तुलना न कीजिए बच्‍चों की

- राजेश कुमार व्या
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कोई भी दो व्यक्ति बिलकुल एक से नहीं हो सकते। इसके साथ ही यह भी सच है कि हर किसी में कोई न कोई खूबी से नवाजा ही है। यही थ्योरी बच्चों के मामले में भी लागू होती है। जाने-अनजाने हम अपने बच्चों की तुलना दूसरों के बच्चों करने लगते हैं। तुलना की ये तलवार सीधा बच्चों के दिमाग पर असर डालती है और इसके कई दुष्परिणाम हो सकते हैं। यदि हम एक बच्चे की कोई अच्छी आदत या व्यवहार उसके भाई या बहन में भी डालना चाहते हैं, तो इसके कई अन्य सकारात्मक तरीके हो सकते हैं

चार वर्ष के आशीष को उसकी मम्मी समझाती ही रह गईं, लेकिन वह मुँह फुलाकर अपना खाना ले दूसरे कमरे में चला गया। यह कोई एक दिन की बात नहीं है। अब ऐसा लगभग रोज होने लगा है कि जहाँ उसका भाई, ढाई वर्षीय सोनू खेल रहा होता है वहाँ आशीष खेलना नहीं चाहता और यदि खाना खाते वक्त मम्मी या पापा ने सोनू को साथ बैठा रखा है तो वह खाना लेकर अलग कमरे में चला जाता है। मम्मी-पापा उसके ऐसे व्यवहार से काफी परेशान हैं। उन्होंने कई बार आशीष को समझाने का यत्न किया, प्यार से व डाँट से भी, लेकिन उस पर कोई असर नहीं होता।

आशीष के व्यवहार की समस्या का एक और
  माता-पिता बच्चों को आगे बढ़ता हुआ देखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि बच्चे प्रेरित होकर अपनी कमजोरियों को दूर करें। लेकिन होता उल्टा है। इस बात का प्रमुख कारण यह है कि उन्हें प्रेरित करने की जो 'एप्रोच' है, वह गलत है।      
गंभीर रूप मिलता है- आकाश और अंशुल के यहाँ। आकाश के मन में छोटे अंशुल के लिए गुस्सा व चिढ़ है, जो उसके माता-पिता के लिए एक समस्या बन चुकी है। स्कूल बस में आकाश, अंशुल से दूर बैठता है। इतना ही नहीं, यदि किसी बात पर अंशुल का किसी अन्य बच्चे से झगड़ा भी हो जाए तो आकाश मुँह फेर लेता है व बीच-बचाव की कोशिश तक नहीं करता।

  माता-पिता बच्चों को आगे बढ़ता हुआ देखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि बच्चे प्रेरित होकर अपनी कमजोरियों को दूर करें। लेकिन होता उल्टा है।      
उपरोक्त दोनों घरों में जो बात कॉमन है, वह यह है कि वे दोनों नाराज बच्चे अपने घर में ज्येष्ठ हैं व इन दोनों की तुलनाएँ माता-पिता अक्सर उनके अनुजों से करते रहे हैं। मसलन, जब आशीष की इच्छा दूध पीने की नहीं होती तो मम्मी अक्सर उससे कहती है- 'देखो, छोटा भैया कितना अच्छा है, गटागट दूध पी जाता है और एक तुम हो, गंदे बच्चे, अब देखना, छोटा भैया तुमसे भी ज्यादा स्ट्रांग बन जाएगा।'

दूसरे, घर में आकाश का मन पढ़ाई के बजाए खेलकूद में ज्यादा लगता है, वही अंशुल को किताब ही सर्वाधिक प्रिय है। नतीजतन जब परीक्षाओं के परिणाम खुलते हैं तो आकाश अंशुल की तुलना में कम अंक लाने की वजह से स्कूल में तो अपने आपको अपमानित महसूस करता ही है, घर पर जब पापा की डाँट पड़ती है तो उसमें अंशुल का उदाहरण उसे बार-बार दिया जाता है। चिढ़ा हुआ आकाश बाद में बड़बड़ाता रहता है- 'सब इसकी वजह से होता है... 'बुकवर्म' कहीं का।'

लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि ऐसी समस्याएँ ज्येष्ठ संतानों में ही मिलती हैं। बहुतेरे छोटे भाई-बहनों को भी ऐसी तुलनाओं से दो-चार होना पड़ता है। लेकिन इन मामलों में कई बार संभावनाएँ होती हैं कि वे बड़े भाई-बहनों पर अपना गुस्सा व क्षोभ जाहिर न कर पाएँ व मन ही मन कुंठा और निराशाजनक वृत्तियों के शिकार हो जाएँ।


माता-पिता बच्चों को आगे बढ़ता हुआ देखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि बच्चे प्रेरित होकर अपनी कमजोरियों को दूर करें। लेकिन होता उल्टा है। बच्चे इन प्रतिक्रियाओं को अपना अपमान समझते हैं और भाई-बहनों को इस अपमान का कारण। इस बात का प्रमुख कारण यह है कि उन्हें प्रेरित करने की जो 'एप्रोच' ै, वह गलत है।

जिम्मेदार पालक होने के नाते हमें कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए, जैसे-

