महाराष्ट्र की राजनीति में आज से नए अध्याय की शुरुआत होने जा रही है। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन महा विकास अघाड़ी के नेता उद्धव ठाकरे ऐतिहासिक शिवाजी मैदान में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। भाजपा को सत्ता से रोकने के लिए बने 3 दलों के गठबंधन को लेकर काफी सवाल उठ रहे हैं।
सरकार में शामिल ये दल इतिहास में विचारधारा के नजरिए से एक-दूसरे के कट्टर विरोधी रहे हैं। परस्पर विरोधी विचारधारा के आधार पर बना महाराष्ट्र में गठबंधन का यह मॉडल क्या भविष्य में राष्ट्रीय स्तर पर नजर आएगा? यह सवाल भी अब राजनीतिक गलियारों में पूछा जाने लगा है।
महाराष्ट्र में बने महा विकास अघाड़ी गठबंधन को लेकर 'वेबदुनिया' ने वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर से गठबंधन सरकार और इसका भारतीय राजनीति पर भविष्य पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा की। बातचीत की शुरुआत करते हुए गिरिजाशंकर कहते हैं कि देश में गठबंधन सरकारों का इतिहास वैसे तो बहुत पुराना है।
वे कहते हैं कि आजादी के बाद जब पूरे देश में कांग्रेस का एकछत्र कब्जा था, तब कांग्रेस को रोकने के लिए विपक्षी दल एकसाथ आए और 1967 में देश में पहली बार गठबंधन की सरकार का फॉर्मूला लागू हुआ और देखते ही देखते 7-8 राज्यों में कांग्रेस सरकारों का पतन हो गया। इसके बाद गठबंधन सरकार का दूसरा दौर 1977 में देखने को मिला, जब आपातकाल के बाद विपक्षी दल एक हो गए और कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा।
वरिष्ठ पत्रकार गिरिजाशंकर कहते हैं कि महाराष्ट्र में भाजपा को रोकने के लिए 3 दलों ने आपस में मिलकर जो गठबंधन बनाया है, वह कई मायनों में अलग है। महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना का जो गठबंधन 30 साल तक चला, उसके बीच सबसे बड़ी कड़ी हिन्दुत्व की विचारधारा थी और हिन्दुत्व की पैरोकार शिवसेना और बीजेपी दोनों है।
वे आगे कहते हैं कि कांग्रेस जो हमेशा हिन्दुत्ववादी विचारधारा और हिन्दू राष्ट्र का विरोध करते हुए धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई लड़ती रही, वह अब हिन्दुत्व के कट्टर समर्थक शिवसेना के साथ हाथ मिलाकर सरकार बना रही है और इस गठबंधन को बनने में साफतौर पर विचारधारा के आधार पर समझौता हुआ है।
इसके साथ गिरिजाशंकर यह भी जोड़ते हैं कि यह भी पहली बार नहीं हो रहा है कि विचारधारा के आधार पर समझौता होकर किसी राज्य में सरकार का गठन हो रहा है। हाल में ही जब जम्मू-कश्मीर में भाजपा ने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी तो वहां भी विचारधारा के आधार पर समझौता देखने को मिला था। इसके पहले केंद्र में कई बार ऐसी सरकारों का गठन हुआ, जब विपरीत विचारधारा वाली पार्टियां एकसाथ आईं।
'वेबदुनिया' से बातचीत में गिरिजाशंकर कहते हैं कि महाराष्ट्र से बने इस गठबंधन से यह संदेश भी जाता है कि बीजेपी को रोकने के लिए तमाम विरोधी विचारधारा वाले दलों को अपनी विचारधारा और वैचारिक कार्यक्रम को छोड़कर एक होना पड़ेगा और इस एकता का ही परिणाम यह हैं कि आज महाराष्ट्र में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के बाद भी सरकार नहीं बना पाई।
वे कहते हैं कि 2014 में केंद्र में जिस तरह बीजेपी का उदय हुआ और नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी, उसके बाद यह अनुभव किया जाने लगा कि बीजेपी इतनी मजबूत हो गई है कि वह अपने दम पर देश के अलग-अलग प्रांतों में अपनी सरकार बना रही है। आज कांग्रेस उसके मुकाबले में बहुत कमजोर साबित हो रही है और वह नरेन्द्र मोदी का मुकाबला नहीं कर सकती।
इसके बाद विपक्षी दलों ने अनुभव किया कि सारे दलों को एकसाथ आना ही होगा तभी वे नरेन्द्र मोदी का मुकाबला कर सकेंगे। इस तरह के गठबंधन का आंशिक तौर पर प्रयोग उत्तरप्रदेश में हुआ भी था, जब 2 विपरीत विचारधारा वाली बसपा और सपा एकसाथ आई भी, लेकिन वह प्रयोग सफल नहीं हो सका।
गिरिजाशंकर कहते हैं कि महाराष्ट्र में गठबंधन को लेकर अभी भी लोगों के मन में यह संशय है कि विचारधारा के आधार पर 3 दलों में काफी मतभेद हैं और क्या यह सरकार चल पाएगी? वे आगे कहते हैं कि अगर महाराष्ट्र में गठबंधन 6-8 महीने चल भी गया तो इस प्रयोग को आगे देश में विस्तार मिलेगा और आने वाले समय में अलग-अलग राज्यों के साथ-साथ केंद्र में भी इस तरह के गठबंधन सरकार के प्रयोग देखने को मिलेंगे।
गिरिजाशंकर कहते हैं कि गठबंधन के इस प्रयोग की सफलता पर उनको थोड़ा-सा शक या संशय केवल इस बात पर है कि इस गठबंधन को बनाने में मुख्य भूमिका शरद पवार की है और अगर शरद पवार नहीं होते तो यह गठबंधन भी नहीं बन पाता।
वे आगे कहते हैं कि अगर गठबंधन के इस प्रयोग को आगे बढ़ाना है तो शरद पवार या उन जैसे किसी नेता को आगे आना होगा। वे कहते हैं कि अब देखना होगा कि आने वाले समय में शरद पवार की भूमिका भारतीय राजनीति में क्या होती है और क्या वे एंटीबीजेपी मोर्चा का नेतृत्व करेंगे?
गिरिजाशंकर कहते हैं कि शरद पवार महाराष्ट्र में जिस रणनीतिक कुशलता से 2 विपरीत विचारधाराओं वाली पार्टियों को एक मंच पर ले आए हैं, वह उनकी खूबी है। वे महत्वपूर्ण बात कहते हैं कि अगर कांग्रेस को अपने को फिर से पुनर्जीवित करना है तो उसको ऐसे दल जैसे एनसीपी और टीएमसी, जो कांग्रेस से बाहर निकलकर बने हैं, को एक कर देना चाहिए और शरद पवार जैसे अनुभवी नेता को पार्टी की कमान सौंप देना चाहिए।