* कर्मवाद का सिद्धांत भारतीय दर्शन का विशिष्ट सिद्धांत है।
* संसार में कोई भी, किसी को सुख-दुख देने वाला नहीं है। किसी को किसी ने सुख-दुख दिया है, यह मात्र कुबुद्धि है।
* जैसा शुभ-अशुभ कर्म व्यक्ति करेगा, उसे अवश्य ही फल भोगना पड़ेगा।
* प्रत्येक देहधारी प्राणी को अपने कर्म तो भोगने ही पड़ते हैं। चाहे वह ज्ञानी हो या मूर्ख। अंतर इतना ही है कि ज्ञानी अपने मन को ज्ञान से समझकर उनका हंसते हुए भोगता है और मूर्ख रोता हुआ भोगता है।
* जैसा कर्म भोग होता है, व्यक्ति को वैसा ही साधन, बुद्धि, सहायक एवं स्थान प्राप्त हो जाता है। अपने कर्म का जिम्मेदार जीवात्मा स्वयं ही है।