महाकाल को उज्जैन का क्यों कहते हैं राजा

Webdunia
मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022 (12:54 IST)
Mahakal lok ujjain : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज 11 अक्टूबर 2022 मंगलवार को महाकाल कॉरिडोर का लोकार्पण करने जा रहे हैं। इस कॉरिडोर को महाकाल लोक कहा जा रहा है। काल के दो अर्थ होते हैं- एक समय और दूसरा मृत्यु। प्राचीन समय में यहीं से संपूर्ण विश्व का मानक समय निर्धारित होता था इसीलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम 'महाकालेश्वर' रखा गया है। यहां पर शिवजी को उज्जैन का राजा कहा जाता है। आखिर क्या है इसके पीछे की कहानी, जानते हैं।
 
उज्जैन का एक ही राजा है और वह है महाकाल बाबा। विक्रमादित्य के शासन के बाद से यहां कोई भी राजा रात में नहीं रुक सकता। जिसने भी यह दुस्साहस किया है, वह संकटों से घिरकर मारा गया। पौराणिक तथा और सिंहासन बत्तीसी की कथा के अनुसार राजा भोज के काल से ही यहां कोई राजा नहीं रुकता है। वर्तमान में भी कोई भी राजा, मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री आदि यहां रात नहीं रुक सकता। राजा महाकाल श्रावण मास में प्रति सोमवार नगर भ्रमण करते हैं।
 
सम्राट विक्रमादित्य के जीवन से ही सिंहासन बत्तीसी और विक्रम वेताल नामक कथाएं जुड़ी हुई है। कहते हैं कि अवंतिका नगरी की रक्षा नगर के चारों और स्थित देवियां करती थीं, जो आज भी करती हैं। विक्रमादित्य को माता हरसिद्धि और माता बगलामुखी ने साक्षात दर्शन देकर उन्हें आशीर्वाद दिया था। मान्यता अनुसार उज्जैन के राजा महाकाल है और उन्हीं के अधिन रहकर कोई राजा राज करता था। विक्रमादित्य के जाने के बाद यहां के एकमात्र राजा अब महाकाल ही है। कहते हैं कि अवंतिका क्षेत्र में वही राजा रात रुक सकता है जो कि विक्रमादित्य जैसा न्यायप्रिय हो, अन्यथा उस पर काल मंडराने लगता है।
दरअसल, कहानी के अनुसार राजा भोज को सम्राट विक्रमादित्य का देवताओं का बनाया हुआ सिंहासन एक खेत से मिला था। सिंहासन के चारों ओर आठ-आठ पुतलियां यानी कुल बत्तीस पुतलियां खड़ी थीं। राजा भोज ने उसकी पूजा अर्चना की और उस पर बैठने के लिए पंडित से मुहूर्त निकालकर सभी को निमंत्रण दिया। लेकिन पूजा के बाद जैसे ही राजा ने अपना दाहिना पैर बढ़ाकर सिंहासन पर रखना चाहा कि सारी पुतलियां खिलखिला कर हंस पड़ी। लोगों को बड़ा अचंभा हुआ कि यह बेजान पुतलियां कैसे हंस पड़ी। 
 
राजा ने अपना पैर खींच लिया और पुतलियों से पूछा, 'ओ सुंदर पुतलियों! सच-सच बताओं कि तुम क्यों हंसी?'
 
पहली पुतली का नाम था। रत्नमंजरी। राजा की बात सुनकर वह बोली, 'राजन! आप बड़े तेजस्वी हैं, धनी हैं, बलवान हैं, लेकिन इन सब बातों का आपको घमंड भी है। जिस राजा का यह सिहांसन है, वह दानी, वीर और धनी होते हुए भी विनम्र थे। परम दयालु थे। राजा बड़े नाराज हुए।
 
पुतली ने समझाया, महाराज, यह सिंहासन परम प्रतापी और ज्ञानी राजा विक्रमादित्य का है। 
 
राजा बोले, मैं कैसे मानूं कि राजा विक्रमादित्य मुझसे ज्यादा गुणी और पराक्रमी थे? 
 
पुतली ने कहा, 'ठीक है, मैं तुम्हें राजा विक्रमादित्य की एक कहानी सुनाती हूं।' सिंहासन बत्तीसी की पहली पुतली रत्नमंजरी ने कहानी सुनाई। इसी तरह सभी 32 पुतलियों ने राजा विक्रमादित्य की कहानी सुनाने के बाद अंत में कहा कि इस सिंहासन पर वही राजा बैठ सकता है और यहां वही राज कर सकता जो राजा विक्रमादित्य की तरह हो, अन्यथा वह मारा जाएगा।... तभी से उज्जैन के राजा महाकाल है।

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