नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह की प्रासंगिकता मामले में सुनवाई करते हुए केन्द्र और राज्य सरकारों से सोमवार को कहा कि राजद्रोह के लिए कोई नया केस दर्ज नहीं किया जाए। शीर्ष अदालत ने इस मामले में अंतरिम रोक लगा दी है। इस मामले में अगली सुनवाई जुलाई के तीसरे हफ्ते में होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने केन्द्र के हलफनामे को देखा है। सरकारें बेवजह राजद्रोह केस करने से बचें। शीर्ष अदालत ने कहा कि केन्द्र इस कानून पर पुनर्विचार करे। कोर्ट ने कहा कि उम्मीद है केन्द्र और राज्य सरकार इस मामले में नया केस दर्ज करने से बचेंगे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि राजद्रोह के मामलों में पहले जेल में बंद लोग जमानत के लिए कोर्ट आ सकते हैं। लोगों के अधिकारों की रक्षा की जरूरत है। किसी पर केस दर्ज होता है तो वह कोर्ट जा सकता है।
क्या कहा था सरकार ने : केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से बुधवार को कहा कि पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारी को राजद्रोह के आरोप में दर्ज प्राथमिकियों की निगरानी करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की एक पीठ को बताया कि राजद्रोह के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करना बंद नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह प्रावधान एक संज्ञेय अपराध से संबंधित है और 1962 में एक संविधान पीठ ने इसे बरकरार रखा था।
केंद्र ने राजद्रोह के लंबित मामलों के संबंध में न्यायालय को सुझाव दिया कि इस प्रकार के मामलों में जमानत याचिकाओं पर शीघ्रता से सुनवाई की जा सकती है, क्योंकि सरकार हर मामले की गंभीरता से अवगत नहीं हैं और ये आतंकवाद, धन शोधन जैसे पहलुओं से जुड़े हो सकते हैं।
विधि अधिकारी ने कहा कि अंतत: लंबित मामले न्यायिक मंच के समक्ष हैं और हमें अदालतों पर भरोसा करने की जरूरत है। मामले पर सुनवाई अभी जारी है। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र से कहा था कि राजद्रोह के संबंध में औपनिवेशिक युग के कानून पर किसी उपयुक्त मंच द्वारा पुनर्विचार किए जाने तक नागरिकों के हितों की सुरक्षा के मुद्दे पर 24 घंटे के भीतर वह अपने विचार स्पष्ट करे।
शीर्ष अदालत राजद्रोह संबंधी कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।