दु:खों का नाश करने वाले भगवान विष्णु की शरण में जाओ। वे ही तुम्हारे दु:खों को दूर कर सकते हैं। शिव जी के ऐसे वचन सुनकर सभी देवता क्षीरसागर में पहुंचे। वहां भगवान को शयन करते देख हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे कि हे देवताओं द्वारा स्तुति करने योग्य प्रभो! आपको बारंबार नमस्कार है, देवताओं की रक्षा करने वाले मधुसूदन! आपको नमस्कार है। आप हमारी रक्षा करें। दैत्यों से भयभीत होकर हम सब आपकी शरण में आए हैं।
 
आप इस संसार के कर्ता, माता-पिता, उत्पत्ति और पालनकर्ता और संहार करने वाले हैं। सबको शांति प्रदान करने वाले हैं। आकाश और पाताल भी आप ही हैं। सबके पितामह ब्रह्मा, सूर्य, चंद्र, अग्नि, सामग्री, होम, आहुति, मंत्र, तंत्र, जप, यजमान, यज्ञ, कर्म, कर्ता, भोक्ता भी आप ही हैं। आप सर्वव्यापक हैं। आपके सिवा तीनों लोकों में चर तथा अचर कुछ भी नहीं है।
 
हे भगवन्! दैत्यों ने हमको जीतकर स्वर्ग से भ्रष्ट कर दिया है और हम सब देवता इधर-उधर भागे-भागे फिर रहे हैं, आप उन दैत्यों से हम सबकी रक्षा करें। इंद्र के ऐसे वचन सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे कि हे इंद्र! ऐसा मायावी दैत्य कौन है जिसने सब देवताओं को जीत लिया है, उसका नाम क्या है, उसमें कितना बल है और किसके आश्रय में है तथा उसका स्थान कहां है? यह सब मुझसे कहो।
 
भगवान के ऐसे वचन सुनकर इंद्र बोले- भगवन्! प्राचीन समय में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस था, उसके महापराक्रमी और लोकविख्यात मुर नाम का एक पुत्र हुआ। उसकी चंद्रावती नाम की नगरी है। उसी ने सब देवताओं को स्वर्ग से निकालकर वहां अपना अधिकार जमा लिया है। उसने इंद्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सबके स्थान पर अधिकार कर लिया है। सूर्य बनकर स्वयं ही प्रकाश करता है। स्वयं ही मेघ बन बैठा है और सबसे अजेय है। हे असुर निकंदन! उस दुष्ट को मारकर देवताओं को अजेय बनाइए।
 
यह वचन सुनकर भगवान ने कहा- हे देवताओं, मैं शीघ्र ही उसका संहार करूंगा। तुम चंद्रावती नगरी जाओ। इस प्रकार कहकर भगवान सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया। उस समय दैत्य मुर सेना सहित युद्ध भूमि में गरज रहा था। उसकी भयानक गर्जना सुनकर सभी देवता भय के मारे चारों दिशाओं में भागने लगे। जब स्वयं भगवान रणभूमि में आए तो दैत्य उन पर भी अस्त्र, शस्त्र, आयुध लेकर दौड़े।
 
भगवान ने उन्हें सर्प के समान अपने बाणों से बींध डाला। बहुत से दैत्य मारे गए। केवल मुर बचा रहा। वह अविचल भाव से भगवान के साथ युद्ध करता रहा। भगवान जो-जो भी तीक्ष्ण बाण चलाते वह उसके लिए पुष्प सिद्ध होता। उसका शरीर छिन्न‍-भिन्न हो गया किंतु वह लगातार युद्ध करता रहा। दोनों के बीच मल्लयुद्ध भी हुआ। 10 हजार वर्ष तक उनका युद्ध चलता रहा किंतु मुर नहीं हारा। थककर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए। वहां हेमवती नामक सुंदर गुफा थी, उसमें विश्राम करने के लिए भगवान उसके अंदर प्रवेश कर गए। यह गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका एक ही द्वार था। 
 
विष्णु भगवान वहां योगनिद्रा की गोद में सो गए। मुर भी पीछे-पीछे आ गया और भगवान को सोया देखकर मारने को उद्यत हुआ तभी भगवान के शरीर से उज्ज्वल, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई। देवी ने राक्षस मुर को ललकारा, युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया। श्री हरि जब योगनिद्रा की गोद से उठे, तो सब बातों को जानकर उस देवी से कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है, अत: आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी। आपके भक्त वही होंगे, जो मेरे भक्त हैं।

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