श्रीनगर। कश्मीर में 9 से 11 फरवरी तक हड़ताल का आह्वान अफजल गुरु तथा मकबूल बट की बरसी मनाने के लिए किया जा चुका है। दोनों को ही फांसी दी गई थी। 9 फरवरी को अफजल गुरु को पिछले साल फांसी दी गई थी तो मकबूल बट को 11 फरवरी 1984 को।
इतना जरूर है कि श्रीनगर के ईदगाह में एक कब्र खुदी हुई है, जो कि खाली है। कब्र पर एक तख्ती टांगी गई है, जिस पर मकबूल बट का नाम लिखा गया है। असल में 32 साल पहले जेकेएलएफ नामक आतंकवादी संगठन के संस्थापक सदस्य मकबूल बट को 11 फरवरी के दिन तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी, लेकिन उसका शव कश्मीर नहीं भेजा गया, जिसकी मांग आज भी की जा रही है। मकबूल बट के साथ-साथ अब अफजल गुरु के शव की भी मांग जोर पकड़ चुकी है।
अफजल और मकबूल को फांसी देने के बाद उनके शव तिहाड़ जेल के भीतर ही दफना दिए गए थे। ऐसा इस डर के कारण किया गया था कि अगर उनके शव को कश्मीर घाटी में भिजवा दिए गए तो वहां भावनाएं भड़क सकती हैं, लेकिन बावजूद इसके भावनाओं को भड़कने से रोका नहीं जा सका था।
32 वर्ष पूर्व जब मकबूल बट को फांसी दी गई थी तब कश्मीर में व्याप्क स्तर पर आंदोलन हुआ था। तोड़फोड़ और हिंसा भी हुई थी। उसे जिस दिन फांसी दी गई थी उसे शहीदी दिवस के रूप में मनाकर आतंकवादियों की ओर से हड़ताल की जाती रही है।
पिछले 25 सालों तक यह सिलसिला चलता रहा लेकिन 7 साल पहले साल इसने नया रूप धारण कर लिया था जब किसी भी आतंकी गुट की ओर से हड़ताल का आह्वान नहीं किया था। दरअसल, जेकेएलएफ ने फैसला लिया था कि इस कथित शहीदी दिवस को हड़ताल के रूप में नहीं मनाया जाएगा बल्कि एक आंदोलन के रूप में मनाया जाएगा और यह आंदोलन था मकबूल बट के शव को प्राप्त करना।
इस बार फिर उसने हड़ताल का सहारा ले लिया है। साथ ही शव प्राप्त करने की खातिर भूख हड़ताल का भी। नतीजतन मकबूल बट के शव को कश्मीर घाटी में लाकर ईदगाह में खुदी हुई उसके नाम की कब्र में उसे फिर से दफनाने का आंदोलन पिछले कुछ दिनों से कश्मीर घाटी में चल रहा है। अलगाववादी संगठनों की ओर से इसे पूरा समर्थन भी दिया जा रहा है।
असल में जब मकबूल बट को तत्कालीन जज नीलकंठ गंजू ने फांसी की सजा सुनाई थी तो उसी समय श्रीनगर के ईदगाह में एक कब्र को खुदवाया गया था। जेकेएलएफ के सदस्यों तथा मकूबल बट के परिजनों को उम्मीद यही थी कि फांसी के उपरांत उसके शव को उन्हें सौंप दिया जाएगा, ताकि वे उसे इसी कब्र में दफन कर सकें, लेकिन मौत के बाद भी मकबूल बट को कश्मीर की धरती नसीब नहीं हुई।