हिंदू धर्म में पितृपक्ष का बड़ा महत्व है। पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए श्रद्धा और प्रेम से श्राद्ध किया जाता है, उन्हें याद किया जाता है। इन दिनों में पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान मुख्य रूप से किए जाते हैं। ये दिन पितरों को समर्पित होते हैं।
पितृदोष दूर करने और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पितृ पक्ष का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। माना जाता है कि जो लोग पितृपक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं कराते, उन्हें पितृदोष लगता है। श्राद्ध के बाद ही पितृदोष से मुक्ति मिलती है। श्राद्ध से पितरों को शांति मिलती हैं। वे प्रसन्न रहते हैं और उनका आशीर्वाद परिवार को प्राप्त होता है।
इस बार हर व्रत-त्योहार की तरह कोरोना का असर पितृपक्ष पर भी पड़ेगा तभी तो इस साल मोक्षदायिनी ‘गया’ की धरती पर पिंडदान नहीं किया जा सकेगा। कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनजर बिहार सरकार ने ये फैसला लिया है हालांकि आप सभी तरह के कर्मकांड व दान आदि अपने घर पर कर सकते हैं।
इस साल पितृपक्ष 1 सितंबर से शुरू हो गए हैं और अंतिम श्राद्ध यानी अमावस्या श्राद्ध 17 सितंबर को होगा।
श्राद्ध का अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या का दिन होता है। पितरों के तर्पण के लिए यह दिन भी बहुत महत्वपूर्ण माना गया है।
ये है पितृ पक्ष का महत्व
भाद्रपद माह की शुक्ल पूर्णिमा से आरंभ होकर आश्विन माह के कृष्णपक्ष की अमावस्या तक पितृ पक्ष श्राद्ध लगता है। पितृदोष से मुक्ति के लिए इस माह मे पितरों का तर्पण करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। इससे जीवन में आने वाले कष्ट दूर होते हैं। कुंडली में लगने वाला पितृदोष व्यक्ति के लिए बहुत नुकसानदायक होता है। ब्रह्म वैवर्त पुराण में बताया गया है कि देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। माना जाता है जिनके पूर्वज प्रसन्न होते हैं उनके जीवन में किसी प्रकार के कष्ट नहीं होते हैं। कहा जाता है कि इस समय पूर्वज पृथ्वी पर होते हैं, इसलिए पितृपक्ष में उनका श्राद्ध करने से वे अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
ऐसे करें अपने पितरों का तर्पण
पितृ पक्ष में जिस दिन आपको अपने पितरों का श्राद्ध कर्म करना हो उस दिन प्रातःकाल के समय उठकर व्यक्ति को साफ और स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए, श्राद्ध कर्म करते समय बिना सिले वस्त्र धारण करें जैसे धोती आदि। उसके बाद अपने पूर्वजों की पसंद का भोजन बनाकर उन्हें अर्पित करें। श्राद्ध में तिल, चावल और जौं को अवश्य शामिल करना चाहिए। अपने पितरों को पहले तिल अर्पण करें उसके बाद भोजन की पिंडी बनाकर चढ़ाएं। पितृपक्ष में कौए को पितर का रुप माना जाता है इसलिए कौए को भोजन अवश्य डालें। गरीब और जरुरतमंद को दान करें। भांजे-भांजी को भोजन करवाएं।