महायोगीश्वर दत्तात्रेय भगवान विष्णु के अवतार हैं। इनका अवतरण मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ। अतः इस दिन बड़े समारोहपूर्वक दत्त जयंती का उत्सव मनाया जाता है।
श्रीमद्भभगवत में आया है कि पुत्र प्राप्ति की इच्छा से महर्षि अत्रि के व्रत करने पर 'दत्तो मयाहमिति यद् भगवान् स दत्तः' मैंने अपने-आपको तुम्हें दे दिया -विष्णु के ऐसा कहने से भगवान विष्णु ही अत्रि के पुत्र रूप में अवतरित हुए और दत्त कहलाए। अत्रिपुत्र होने से ये आत्रेय कहलाते हैं।
दत्त और आत्रेय के संयोग से इनका दत्तात्रेय नाम प्रसिद्ध हो गया। इनकी माता का नाम अनसूया है, उनका पतिव्रता धर्म संसार में प्रसिद्ध है। पुराणों में कथा आती है, ब्रह्माणी, रुद्राणी और लक्ष्मी को अपने पतिव्रत धर्म पर गर्व हो गया। भगवान को अपने भक्त का अभिमान सहन नहीं होता तब उन्होंने एक अद्भुत लीला करने की सोची।
भक्त वत्सल भगवान ने देवर्षि नारद के मन में प्रेरणा उत्पन्न की। नारद घूमते-घूमते देवलोक पहुंचे और तीनों देवियों के पास बारी-बारी जाकर कहा- अत्रिपत्नी अनसूया के समक्ष आपको सतीत्व नगण्य है। तीनों देवियों ने अपने स्वामियों- विष्णु, महेश और ब्रह्मा से देवर्षि नारद की यह बात बताई और उनसे अनसूया के पातिव्रत्य की परीक्षा करने को कहा।
देवताओं ने बहुत समझाया परंतु उन देवियों के हठ के सामने उनकी एक न चली। अंततः साधुवेश बनाकर वे तीनों देव अत्रिमुनि के आश्रम में पहुंचे। महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे। अतिथियों को आया देख देवी अनसूया ने उन्हें प्रणाम कर अर्घ्य, कंदमूलादि अर्पित किए किंतु वे बोले- हम लोग तब तक आतिथ्य स्वीकार नहीं करेंगे, जब तक आप हमें अपने गोद में बिठाकर भोजन नहीं कराती।
यह बात सुनकर प्रथम तो देवी अनसूया अवाक् रह गईं किंतु आतिथ्य धर्म की महिमा का लोप न जाए, इस दृष्टि से उन्होंने नारायण का ध्यान किया। अपने पतिदेव का स्मरण किया और इसे भगवान की लीला समझकर वे बोलीं- यदि मेरा पातिव्रत्य धर्म सत्य है तो यह तीनों साधु छह-छह मास के शिशु हो जाएं। इतना कहना ही था कि तीनों देव छह मास के शिशु हो रुदन करने लगे।
तब माता ने उन्हें गोद में लेकर दुग्ध पान कराया फिर पालने में झुलाने लगीं। ऐसे ही कुछ समय व्यतीत हो गया। इधर देवलोक में जब तीनों देव वापस न आए तो तीनों देवियां अत्यंत व्याकुल हो गईं। फलतः नारद आए और उन्होंने संपूर्ण हाल कह सुनाया। तीनों देवियां अनसूया के पास आईं और उन्होंने उनसे क्षमा मांगी।
देवी अनसूया ने अपने पातिव्रत्य से तीनों देवों को पूर्वरूप में कर दिया। इस प्रकार प्रसन्न होकर तीनों देवों ने अनसूया से वर मांगने को कहा तो देवी बोलीं- आप तीनों देव मुझे पुत्र रूप में प्राप्त हों। तथास्तु- कहकर तीनों देव और देवियां अपने-अपने लोक को चले गए। कालांतर में यही तीनों देव अनसूया के गर्भ से प्रकट हुए।
कालांतर में यही तीनों देव अनसूया के गर्भ से प्रकट हुए। ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा तथा विष्णु के अंश से दत्तात्रेय श्रीविष्णु भगवान के ही अवतार हैं और इन्हीं के आविर्भाव की तिथि दत्तात्रेय जयंती के नाम से प्रसिद्ध है।
तीनों ईश्वरीय शक्तियों से समाहित भगवान दत्तात्रेय सर्वव्यापी हैं। उनकी उपासना से मनुष्य को बुद्धि, ज्ञान और बल की प्राप्ति होती है। शत्रु बाधा दूर करने में भी उनके मंत्र कारगर है।
दत्त भगवान अपने भक्तों पर आने वाले संकटों को तुरंत दूर करते हैं। अत: गुरुवार, पूर्णिमा अथवा दत्तात्रेय जयंती के दिन निम्न मंत्रों का उच्चारण करने से तथा विशेषकर स्फटिक की माला से प्रतिदिन 108 बार मंत्र जाप करने से मनुष्य के समस्त कष्ट जल्दी ही दूर हो जाते हैं।
भगवान दत्तात्रेय के चमत्कारिक एवं तुरंत फल देने वाले खास मंत्र :
* दत्तात्रेय का महामंत्र - 'दिगंबरा-दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा'
* तांत्रोक्त दत्तात्रेय मंत्र - 'ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नम:'