हर हाल में बच्चों पर प्यार उड़ेलती है माँ

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माँ का रिश्ता परिभाषाओं से परे होता है क्योंकि यह सिर्फ अनुभूति का विषय है लेकिन यदि महिला को माँ और पिता दोनों की भूमिका एक साथ निभानी पड़े तो यह एक चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी बन जाती है। हालाँकि ऐसी भूमिका निभाने वाली अधिकतर महिलाओं का मानना है कि इससे उन पर कोई असर नहीं पड़ता क्योंकि माँ हर हाल में अपने बच्चों पर प्यार उड़ेलती है।

पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ऐसी ही माँ हैं जो पति से अलग रहकर अपने बच्चों की जिम्मेदारी खुद पूरी कर रही हैं। महबूबा ने कहा ऐसा नहीं है कि अकेली माँ बच्चों को पाल नहीं सकती। लेकिन पिता की जगह माँ नहीं ले सकती। हाँ उनकी कमी को दूर करने की कोशिश माँ जरूर करती है।

महबूबा ने कहा कि मुझे अब तक तो ऐसी किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। मेरी पूरी कोशिश रहती है कि उन्हें किसी तरह की कमी महसूस न होने दूँ। मेरा काम अपनी जगह है, बच्चे अपनी जगह हैं। मैं उन्हें भरपूर समय देने की कोशिश करती हूँ।

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अभिनेत्री एवं गायिका सुचित्रा कृष्णमूर्ति मानती हैं कि अपनी बेटी का पालन-पोषण वे बहुत अच्छी तरह कर रही हैं। पति शेखर कपूर से अलग हो चुकीं सुचित्रा समय-समय पर अपनी बिटिया को उसके पिता से मिलने भेजती हैं।

वे कहती हैं कई बार लगता है कि वे शेखर को मिस करती हैं। मेरी कोशिश होती है कि उसे कोई कमी न होने दूँ लेकिन वह बड़ी हो रही है और उसके मन में तरह-तरह के सवाल उठते हैं। कई बार मेरे पास उनका जवाब नहीं होता।

सुचित्रा को अपनी बिटिया का हर काम करना अच्छा लगता है। वे कहती हैं माँ होना ही अपने आप में बड़ी बात है। मैं इस सुख के एक-एक पल का आनंद लेना चाहती हूँ।

वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अर्चना धवन बजाज की राय है कि बच्चे का पालन-पोषण माँ जितनी अच्छी तरह कर सकती है उतना कोई नहीं कर सकता इसलिए अकेली माँ या कामकाजी माँ वाली बात बेमानी हो जाती है।

वे कहती हैं माँ सिर्फ माँ होती है और संतान पर जी भरकर प्यार उड़ेलती है। माँ को न किसी परिभाषा में बाँधा जा सकता है और न ही उसकी भूमिकाएँ सीमित होती हैं। समय और हालात के साथ माँ का दायित्व बदल जाता है।

दस मई को मदर्स डे मनाया जाता है। इस बारे मे पूछने पर डॉ. अर्चना कहती हैं माँ को तो ईश्वर से ऊपर का दर्जा दिया जाता है फिर एक ही दिन माँ के नाम क्यों समर्पित हो। बच्चे प्रकृति का अनमोल उपहार होते हैं जिन्हें माँ इस दुनिया में लाती है। उसके इस ऋण को केवल एक दिन उसे समर्पित कर नहीं चुकाया जा सकता।

मदर्स डे की शुरुआत अमेरिका से हुई। वहाँ एक कवयित्री और लेखिका जूलिया वार्ड होव ने 1870 में 10 मई को माँ के नाम समर्पित करते हुए कई रचनाएँ लिखीं। वे मानती थीं कि महिलाओं की सामाजिक जिम्मेदारी व्यापक होनी चाहिए।

अमेरिका में मदर्स डे पर राष्ट्रीय अवकाश होता है। अलग-अलग देशों में मदर्स डे अलग अलग तारीख पर मनाया जाता है। भारत में भी मदर्स डे का महत्व बढ़ रहा है।