महाराष्ट्र में चमगादड़ों की दो प्रजातियों में निपाह वायरस पाया गया है। यहां निपाह वायरस पाए जाने की यह पहली घटना है। पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के विशेषज्ञों ने यह जानकारी दी है।
मार्च 2020 में महाबलेश्वर की एक गुफा में ये चमगादड़ पाए गए थे। फिर विशेषज्ञों ने ऐसी अलग-अलग प्रजातियों के चमगादड़ों पर रिसर्च करना शुरू किया तो यह बात सामने आई। इससे पहले देश के कुछ भागों में यह वायरस पाया गया था। लेकिन महाराष्ट्र में इससे पहले कभी चमगादड़ों में यह वायरस नहीं पाया गया। यह वायरस आमतौर पर चमगादड़ों से इंसान के शरीर में आता है।
निपाह वायरस को रोकने के लिए अब तक कोई वैक्सीन नहीं है। इसका कोई इलाज या दवाई नहीं है। अगर कोई इस वायरस से संक्रमित हो जाता है तो 65 प्रतिशत मामले में ज़िंदा नहीं बच पाता है। इसीलिए यह वायरस बेहद घातक समझा जाता है।
क्या है निपाह का इतिहास?
भारत में इससे पहले 2001 में निपाह वायरस पाया गया था। पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में इसके 66 मरीज पाए गए थे। इनमें से 45 मरीजों की मौत हो गई थी।
2007 में पश्चिम बंगाल के ही नदिया जिले में निपाह के 5 मरीज पाए गए। उन पांचों की मौत हो गई थी।
दुनिया को निपाह वायरस के बारे में 1998 में पता लगा।
मलेशिया में सुअर पालने वालों में यह सबसे पहले पाया गया था। वहां से दुनिया में यह चमगादड़ों से फैल गया।
कैसे होता है संक्रमण?
चमगादड़ों को निपाह वायरस का नैसर्गिक वाहक माना जाता है। चमगादड़ों द्वारा खाए गए या चाटे गए फलों को इंसान खा ले तो वह संक्रमित हो जाता है। निपाह वायरस से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर भी संक्रमण का खतरा है। विशेषज्ञों के मुताबिक चमगादड़ों के अलावा सुअरों के संपर्क में आने से भी निपाह वायरस के संक्रमण का खतरा होता है। इंसानों में निपाह वायरस का संक्रमण आंखें, नाक और मुंह के रास्ते होता है।
यह वायरस चमगादड़ों से चमगादड़ों में नहीं फैलता है। यानी एक चमगादड़ से दूसरे चमगादड़ में यह संक्रमण नहीं होता है। क्योंकि एक चमगादड़ में निपाह का संक्रमण होते ही संपर्क मे आने वाले चमगादड़ों में एंटीबॉडीज तैयार हो जाता है।