Amarnaat Yatra: प्रकृति भी लेती है अमरनाथ जाने वाले शिवभक्तों की परीक्षा, ग्लोबल वॉर्मिंग का भी शिवलिंग पर पड़ रहा असर

सुरेश एस डुग्गर
मंगलवार, 14 जून 2022 (16:52 IST)
जम्मू। अमरनाथ यात्रा के दौरान हर साल औसतन 100 के करीब श्रद्धालु प्राकृतिक हादसों में जानें कई गंवा रहे हैं। अमरनाथ यात्रा के अभी तक के ज्ञात इतिहास में 2 बड़े हादसों में 400 श्रद्धा प्रकृति के कोप का शिकार हो चुके हैं। यह बात अलग है कि अब प्रकृति का एक रूप ग्लोबल वॉर्मिंग के रूप में भी कई बार सामने आ रहा है जिसका शिकार पिछले कई सालों से हिमलिंग भी हो रहा है।

ALSO READ: कश्मीर में अब हाइब्रिड आतंकी बने खतरा, अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के लिए तैनात होंगी 500 कंपनियां
 
अमरनाथ यात्रा कब आरंभ हुई थी, इसका कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है। पर हादसों ने इसे कब से अपने चपेट में लिया है, वर्ष 1969 में बादल फटने के कारण 100 के करीब श्रद्धालुओं की मौत की जानकारी जरूर दस्तावेजों में दर्ज है। यह शायद पहला बड़ा प्राकृतिक हादसा था इसमें शामिल होने वालों के साथ।
 
दूसरा हादसा था तो प्राकृतिक लेकिन इसके लिए इंसानों को अधिक जिम्मेदार इसलिए ठहराया जा सकता है, क्योंकि यात्रा मार्ग के हालात और रास्ते के नाकाबिल इंतजामों के बावजूद 1 लाख लोगों को जब वर्ष 1996 में यात्रा में इसलिए धकेला गया, क्योंकि आतंकी ढांचे को 'राष्ट्रीय एकता' के रूप में एक जवाब देना था तो 300 श्रद्धालु मौत का ग्रास बन गए।

ALSO READ: अमरनाथ यात्रा से पहले आतंकी संगठन ने दी धमकी, कहा- कश्मीर का माहौल खराब किया तो बहेगा खून
 
प्रत्यक्ष तौर पर इस हादसे के लिए प्रकृति जिम्मेदार थी, मगर अप्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेदार राज्य सरकार थी जिसने अधनंगे लोगों को यात्रा में शामिल होने के लिए न्योता दिया तो बर्फबारी ने उन्हें मौत का ग्रास बना दिया। अगर देखा जाए तो प्राकृतिक तौर पर मरने वालों का आंकड़ा यात्रा के दौरान प्रतिवर्ष 70 से 100 के बीच रहा है। इसमें प्रतिदिन बढ़ोतरी इसलिए हो रही है, क्योंकि अब यात्रा में शामिल होने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। पहले यह संख्या इसलिए कम थी, क्योंकि यात्रा में इतने लोग शामिल नहीं होते थे जितने अब हो रहे हैं।
 
अगर मौजूद दस्तावेजी रिकॉर्ड देखें तो वर्ष 1987 में 50 हजार के करीब श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा में शामिल हुए थे और आतंकवाद के चरमोत्कर्ष के दिनों में वर्ष 1990 में यह संख्या 4,800 तक सिमट गई थी। लेकिन उसके बाद जब इसे एकता और अखंडता की यात्रा के रूप में प्रचारित किया जाने लगा तो इसमें अब 4 से 5 लाख के करीब श्रद्धालु शामिल होने लगे हैं।
 
इतना जरूर है कि बढ़ती संख्या भी ग्लोबल वॉर्मिंग के साथ-साथ हिमलिंग और पहाड़ों के पर्यावरण को प्रभावित करने लगी है। 2 साल पहले का हाल लें तो आधिकारिक यात्रा की शुरुआत से पहले ही 50 हजार लोगों की सांसों और हाथों की गर्मी ने हिमलिंग को पिघला दिया था। पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंच रहा है, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक पिछले कई सालों से यात्रा मार्ग से 50 से 60 हजार टन कूड़ा प्रतिवर्ष एकत्र किया जा रहा है जिसमें सबसे अधिक वह प्लास्टिक होता है जिस पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है।

सम्बंधित जानकारी

अगला लेख