काटजू ने कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013 (19:15 IST)
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आलोचनात्मक लेखों का प्रकाशन करने वाले अखबारों को सरकारी विज्ञापन रोकने अथवा उनमें कटौती किए जाने पर सरकार को आड़े हाथों लेते हुए भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू ने सोमवार को चेतावनी दी कि इस तरह के बर्ताव को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और ऐसा होने पर परिषद मुनासिब कानूनी कदम उठाएगी।

काटजू ने कहा कि सिर्फ आलोचनात्मक लेख के प्रकाशन पर अखबारों के विज्ञापन रोकना अथवा उनमें भारी कटौती करना पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है और दिमाग का छोटापन दिखाता है और एक लोकतंत्र में पूरी तरह से अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि इस तरह की गतिविधियां बोलने की आजादी पर हमला है।

एक बयान में परिषद के अध्यक्ष ने कहा कि अगर अखबारों और जर्नल्स को दिए जाने वाले विज्ञापन को रोकने अथवा उनमें कटौती करने का फैसला किया जाता है तो संबद्ध अधिकारियों को उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी करके इस संबंध में उनका पक्ष भी सुनना चाहिए।

काटजू ने कहा कि उन्हें अखबारों और जर्नल्स से कई शिकायतें मिली हैं कि केन्द्र अथवा राज्य सरकार द्वारा उन्हें जो विज्ञापन जारी किए जा रहे थे, उन्हें अचानक बिना कोई कारण बताए या तो रोक दिया गया या उनमें भारी कटौती कर दी गई।

उन्होंने कहा, कई बार ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि अखबार (जर्नल कोई ऐसी सामग्री प्रकाशित करते हैं, जो सरकार अथवा उसके किसी मंत्री) अधिकारी के खिलाफ होती है।

काटजू ने कहा कि विज्ञापन अखबारों और जर्नल्स के लिए आमदनी का मुख्य जरिया होते हैं और इस तरह की गतिविधियां प्रेस की आजादी पर हमला हैं। उन्होंने कहा, भारतीय प्रेस परिषद भविष्य में किसी सरकार, उसके मंत्रियों अथवा अधिकारियों के इस तरह के व्यवहार को बर्दाश्त नहीं करेगी, बल्कि मामले पर मुनासिब कानूनी कदम उठाएगी।

परिषद के अध्यक्ष ने कहा कि लोगों को, जिनमें प्रेस भी शामिल है, को सरकार की आलोचना करने का अधिकार है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने की आजादी का हिस्सा है। सरकारों, मंत्रियों और अधिकारियों को सहिष्णुता विकसित करनी चाहिए और उनमें आलोचना को बर्दाश्त करने का माद्दा होना चाहिए।

अपने बयान में काटजू ने कहा कि एक अखबार अथवा जर्नल को विज्ञापन देने का फैसला करने के बाद उसका पक्ष सुने बिना और कोई कारण बताए बिना उसे दिए जाने वाले विज्ञापन में कटौती अथवा उसे बंद किया जाना वैध आकांक्षाओं के सिद्धांत और नैसर्गिक न्याय का उल्लंघन है।

काटजू ने कहा, इसलिए मैं सभी केन्द्रीय: राज्य सरकारों, जिनमें मंत्री एवं अधिकारी शामिल हैं, वैधानिक निकायों: सार्वजनिक क्षेत्र के निकायों को यह निर्देश देता हूं कि अगर किसी अखबार (जर्नल को विज्ञापन बंद करने या उसमें कटौती करने का प्रस्ताव हो तो अखबार) जर्नल को कारण बताओ नोटिस जारी कर उसे उसके खिलाफ आरोपों की जानकारी दी जानी चाहिए और उसे अपनी बात कहने का मौका दिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, इसके बाद एक तर्कसंगत आदेश पारित किया जाए, जिसमें इस फैसले के कारण बताए जाएं और संबद्ध अखबार (जर्नल) को इस बारे में सूचित किया जाए। परिषद प्रमुख ने कहा कि केन्द्र सरकार के विज्ञापनों के संबंध में डीएवीपी की नई विज्ञापन नीति का अक्षरश: पालन किया जाना चाहिए। (भाषा)

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