नए तेवर, नई भाषा-शैली में लिखा नासिरा शर्मा का यह एक मार्मिक उपन्यास है, जो नई पीढ़ी के गहरे दुखों व जद्दोज़हद से हमारा परिचय कराता है। अपनी कोशिशों से शताब्दियों को पार करते हुए इंसान ने इस दुनिया को न केवल रहने की हर सुविधा से सजाया बल्कि चकाचौंध से भर दिया, मगर उसमें एक वर्ग ऐसा भी है जो संघर्षरत है और जिसका जीवन अंदर-बाहर दोनों स्तर पर नासूर बन चुका है। ऐसे इंसानों में सूर्यकांत भी है जो अपने कष्ट को कर्तव्य से दूर करने की लगन में यह बिल्कुल भूल चुका है कि प्रेम की भी जीवन में एक बड़ी भूमिका होती है। जिसकी कमी से बीमार पत्नी साधना मौत के अंधेरे में गुम होना चाहती है जबकि उसकी दोनों जवान होती बेटियां घुटन से भरे घर के इस नर्क से रौशनी के दायरों को पकड़ने के लिए छटपटाती हैं।
बाजार और तकनीक के इस विकसित हो रहे माहौल में छोटी बेटी अपना मार्गदर्शक ‘गूगल’ को समझ लेती है और ग्रैंडपा के जरिए वह बेहतर दुनिया में सांस लेने की तमन्ना पाल लेती है। अपने परिवार को सुखमय जीवन देने की इच्छा में साइबर क्राइम में फंस जाती है। शब्दों के दग़ा देने पर वह अविश्वास के उस मरुस्थल में आन खड़ी होती है जो शब्द पखेरू की तरह अपनी लहरों को पल-पल हवा में गुम कर देते हैं।
लेखिका परिचय : नासिरा शर्मा, साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त लेखिका
948 में इलाहाबाद (उ. प्र.) में जन्मी नासिरा शर्मा को साहित्य के संस्कार विरासत में मिले। फ़ारसी भाषा साहित्य में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से एम.ए. किया। हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेज़ी और पश्तो भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ है। वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य, कला और संस्कृति विषयों की विशेषज्ञ हैं। इराक़ अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान, सीरिया तथा भारत के राजनीतिज्ञों तथा प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों के साथ साक्षात्कार किये जो बहुचर्चित हुए। युद्धबंदियों पर जर्मन व फ्रांसीसी दूरदर्शन के लिए बनी।
विभिन्न उपन्यास, कहानी संग्रह, संस्मरण, लेख, नाटक, बाल साहित्य लेखन।