अयोध्या रामजन्म भूमि मालिकाना हक मुकदमे में फैसला सुनाने वाले तीनों न्यायाधीशों पर सबकी नजरें टिकी हुई थी लेकिन अदालत के बाहर भी उनका जीवन कम दिलचस्प नहीं है।
अयोध्या मालिकाना हक विवाद में फैसला सुनाने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के तीन सदस्यों में सबसे वरिष्ठ सदस्य न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा कल सेवानिवृत्त हो रहे हैं। वरिष्ठ अधिवक्ताओं के अनुसार शर्मा अपना खाना स्वयं पकाते हैं और कभी कभार उनके साथियों को भी इसका आनंद लेने का मौका मिलता है।
देश के सबसे लंबे कानूनी विवाद के निपटारे के लिए गठित विशेष अयोध्या पीठ के दो अन्य न्यायाधीश हैं न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति एसयू खान।
व्यक्तिगत जीवन में न्यायमूर्ति शर्मा बेहद धार्मिक व्यक्ति हैं और वह हिंदी का भी जमकर प्रयोग करते हैं। न्यायमूर्ति शर्मा दो कारणों से चर्चा में रहे।
पहला, उन्होंने 20 सितंबर को असहमति व्यक्त करने वाला अपना फैसला सुनाकर और मध्यस्थता की वकालत कर सबको चौंका दिया क्योंकि उच्च न्यायालय ने 60 साल पुराने इस विवाद में फैसला टालने और अदालत के बाहर समाधान करने की संभावना तलाशने से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया था।
दूसरा कारण यह है कि मालिकाना हक मुकदमे के पक्षों ने इस बात पर जोर दिया कि वह कल सेवानिवृत्त हो रहे हैं इसलिए फैसले को नहीं टाला जाना चाहिए। शर्मा के मित्र बताते हैं कि वह बिल्कुल शाकाहारी हैं और कुँवारे हैं तथा अपनी मितव्ययी जीवनशैली के लिए जाने-जाते हैं।
शर्मा सामाजिक समारोहों में सफेद धोती कुर्ता पहने देखे जाते हैं। वह अपने मानवीय गुण और गरीब याचिकाकर्ताओं की मदद के लिए किसी भी हद तक चले जाने के लिए भी जाने जाते हैं।
न्यायमूर्ति शर्मा अपने परोपकारी स्वभाव के लिए भी प्रसिद्ध हैं और लोगों का मानना है कि उन्होंने अनेक लोगों की संकट के समय मदद की है।
न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा का जन्म 2 अक्तूबर 1948 में हुआ था। उन्होंने 1967 में स्नातक और उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर स्थित एक कालेज से 1970 में एलएलबी की डिग्री हासिल की। वे 1972 में न्यायिक सेवा की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद जिला अदालत में न्यायाधीश बने।
वर्ष 2002 में वह जिला एवं सत्र न्यायाधीश बने। वर्ष 2005 में वह उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में शामिल हुए। शर्मा को 12 फरवरी 2007 को अयोध्या पीठ के न्यायाधीश के तौर पर मनोनीत किया गया।
न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तीन सदस्यीय अयोध्या पीठ में सबसे कम उम्र के हैं। पीठ में शामिल न्यायमूर्ति शर्मा के विपरीत न्यायमूर्ति अग्रवाल अक्सर अंग्रेजी में बोलते नजर आते हैं। वह अदालत कक्ष के बाहर भी आमतौर पर अंग्रेजी में ही बातचीत करते हैं। वह अपने प्रभावशाली और संक्षिप्त फैसलों के लिए भी जाने जाते हैं।
न्यायमूर्ति अग्रवाल जब अधिवक्ता थे तो उनके जूनियर के तौर पर काम कर चुके एक अधिवक्ता के अनुसार वह अक्सर कानून की पुस्तकों में डूबे रहते हैं। वह बेहद सुपष्ट शब्दों में अपनी बात रखने और दीवानी कानून के बारीक सूक्ष्म भेदों के लिए भी जाने-जाते हैं।
एक अन्य अधिवक्ता ने कहा कि न्यायमूर्ति अग्रवाल के फैसले काफी बुद्धिमत्तापूर्ण होते हैं और शायद ही उच्चतम न्यायालय ने उनके फैसले के विपरीत कहा हो।
न्यायमूर्ति अग्रवाल का जन्म 25 अप्रैल 1958 को हुआ। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से 1977 में विज्ञान में स्नातक की उपाधि हासिल की। वर्ष 1980 में मेरठ विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की। वह उसी वर्ष इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार में शामिल हुए।
वर्ष 1980 में उन्होंने टैक्स मामलों में वकालत शुरू की लेकिन कुछ समय बाद वह सेवा मामलों में वकालत करने लगे। न्यायमूर्ति अग्रवाल 23 अप्रैल 2020 को सेवानिवृत्त होंगे।
वह अक्तूबर 2005 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में शामिल हुए और साल 2007 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में उनकी पुष्टि हुई।
पीठ के तीसरे सदस्य न्यायमूर्ति एसयू खान का जन्म 31 जनवरी 1952 को हुआ। न्यायमूर्ति अग्रवाल की ही तरह वह भी विज्ञान स्नातक हैं और दोनों उच्च न्यायालय बार में साथी रहे हैं। अधिवक्ता डीपी गुप्ता के अनुसार न्यायमूर्ति खान अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के लिए जाने जाते हैं।
न्यायमूर्ति खान ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से 1975 में एलएलबी की डिग्री हासिल की। वर्ष 1975 में ही न्यायमूर्ति खान ने अधिवक्ता के तौर पर अपना नामांकन कराया।
न्यायमूर्ति खान ने 25 वर्षों तक सेवा और दीवानी और राजस्व मामलों में वकालत की। वह वर्ष 2002 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत हुए।
अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ रखने वाले न्यायमूर्ति खान दीवानी मामलों का अदालत के बाहर निपटारा करने के लिए प्रोत्साहन देने के लिए प्रसिद्ध हैं। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने बातचीत के जरिए 2000 मामलों को सुलझाया है।
न्यायमूर्ति खान 30 जनवरी 2014 को सेवानिवृत्ति की आयु पर पहुँचेंगे। न्यायमूर्ति खान पहली बार 11 जनवरी 2010 को अयोध्या पीठ में बैठे। वह एक सख्त न्यायाधीश के तौर पर जाने-जाते हैं और अपने रुख पर कायम रहते हैं। (भाषा)