प्लेटोनिक लव। सरल शब्दों में इसे अफलातूनी प्यार भी कहा जाता है। आखिर है क्या यह प्लेटोनिक लव। मनोविज्ञान ने इस शब्द की खासी तात्विक विवेचना की है लेकिन अहसास के स्तर पर इसकी अनुभूति को व्यक्त करना नामुमकिन है।
एक गहरा लगाव, निस्वार्थ श्रद्धा, अटूट विश्वास और अपरिभाषित चाहत के आसपास का ही कुछ अनुभव है जिसे समझाने बैठें तो शब्दों का अंबार लग जाएगा मगर साफ-साफ फिर भी समझ नहीं आएगा कि आखिर यह है क्या। कैसे पनपता है? क्यों किसी एक के ही प्रति उपजता है। इसे रोमांस से कैसे अलग किया जाए? वासना से यह कैसे दूर रहता है? क्यों किसी भाभी को अपना कोई एक देवर लाड़ला होता है और क्यों किसी छात्र को अपनी कोई एक शिक्षक प्यारी लगती है।
महज आकर्षण की संज्ञा इसे नहीं दी जा सकती क्योंकि आकर्षण तो वक्त के साथ कम हो जाता है लेकिन प्लेटोनिक लव बरसो-बरस तक मधुर स्मृतियों में संचित रहता है। वक्त के साथ यह बढ़ता ही है घटता नहीं। कब, कहां, कौन, कैसे किसी मन को लुभाने लगता है। यह पता नहीं चलता। प्यार वह कतई नहीं है और वासना तो किसी कीमत पर नहीं। आकर्षण है मगर ऐसा नहीं कि टकटकी लगाए उसे ही देखते रहो प्रेमी-प्रेमिका की तरह।
दूर-दूर रह कर भी एक प्रबल जुड़ाव होता है एक-दूजे के लिए। निरंतर शुभ और प्रगति की कामना मन में छलछलाती रहती है। झरझर करते झरने-सा निष्पाप और निष्कलंक। जहां एक-दूजे का लंबा साथ भी लंबा नहीं लगता है और दूरियां तड़पाती नहीं है। एक-दूसरे की याद सताती नहीं है और साथ रहो तो बोरियत कभी फटकती नहीं है।
अक्सर इसे समझने में भारतीय समाज भूल कर बैठता है यही वजह है कि निर्दोष रिश्ते भी कलंकित कर दिए जाते हैं। यहां तक कि प्लेटोनिक लव करने वाले खुद अपने रिश्ते को समझ नहीं पाते इसीलिए समाज को समझा नहीं पाते कि उन दो व्यक्तियों के बीच यह जो है वह रोमांस नहीं है। दैहिक आकर्षण से बना अनैतिक रिश्ता नहीं है। कुछ ऐसा है जिसमें कहीं किसी का कोई नुकसान नहीं है। यहां तक कि दो मन जो जुड़े हैं उनका भी एक-दूजे से कोई स्वार्थ नहीं है।
आज जबकि अनैतिक रिश्तों की एक अलग ही जमीन तैयार होती जा रही है ऐसे में प्लेटोनिक लव अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है। यह अनाम, अबोला, अनूठा रिश्ता आज भी कहीं ना कहीं हर किसी के मन की क्यारी में नाजुक गुलाब सा महकता मिल जाएगा।
इस रिश्ते में मुख्य रूप से आदर, अपनापन, अनौपचारिकता और आकर्षण के रेशमी धागे इतनी कारीगरी से गुंथे होते हैं कि बिना नाम के ही इसकी खूबसूरती बनी रहती है। जहां इस रिश्ते को नाम देने की कोशिश की फिर तो बस नाम ही धरा रह जाता है रिश्ता पता नहीं कहां खो जाता है।
नामधारी रिश्ते में अपेक्षाएं होती है, स्वार्थ छुपा होता है इसीलिए जब प्लेटोनिक लव को नासमझी में महज प्यार समझ लिया जाता है वहां रिश्तों का बिखराव तय हो जाता है। यह खूबसूरत भाव कभी भी किसी के भी प्रति पनप सकता है। आपका कोई रिश्तेदार, दोस्त, परिचित या अजनबी वह कोई भी हो सकता है। बस, इस अलौकिक अनुभूति को पहचानना सीखिए।