हर शख्स चाहता है कि उसका दिमाग आखिरी वक्त तक चुस्त-दुरुस्त और युवा बना रहे। याददाश्त हमेशा उम्दा रहे, पर हकीकत में सबके साथ ऐसा नहीं होता, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ कोशिकाओं के निर्माण की प्रक्रिया क्रमशः क्षीण होने लगती हैं।
साऊथ फ्लोरिडा विश्वविद्यालय में एक शोध हुआ। इससे पता चला है कि हरी पत्तेदार सब्जियां- खासकर मेथी, पालक, सरसों, चौलाई व शलजम को आहार में खास स्थान देने से व्यक्ति का दिमाग वृद्धावस्था में भी चुस्त-दुरुस्त व युवाओं की तरह सक्रिय बना रह सकता है।
शोधकर्ताओं ने परीक्षण के तहत कुछ चूहों को इंजेक्शन के जरिए पालक का रस दिया और शेष चूहों को नहीं। अध्ययन से पता चला कि जिन चूहों को पालक का इंजेक्शन दिया गया, वे किसी प्रक्रियात्मक व्यवहार को तेजी से सीखने में सफल रहे।
इसके विपरीत जिन चूहों को इंजेक्शन नहीं दिया गया, वे ऐसा नहीं कर सके। शोधकर्ताओं की राय में हरी पत्तेदार सब्जियों में विटामिन (खासकर विटामिन सी व ई) और खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। साथ ही इनमें कई 'एंटीऑक्सीडेट' भी उपलब्ध रहते हैं, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं के क्षीण होने की प्रक्रिया को कम करते हैं। नतीजतन उम्र ढलने के बाद भी आपकी दिमागी सक्रियता व याददाश्त उम्दा बनी रहती है।
ठंड के मौसम में मुख्य रूप से आने वाली पत्तेदार सब्जियों में पालक का नाम सबसे ऊपर है। इस हरी भाजी में कई पोषक तत्वा मौजूद हैं जो कहीं और नहीं मिल सकते। पालक स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी, सर्वसुलभ एवं सस्ता उपाय है। आयुर्वेद के अनुसार, जानिए पालक के यह लाभ...
* इसमें पाए जाने वाले तत्वों में मुख्य रूप से कैल्शियम, सोडियम, क्लोरीन, फास्फोरस, लोहा, खनिज लवण, प्रोटीन, श्वेतसार, विटामिन 'ए' एवं 'सी' आदि उल्लेखनीय हैं। इन तत्वों में भी लोहा विशेष रूप से पाया जाता है।
* लौह तत्व की कमी से जो रक्ताल्पता अथवा रक्त में स्थित रक्तकणों की न्यूनता होती है, उसका तात्कालिक प्रभाव मुख पर विशेषतः होंठ, नाक, गाल, कान एवं आंखों पर पड़ता है, जिससे चेहरे की रंगत अैर लालिमा चली जाती है। कालांतर में संपूर्ण शरीर भी इस विकृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता।
* लोहे की कमी से शक्ति ह्रास, शरीर निस्तेज होना, उत्साहहीनता, स्फूर्ति का अभाव, आलस्य, दुर्बलता, जठराग्नि की मंदता, अरुचि, यकृत आदि परेशानियां होती हैं।
* पालक की शाक वायुकारक, शीतल, रक्त विकार एवं ज्वर को दूर करने वाली होती है।
* लौह तत्व मानव शरीर के लिए उपयोगी, महत्वपूर्ण, अनिवार्य होता है। लोहे के कारण ही शरीर के रक्त में स्थित रक्ताणुओं में रोग निरोधक क्षमता तथा रक्त में रक्तिमा (लालपन) आती है। लोहे की कमी के कारण ही रक्त में रक्ताणुओं की कमी होकर प्रायः पाण्डु रोग उत्पन्न हो जाता है।
* आयुर्वेद के अनुसार पालक की भाजी सामान्यतः रुचिकर और शीघ्र पचने वाली होती है। इसके बीज मृदु, विरेचक एवं शीतल होते हैं। ये कठिनाई से आने वाली श्वास, यकृत की सूजन और पाण्डु रोग की निवृत्ति हेतु उपयोग में लाए जाते हैं।
* गर्मी का नजला, सीने और फेफड़े की जलन में भी यह लाभप्रद है। यह पित्त की तेजी को शांत करती है, गर्मी की वजह से होने वाले पीलिया और खांसी में यह बहुत लाभदायक है।
* स्त्रियों के लिए पालक का शाक अत्यंत उपयोगी है। युवतियां यदि अपने चेहरे का नैसर्गिक सौंदर्य एवं रक्तिमा (लालिमा) बढ़ाना चाहती हैं, तो उन्हें नियमित रूप से पालक के रस का सेवन करना चाहिए। प्रयोग से देखा गया है कि पालक के निरंतर सेवन से रंग में निखार आता है। इसे भाजी (सब्जी) बनाकर खाने की अपेक्षा यदि कच्चा ही खाया जाए, तो अधिक लाभप्रद एवं गुणकारी है। पालक से रक्त शुद्धि एवं शक्ति का संचार होता है।