संसद में मंत्रियों और सांसदों के लात-घूसों की न जरूरत थी और न ही उम्‍मीद

नवीन रांगियाल
जब जब संसद की बात आती है तो सबसे पहले जिस बात का ख्‍याल आता है वो हैं मर्यादा और संसदीय व्‍यवहार। जाहिर है यह ख्‍याल इसलिए आता है क्‍योंकि संसद में वही लोग बैठते हैं जो देशभर के लोगों द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि होते हैं और जो कानून और व्‍यवस्‍था बनाने की प्रक्रिया का हिस्‍सा होते हैं। स्‍पष्‍ट है जनप्रतिनिधियों से मर्यादा और संसदीय चरित्र की अपेक्षा ज्‍यादा की जाती है। लेकिन अगर देश की संसद में ही असंसदीय दृश्‍य देखने को मिले तो इसे क्‍या कहेंगे।

बुधवार को ऐसा ही एक दृश्‍य भारत की संसद में देखने को मिला, जब कई सांसद, मंत्री और नेताओं ने मिलकर एक खुद ही आरोपी की कुटाई कर डाली। हालांकि जिसकी पिटाई की गई, वो भी संसद में दर्शक दीर्घा से छलांग लगाकर सदन में जहां सभी जनप्रतिनिधि चर्चा कर रहे थे, वहां चला आया और संसद की सुरक्षा घेरे को तोड़कर खतरा बन गया था।

हालांकि बावजूद इस पूरे घटनाक्रम के जनप्रतिनिधियों को कानून और व्‍यवस्‍था अपने हाथों में लेने की कोई जरूरत नहीं थी, उन्‍हें सिर्फ अपनी सुरक्षा का ख्‍याल रखते हुए सुरक्षित स्‍थान पर चले जाना चाहिए था, या उसे पकड़कर सुरक्षाकर्मियों के हवाले किया जा सकता था। मंत्रियों और सांसदों की सुरक्षा का काम सदन में तैनात सुरक्षाकर्मियों का था। लेकिन कई नेताओं ने आरोपी युवक को घेर लिया और उस पर लात घूसे बरसाना शुरू कर दिया। वे कूद कूद कर आरोपी पर घूसे बरसा रहे थे। यह दृश्‍य संसद में अपेक्षित नहीं था और न ही सांसद और मंत्री की तरफ से इस बात की अपेक्षा थी कि वे ऐसा कुछ करेंगे। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि संसद की सुरक्षा में बड़ी चूक हुई है और इस खतरे को एक बड़ी लापरवाही के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन लोकतंत्र और कानून-व्‍यवस्‍था का हवाला देने वाले सांसदों और मंत्रियों से इस तरह की अ-संसदीय लिंचिंग की उम्‍मीद कतई नहीं की जा सकती थी।

आरोपी को पकड़ना, उसके संसद में घुस आने के पीछे के मकसद को जानना सुरक्षाकर्मियों की ड्यूटी थी, लेकिन अपना आपा खोकर आरोपी पर टूट पड़ना एक असंसदीय काम ही था। इस बात पर जोर देना इसलिए जरूरी है क्‍योंकि अगर पिटाई से आरोपी की मौत हो जाती तो पूरी दुनिया भारत के सबसे बड़े लोकतंत्र पर थू-थू करते हुए हंसती। उस स्‍थिति में लोकतंत्र के जिम्‍मेदारों के पास अपनी सफाई के लिए कोई जवाब नहीं होता।

बता दें कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां संविधान सबसे पहले और सबसे ऊपर है। इस देश के संविधान और कानून-व्‍यवस्‍था में इस बात का ख्‍याल रखा जाता है कि सौ गुनहगार सजा से बच जाए तो कोई बात नहीं, लेकिन एक बेगुनाह को सजा न हो जाए। हालांकि संसद में घुसने वाला भी आरोपी और संसद में बैठे तमाम नेताओं के लिए खतरा था। लेकिन पिटाई वाले जिस दृश्‍य को पूरे देश ने देखा वो अ-संसदीय लिंचिंग की तरह नजर आता है।

क्‍या है मामला : दरअसल, बीते बुधवार को राजधानी दिल्‍ली में संसद की दर्शक दीर्घा की गैलरी से दो हमलावर लोकसभा सदन के चैंबर में कूद पड़े। दोनों के पास गैस कैनिस्टर भी थे। उन्‍होंने सदन में रंग बिरंगा धुआं स्‍प्रे कर दिया जो स्‍मोक स्‍प्रे के नाम से जाना जाता है। संसद के बाहर भी चार लोग प्रदर्शन कर रहे थे। सभी आपस में एक दूसरे को जानते हैं, उन्‍होंने तानाशाही नहीं चलेगी के नारे लगाए थे। जैसे ही दोनों  लोग अचानक सदन में कूदे और उसके बाद हवा में पीला धुंआ छा गया। सदन में मौजूद कई नेताओं की जान सक्‍ते में आ गई। हालांकि बाद में सदन के अंदर और बाहर दोनों जगह से मिलाकर 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया।

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