तुम्हारी यात्रा की सीमा नहीं

- सुरेंद्र रघुवंशी

ND
ऋतुएँ तो आनी-जानी हैं
नीले आसमान पर कल
काली घटाएँ होंगी
भयंकर बरसा‍त के बीच
तेज आँधी होगी
रूई के पर्वतों की तो खैर नहीं
पेड़ भी हिल जाएँगे एक बार तो

कुछ मिट्‍टी कटकर बह जाएगी
पानी की गति के साथ
धरती में हो जाएँगे कुछ गड्‍ढे
टूट भी सकती हैं
पेड़ों की कुछ शाखाएँ

लेकिन चिडि़याँ !
एक-एक तिनके ‍के लिए
तुम्हारी यात्रा की सीमा नहीं
तुम्हें देखकर मेरी थकान के शरीर पर
लग जाते हैं
अपार शक्ति के पर।