वे अद्वितीय है

दुनिया में हर इंसान अद्वितीय होता है। वे चाहे सगे भाई-बहन या जुड़वाँ ही क्यों न हों। उनके रूप, रंग, गुण इत्यादि में कहीं असमानताएँ हो सकती हैं तथा एक ही घर में परवरिश होने के बावजूद बच्चों के अपने अलहदा व्यक्तित्व, खासियतें व कमजोरियाँ होना कोई आश्चर्य की बात नहीं

उत्साहवर्धन एक औषधि

प्रेरणा व अपमान में बड़ा अंतर होता है। याद रखिए, इंसान का बचपन उसके व्यक्तित्व-विकास की नींव के निर्माण का समय होता है। आपकी बातों से बच्चों को स्फूर्ति के साथ-साथ एक सकारात्मक सोच की दिशा में अग्रसर होने की प्रेरणा मिलनी चाहिए।

उदाहरण के लिए उसके किसी निराशाजनक प्रदर्शन पर बजाए यह कहने के कि 'तुम पहले दर्जे के बेवकूफ व नालायक हो व तुम यह कार्य अपने भाई (या बहन) की तरह ताउम्र नहीं कर सकते', यदि उससे कहें कि 'तुम यदि ठान लो तो इस काम को बेहतर तरीके से कर सकते हो', तो उसे अपने आपमें विश्वास पैदा करने में मदद मिलेगी। आपका उत्साहवर्धन उनके लिए एक औषधि के समान है

सार्वजनिक टिप्पणी से बचे

कई बार सामाजिक मेलजोल के मौकों पर हमारे परिचित व रिश्तेदार आदि बच्चों के बारे में चर्चाएँ करते हैं। यदि बच्चे की प्रगति को लेकर हमारे मन में कोई असंतोष भी हो तो भी वह सार्र्वजनिक रूप से बच्चे व अन्य लोगों के सामने ज्वालामुखी के लावे की भाँति बहन निकले, इस बात का ध्यान रखना चाहिए। दूसरों के सामने किया गया अपमान बच्चों को विद्रोही भी बना सकता है, जैसा कि शिल्पी के मामले में हुआ

बात कुछ यों थी कि वर्मा परिवार को एक अन्य परिवार के साथ किसी शादी पार्टी में जाना था। ड्राइंगरूम में दोनों परिवारके कई सदस्य बैठे थे। शिल्पी व उसकी दीदी साक्षी जब अंदर से तैयार होकर निकले तो शिल्पी के कपड़े पार्टी के हिसाब से सादे लग रहे थे। शिल्पी की मम्मी ने यह देखकर कह दिया कि 'शिल्पी, तुम्हें पार्टी के हिसाब से कुछ ढंग के कपड़े नहीं पहनना चाहिए था? साक्षी को देखो, कितना अच्छा ड्रेस-सेंस है उसका....।'

सबके सामने इतना सुनते ही शिल्पी की त्यौरियाँ चढ़ गईं, 'ठीक है, यदि इतनी ही बुरी लग रही हूँ तो लो, नहीं जाती आपके साथ। आप अपनी फेवरेट साक्षी को ही ले जाइए...।' मम्मी -पापा व मेहमान अवाक से देखते ही रह गए

हँसी न उड़ाए

बच्चों की अपनी बुद्धि-क्षमता व सोच का तरीका होता है। कई बार वे अपने पालकों को भरोसेमंद समझकर उनसे अपने दिल की बातें शेयर करते हैं। हो सकता है, आपको वे बातें हास्यास्पद, बचकानी या फालतू लगे। ऐसे में न तो उनकी हँसी उड़ाएँ, न अन्य भाई-बहनों या मित्रों आदि को बताकर उसका तमाशा बनाएँ। ऐसा करने पर हो सकता है वह आपसे अपने मन की बातें कहने में संकोच करने लगे व भावनात्मक सहारे के लिए किसी दूसरे के पास जाएँ, जो शायद आपकी तरह उसका मार्गदर्शन सही तरीके से न कर सके

सुदृढ़ अंतरसंबंध विकसित करे

कभी-कभी भाई-बहन आपस में एक-दूसरे पर अपमानजनक टिप्पणी कर देते हैं या खिल्ली उड़ाते हैं। ऐसी स्थिति न आने दें। छोटे भाई-बहनों को बड़ों का सम्मान करना सिखाएँ, वहीं बड़ों को बताएँ कि उनके कार्यों से छोटे प्रेरणा ग्रहण करते हैं अतः वे अच्छा उदाहरण सामने रखने की कोशिश करें

इससे उनमें आपसी चिढ़, प्रतिद्वंद्विता व शत्रुता की जगह प्रेम, सम्मान व जिम्मेदारी की भावना जागृत होगी, जो कि उनके व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चाहें बच्चे हों या बड़े, उनके बीच तुलनाएँ होना एक आम बात है। लेकिन कई बार ये तुलनाएँ आक्षेप बनकर उन मासूमों की खुशियों को ग्रसने लगती हैं। अतः हमें ध्यान रखना चाहिए कि दूरदर्शी, सकारात्मक व प्रेरक टिप्पणियाँ नौनिहालों कोजहाँ एक जिम्मेदार व सुदृढ़ व्यक्तित्व वाला इंसान बनाने में मदद करती हैं, वहीं कटु व नकारात्मक तरीके से की गई तुलनाएँ किसी बच्चे के व्यक्तित्व में स्थायी विकृतियाँ पैदा कर सकती हैं।