भक्ति काव्य हिन्दी साहित्येतिहास और आलोचना का केन्द्रीय विषय रहा है। तमाम अध्ययनों और निष्कर्षों के बावजूद यह विषय अब भी चुनौती बनकर खड़ा हुआ है। भारतीय जनमानस में इसकी सतत उपस्थिति साहित्येतिहासकारों को परिसीमित कर देती है। सामान्य जनता के चित्त में इसका निरंतर आलोड़न आलोचकों को भरमा देता है। जिज्ञासुओं को यह विषय इसलिए आविष्ट-आमंत्रित करता रहता है।
गोपेश्वर सिंह की किताब ‘भक्ति आंदोलन और काव्य’ ऐसे समय में प्रकाशित हो रही है जब किस्म-किस्म की अस्मितावादी तरकीबें इस विरासत को हथियाने में एड़ी-चोटी एक कर रही हैं। नवउपनिवेशवाद और वैश्वीकरण के साये में सांस्कृतिक रूप से विच्छिन्न जिस पीढ़ी का आगमन हो रहा है वह पारंपरिक वर्चस्ववादियों और नए विमर्शवादियों के संकीर्ण उपक्रमों के पोषण हेतु बहुत अनुकूल है। संकट के इस घटाटोप का भेदन-उच्छेदन बड़ा दुष्कर कार्य है। गोपेश्वर सिंह भक्ति कविता से अनुराग रखते हैं। वे स्वयं किसी प्रकट-प्रच्छन्न निजी मनोरथ की पूर्ति के लिए भक्ति परियोजना में प्रवृत्त हुए प्रतीत नहीं होते। पूर्ववर्ती आलोचकों और अध्ययनों के संबंध में निपट श्रद्धा और भर्त्सना जैसे अतिवादी विकारों से बचते हुए वे अपना रास्ता खुद बनाते हैं। मूल पाठ में उचित भरोसे के साथ सार्थक का रेखांकन उनके भक्ति अध्ययन का वैशिष्ट्य है।
‘भक्ति आंदोलन और काव्य’ कट्टर विरोधी युग्मों के सहारे खड़ी की गयी आलोचना द्वारा प्रदत्त सहूलियत लेने से न केवल बचती है अपितु वह ऐसी आलोचना-दृष्टि की विडंबनाओं को उजागर करने में अग्रसर होती है। शास्त्र बनाम लोक, निर्गुण बनाम सगुण, भद्र बनाम भदेस जैसी ‘बनाम-वादी’ आलोचना सनातन मुकदमेबाजी की ओर ले जाती है। किताब भक्ति कविता की ऐक्य विधायिनी क्षमता के निरूपण में रुचि लेती है। निर्गुण और सगुण को परस्पर शत्रु की तरह प्रस्तुत करने से उसकी स्पष्ट असहमति है। भक्ति कविता की लोकव्याप्ति को कबीर-तुलसी-सूर-मीरा के जरिए दर्शाया गया है तो उसकी अखिल भारतीयता को पूर्वोत्तर के सांस्कृतिक नायक शंकरदेव के माध्यम से चिन्हित किया गया है। ठेठ अकादमिक को जीवन से जोड़कर, सिद्धान्त को अनुभव से संपृक्त कर, शाश्वत को दैनंदिन में गूंथकर तैयार की गयी यह किताब अपने पढ़ने वालों को भक्ति काव्य का अनुरागी बनायेगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
गोपेश्वर सिंह का जन्म 24 नवंबर 1955, ग्राम बड़कागांव पकड़ीयार, जनपद-गोपालगंज, बिहार में हुआ। शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी.। आप 1974 में जे.पी. आन्दोलन में सक्रिय रहे और कई बार जेल की यात्रा की। 1983 से अध्यापन। पटना विश्वविद्यालय, पटना एवं सेंट्रल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद में करीब दो दशक तक अध्यापन के बाद सितंबर, 2004 से दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन। 2010 से 2013 तक हिन्दी विभाग के अध्यक्ष। साहित्य के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक विषयों पर हिन्दी की प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेखन। नलिन विलोचन शर्मा (विनिबंध), साहित्य से संवाद, आलोचना का नया पाठ तथा भक्ति आन्दोलन और काव्य के अतिरिक्त भक्ति आन्दोलन के सामाजिक आधार, नलिन विलोचन शर्मा: संकलित निबन्ध, कल्पना का उर्वशी विवाद, शमशेर बहादुर सिंह : संकलित कविताएं और नलिन विलोचन शर्मा : रचना संचयन (सम्पादित) पुस्तकें प्रकाशित। आपको आचार्य परशुराम चतुर्वेदी सम्मान तथा रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान प्राप्त हैं। सम्प्रति : प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, कला संकाय, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली-110007।
वाणी प्रकाशन ने 55 वर्षों से हिन्दी प्रकाशन के क्षेत्र में कई प्रतिमान स्थापित किए हैं। वाणी प्रकाशन को फेडरेशन ऑफ इंडियन पब्लिशर्स द्वारा ‘डिस्टिंग्विश्ड पब्लिशर अवार्ड’ से नवाजा गया है। वाणी प्रकाशन अब तक 6000 से अधिक पुस्तकें और 2500 से अधिक लेखकों को प्रकाशित कर चुका है। हिन्दी के अलावा भारतीय और विश्व साहित्य की श्रेष्ठ रचनाओं का प्रकाशन कर इसने हिन्दी जगत में एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। नोबेल पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार और अनेकों लब्ध प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त लेखक वाणी प्रकाशन की गौरवशाली परंपरा का हिस्सा हैं। हाल के वर्षों में वाणी प्रकाशन ने अंग्रेजी में भी महत्त्वपूर्ण शोधपरक पुस्तकों का प्रकाशन किया है। भारतीय परिदृश्य में प्रकाशन जगत की बदलती हुई भूमिका और पाठक वर्ग की बदलती हुई जरूरतों को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन ने अपने गैर-लाभकारी उपक्रम वाणी फाउंडेशन के तहत हिन्दी के विकास के लिए पहली बार ‘हिन्दी महोत्सव’ और अनुवाद के लिए ‘डिस्टिंग्विश्ड ट्रांस्लेटर अवार्ड’ की भी नींव रखी है। इस बार 3-4 मार्च को ‘हिन्दी महोत्सव’ का आयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज के साथ मिलकर किया जा रहा है।
वाणी प्रकाशन विश्व पुस्तक मेला 2017 में अपने पाठकों के लिए 75 नई पुस्तकें लेकर उपस्थित हुआ है। विश्व पुस्तक मेले की थीम महिला सशक्तिकरण ‘मानुषी’ से कदमताल करते हुए वाणी प्रकाशन ने अपने स्टॉल का मुख्य भाग स्त्री-विमर्श को समर्पित किया है। वाणी प्रकाशन का लोगो ज्ञान की देवी मांं सरस्वती की प्रतिमा है, जिसे मशहूर कलाकार स्व. मकबूल फिदा हुसैन ने बनाया है। उम्मीद है कि विश्व पुस्तक मेला में ‘हसीनाबाद’ पर होने वाले इस कार्यक्रम में अधिक से अधिक पाठक और बुद्धिजीवी हिस्सा लेंगे तथा पूरे आयोजन को सफल और यादगार बनाएंगे।